कोई पूछता नहीं और वह किसी को बताती नहीं

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महिला दिवस 2013 को मनाए जाने के पूर्व वेबदुनिया टीम ने हर आम और खास महिला से भारत में नारी सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल किए। हमें मेल द्वारा इन सवालों के सैकड़ों की संख्या में जवाब मिल रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिकांश विचारों को स्थान मिल सके। प्रस्तुत हैं वेबदुनिया के सवाल और उन पर मिली मिश्रित प्रतिक्रियाएं....

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केलगरी, कनाडा से स्वतंत्र लेखिका डॉ. मोनिका शर्मा के विचार

महिलाओं के विकास और सशक्तीकरण में उनके स्वास्थ्य की संभाल ज़रूरी भी है। वे हर तरह की स्वतंत्रता को जी सकें इसके लिए पहली शर्त है। भारत में आधी आबादी के स्वास्थ्य का स्तर क्या है आंकड़े और हकीकत दोनों बयां करते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ्य का अर्थ मात्र रोगों का अभाव नहीं बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्वस्थता की सकारात्मक अवस्था है। यदि इस परिभाषा को आधार बनाया जाए तो हमारे समाज में महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के हालात काफी चिंताजनक है।

समाज की इस आधी आबादी को शारीरिक बीमारियां तो हैं ही महिलाओं में मानसिक व्याधियों वाले मरीजों के आंकड़ें भी चौंकाने वाले हैं। घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी उठा रहीं महिलाएं भावनात्मक और मानसिक स्तर पर भी कमजोर होती जा रहीं हैं।

घर-परिवार के हर सदस्य की सेहत का ख्याल रखने वाली महिलाएं खुद अपने स्वास्थ्य को हमेशा नजरअंदाज कर देती हैं , स्वास्थ्य की संभाल की फेहरिस्त में खुद को हमेशा दोयम दर्जे पर ही रखती हैं। हैरानी की बात तो यह है कि घर के बाकी सदस्य भी महिलाओं की सेहत को खास तवज्जोह नहीं देते।

जी हां यह सच है की जिस तरह एक महिला चाहे मां हो या पत्नी घर के अन्य सदस्यों की सेहत का खानपान से ल ेकर दवा और देखभाल तक ख्याल करती है उसी तरह घर के सदस्य महिलाओं की तकलीफों के प्रति इतने जागरूक नहीं होते । महिलाओं को समाज में हमेशा से दोयम दर्जे पर ही रखा गया है। यही सोच उनकी सेहत पर भी लागू होती नजर आती है।

हमारे घरों में हालात कुछ ऐसे हैं की उनसे कोई पूछता नहीं और वे किसी को बताती नहीं। महिलाएं अपनी शारीरिक और मानसिक तकलीफों के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाती। नतीजतन उन्हें न तो सही समय पर इलाज मिल पाता है और न ही सलाह। देश के ग्रामीण इलाकों में तो स्थितियां और भी बदतर हैं । वहां तो जागरुकता की आज भी इतनी कमी है कि महिलाएं कई बार शारीरिक और मानसिक विकारों के इलाज के लिए नीम हकीमों में उलझ जाती है।

चाहे गांव हो या शहर ऐसे कई किस्से आपको सुनने, जानने को मिल जायेंगें कि जब तक महिलाएं डॉक्टर पास इलाज के लिए आती हैं तब तक ज्यादातर मामलों में बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। जिसकी सबसे बड़ी वजह जानकारी की कमी और पारिवारिक सहयोग का अभाव है। आज भी अनगिनत औरतों के साथ उनके पति हिंसात्मक व्यवहार करते हैं।

घरेलू हिंसा महिला स्वास्थ्य से एक जुड़ा अंतरंग पहलू है। चारदीवारी के भीतर महिलाओं के साथ होने वाला यह बर्ताव उन्हें सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सशक्त बनाने की सारी कवायदों को तो बेमानी साबित करता ही है उन्हें कई तरह की मनोवैज्ञानिक बीमारियों की ओर भी धकेलता है।

हमारे परिवारों में महिलाएं अपने अंदरूनी शारीरिक बदलावों और समस्याओं से भीतर ही भीतर जूझती रहती है। इस तरह मन ही मन जूझना और शारीरिक तकलीफ होने पर भी चुप रहना उनकी आदत बन सी जाती है। जिसके चलते शारीरिक व्याधियों तो पहले से होती ही हैं महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य भी बिगडऩे लगता है। यों भी पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं मानसिक बीमारी की ज्यादा शिकार होती है। यदि मानसिक बीमारी में महिला एवं पुरूषों का अनुपात देखा जाए तो पुरूषों की अपेक्षा दोगुनी संख्या में महिला मरीज पाई जाती हैं।

मैं मानती हूं कि अच्छी सेहत के बिना महिलाओं के सशक्तीकरण की सोच को सार्थक नहीं किया जा सकता। महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में आ रही गिरावट की वजह चाहे जो भी हो, आज के हालात भविष्य में हमारे पूरे सामाजिक और पारिवारिक ढांचे के चरामरा जाने के खतरे की ओर भी संकेत करते नजर आ रहे हैं।

महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सेहत की संभाल में पिछड़ती महिलाएं अन्य क्षेत्रों में कितना आगे बढ़ पाएंगीं......? अगर उनका स्वास्थ्य ही ना रहे तो सशक्तीकरण कैसे संभव है......?

1. घरेलू हिंसा के लिए मुख्य रूप से पुरुषों की मानसिकता जिम्मेदार है | क्योंकि महिला मुखर हो विरोध करे या सहनशीलता दिखाए। दोनों ही परिस्थतियों में घरेलू हिंसा का शिकार होती है अगर पुरुषों की मानसिकता उन्हें सम्मान देने की नहीं है।

2. निश्चित रूप से फ़िल्मी संस्कृति का प्रभाव शहरों, कस्बों और गांव तक सभी पर पड़ता है। आज के दौर में तो यह नकारात्मक ही नज़र आता है।

3. बलात्कार की घटनाएं रोकना तब तक संभव नहीं जब तक पारिवारिक, प्रशासनिक और सामाजिक हर स्तर पर कोशिशें नहीं की जातीं। कठोर दंड के साथ ही घर के बेटों को सही संस्कार दिए जाएं। महिलाओं का सम्मान करने का पाठ पढ़ाया जाए, यह जरूरी है ऐसे कुत्सित कृत्यों को रोकने के लिए।

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