हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख कर उनके अभ्यास पर जोर दिया गया है।
ये हैं- महामुद्रा महाबंधो महावेधश्च खेचरी। उड्यानं मूलबंधश्च बंधो जालंधराभिश्च:।। करणी विपरीताख्या वज्रोली शक्तिशालनम। इंद हि मुद्रादशकं जराभरणनाशनम।।
अर्थात - महामुद्रा, महाबंध, महावेधश्च, खेचरी, उड्डीयान बंध, मूलबंध, जालंधर बंध, विपरीत करणी, वज्रोली, शक्ति, चालन- ये दस मुद्राएँ जराकरण को नष्ट करने वाली एवं दिव्य ऐश्वर्यों को प्रदान करने वाली हैं। अर्थात 4 बंध और 6 मुद्राएँ हुईं, लेकिन इसके अलावा भी अन्य कई बंध और मुद्राओं का उल्लेख मिलता है।
इसके अलावा अलग-अलग ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग मुद्राएँ और बंध होते हैं। योगमुद्रा को कुछ योगाचार्यों ने 'मुद्रा' के और कुछ ने 'आसनों' के समूह में रखा है। दो मुद्राओं को विशेष रूप से कुंडलिनी जागरण में उपयोगी माना गया है- सांभवी मुद्रा, खेचरी मुद्रा।
मुख्यत: 6 आसन मुद्राएँ हैं- 1. व्रक्त मुद्रा, 2. अश्विनी मुद्रा, 3. महामुद्रा, 4. योग मुद्रा, 5. विपरीत करणी मुद्रा, 6. शोभवनी मुद्रा। जगतगुरु रामानंद स्वामी पंच मुद्राओं को भी राजयोग का साधन मानते हैं, ये है- 1. चाचरी, 2. खेचरी, 3. भोचरी, 4. अगोचरी, 5. उन्न्युनी मुद्रा।
मुख्यत: दस हस्त मुद्राएँ : उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है: -(1) ज्ञान मुद्रा, (2) पृथवि मुद्रा, (3) वरुण मुद्रा, (4) वायु मुद्रा, (5) शून्य मुद्रा, (6) सूर्य मुद्रा, (7) प्राण मुद्रा, (8) लिंग मुद्रा, (9) अपान मुद्रा, (10) अपान वायु मुद्रा।
मुद्राओं के लाभ : कुंडलिनी या ऊर्जा स्रोत को जाग्रत करने के लिए मुद्राओं का अभ्यास सहायक सिद्धि होता है। कुछ मुद्रओं के अभ्यास से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त की जा सकती है। इससे योगानुसार अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। यह संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।