प्रस्तुत है अमेरिका से लेखिका मालती देसाई के विचा र
हर महिला को आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए। महिला का घर/परिवार के लिए जो योगदान है, अनमोल है। निष्काम कर्मयोग है। और महिला को भी अपने 'स्त्रीत्व' को जीने का पूरा हक है।
जब नन्ही बेटी होती है, उसका नेचर है एक तितली बनकर उड़ते रहना एवं पिता/भाई/परिवार का फर्ज है उसकी सुरक्षा करना। बेटियां अपने व्रत/पुण्य द्वारा अपने पिता/भाई के लिए भाग्य के द्वार खोलनेवाली साक्षात् लक्ष्मी ही है। बोझ कभी नहीं है।
जब वही बेटी युवती होती है। वह लाज एवं श्रृंगार का पर्याय होती है। ऐसी पवित्र युवती के साथ छेड़खानी करना दुर्भाग्य के द्वार खोलना है।
युवती का संरक्षण करना एक नेक पुण्य कार्य माना जाता है। विज्ञान कहता है वहां 'सकारात्मक ऊर्जा एकत्र होती है।
जब युवती शादी करके 'अपना घर' बसाने चल पड़ती है तब पति के साथ दोनों परिवार का धर्म है कि उसकी रक्षा सम्पूर्ण रूप में हो!
इसे हम चाहे विज्ञान के नजरिए से अमल करें चाहे धर्म के नजरिए से। परिणाम अद्भुत मिलते हैं। इससे समाज भी सकारात्मक होगा।
घरेलू हिंसा में महिला की ख़ामोशी/सहनशक्ति को 'उसकी कमजोरी ' मानकर ही फायदा उठाया जा रहा है।
यूं तो मैं मानती हूं कि खुद महिला सक्षम है पर अब ज्यादा सक्षम होना होगा। सामाजिक स्तर पर सोच में बदलाव बिलकुल लाया जा सकता है। बदलते दौर में आने वाली पीढ़ी के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना बिलकुल कम होती जा रही है। यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है। महिलाओं को भी अपना सम्मान बनाए रखने की जरूरत है।
मैं मानती हूं बलात्कार जैसी घटनाएं रोक पाना बिलकुल संभव है। घर,परिवार से लेकर स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, रास्ते पर कहीं पर भी ऐसे 'गंदे' दिमाग वालों के दिल-दिमाग में 'कानून का खौफ' बैठा देना चाहिए।
ऐसे लोगो को मिलने वाली हर प्रकार की आर्थिक सहायता बंद कर देना चाहिए। समाज में बहिष्कार होना चाहिए। हर हाल में नपुसंक कर देना ही समाधान है।
बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के लिए इंसान का गंदा दिमाग जिम्मेदार है। ऐसे इंसान 'ल्युनेटिक" होते हैं। समाज के लिए खतरा होते हैं। मासूम बच्चियों के साथ बढ़ती बलात्कार की वारदातों के पीछे इंसान के दिमाग की विकृति के साथ विकृत राजकीय माहौल, विकृत सामजिक-शैक्षणिक माहौल साथ में बॉलीवुड का विकृत मनोरंजन जिम्मेदार है।
विदेश में भी ऐसी घटनाएं होती हैं पर भारत में ज्यादा दीख रही है। अमेरिका में जहां मैं रहती हूं हमसे लोग एक ही प्रश्न पूछ रहे हैं- 'भारतीय संस्कार-परंपराएं-समाज-धर्म व सरकार को क्या हो गया है?
यह प्रस्तुति संपादित स्वरूप में है।