योग की भक्ति

भक्ति : योग का भजन

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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योग में कहा गया है कि सुख या मोक्ष प्राप्त करने के लिए दो रास्ते हैं- संकल्प, ज्ञान और समर्पण। संकल्प का मार्ग कर्म योगियों और समर्पण का मार्ग भक्तों का। जिस मनुष्य का स्वभाव भावना या भक्ति में लीन होता है उसे भक्ति योग में रमना चाहिए।

भक्ति का भाव शरीर और मन-मस्तिष्क के कष्ट मिटा देता है। अधिकतर साधु-संत के मार्ग से ही मोक्ष को पहुँचे हैं। भक्ति का मार्ग बहुत ही सरल जान पड़ता है, लेकिन यह सबसे कठिन है और सबसे सरल भी।

*भक्त कौंन : मंदिर में जिन लोगों को आप देखते हैं उनमें से कितने भक्त होंगे यह शोध का विषय है। भगवान से कुछ माँगने वालों की ही संख्या वहाँ ज्यादा होगी। जब मनुष्य अपने सांसारिक स्वार्थ को छोड़कर भगवान को भजता है तब ही वह ‍भक्ति योग का मार्गी कहलाता है। भक्त को साधक, उपासक, भजने वाला, व्रती, तपस्वी इत्यादि कहा जाता है।

*भक्ति शब्द का अर्थ : भक्ति शब्द की उत्पत्ति 'भज्' धातु से है, जिसका अर्थ होता है, ‘भजना’ एवं 'भाव' है। ‘सतत् रूप से सकारात्मक विचार और भाव से भगवान को भजना, याद करना या उनके प्रति समर्पण कर श्रद्धा और सबुरी का भाव रखना। भक्ति को वंदना, उपासना, पूजा, तपस्या, आराधना, जप, साधना, भजन, कीर्तन, होम आदि भी कहा जाता है, किंतु इसके समानार्थी शब्द प्रार्थना, आस्था, ‍विश्वास और श्रद्धा को माना जा सकता है।

*भक्ति के प्रकार : वेद, योग, उपनिषद, गीता, पुराण आदि ग्रंथों में भक्ति के बहुत से प्रकार बताकर उसकी व्याख्‍या की गई है। जैसे, सोपाधिक, निरुपाधिक और नवधाभक्ति आदि सभी के उप प्रकार भी हैं, लेकिन तत्व ज्ञानी विस्तार को नहीं सार को पकड़ता है। भक्ति में वही रमता है जिसकी भगवान में श्रद्धा है तब वही व्यक्ति भक्त कहलाता है। भक्ति के लिए निष्ठा एवं समर्पण होना जरूरी है।

*भक्ति का लाभ : भक्ति का आधार सकारात्मक भावना है। हमारे भीतर प्रतिक्षण अच्‍छी और बुरी भावना की उत्पत्ति सांसारिक प्रभाव से होती रहती है। इस प्रभाव से बचकर जो व्यक्ति भगवान का भजन, चिंतन या मनन करते हुए स्वयं के भीतर सकारात्मक और निर्मल भाव का विकास करने लगता है तो इसके अभ्यास से धीरे-धीरे उसके आस-पास शांति और सुख का वातावरण निर्मित होने लगता है।

उसके जीवन में सभी कार्यों के शुभ परिणाम आने लगते हैं। भगवान से बगैर माँगे उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होने लगती है। यह स्थिति शरणागति की होती है। शरणागति की स्थिति में भक्त लगातार भगवान की शरण में होता है।

*भक्ति की विशेषताएँ : यह मार्ग बहुत ही सरल है। भक्त कोई भी हो (बन) सकता है। यह मार्ग सभी के लिए समान रूप से खुला है। भक्त होने के लिए किसी भी प्रकार की योग्यता, ज्ञान आदि की आवश्यकता नहीं। बस भक्त का सरल, सहज एवं निर्मल होना ही भक्ति के लिए जरूरी है। जो व्यक्ति अद्वैष, मैत्री भाव युक्त, करूणा युक्त, अहंकार रहित, सुख-दुख सहने में सक्षम है वही भक्त बनने योग्य है।

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