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नियमित योग से बनें मानसिक रूप से मजबूत, मात्र 2 उपाय

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अनिरुद्ध जोशी

कहते हैं कि शरीर मजबूत तो मन और मस्तिष्क भी मजबूत रहेगा लेकिन यह धारणा गलत है। मजबूत शरीर वाले में मानसिक रूप से रोगी रहते हैं। अखाड़े या जिम में की जाने वाली कसरत से शरीर मजबूत जरूर होता है लेकिन मन और मस्तिष्क वैसा ही रहता है। योग आपने मन और मस्तिक्क को मजबूत करके मानसिक रूप से आपको शक्तिशाली बनाता है। कैसे आओ यही जानते हैं।
 
 
1.योगासन का शरीर : बचपन में हमारा शरीर लचकदार था। उम्र बड़ने के साथ हड्डियां कड़क होती गई। हार्ड बोन के टूटने का खतरा भी बढ़ जाता है। एक बच्चा जब छोटी-मोटी जगह से गिरता है तो फ्रेक्चर होने के कम चांस है, लेकिन जवान व्यक्ति जब गिरता है तो फ्रेक्चर होने के चांस ज्यादा होते हैं। योग हमारी हड्ड़ियों को फिर से लचकदार बनाकर लंबे समय तक उनके कैल्शियम के क्षरण को रोकता है।
 
योगासन का शरीर लचीला और सॉफ्ट होता है। इसे अतिरिक्त भोजन की आवश्यकता नहीं होती और यह सभी तरह के रोग से बचने की क्षमता रखता है। लगातार योग करने के बाद योग छोड़ भी देते हैं तो इससे शरीर में किसी भी प्रकार का ढलाव नहीं आता और हाथ-पैर में दर्द भी नहीं होता। जब स्फूर्ती दिखाने का मौका होता है तो यह शरीर एकदम से सक्रिय होने की क्षमता रखता है।
 
यदि आहार नियम का पालन करते हुए लगातार सूर्य नमस्कार के साथ आप योग के प्रमुख आसन करते रहते हैं तो 4 माह बाद आपका शरीर एकदम लचीला होकर स्वस्थ हो जाएगा। आप हरदम एकदम तरो-ताजा और खुद को युवा महसूस करेंगे। योगासनों के नियमित अभ्यास से मेरूदंड सुदृढ़ बनता है जिससे शिराओं और धमनियों को आराम मिलता है। शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग सुचारु रूप से कार्य करते हैं। यही मस्तिष्क को सुदृढ़ करने का प्रारंभिक चरण है। 
 
2. प्राणायाम का मन : मस्तिष्क की कार्य क्षमता और मजबूती बढ़ती है प्राणायाम से। इससे मस्तिष्क में ऑक्सिजन का लेवल बढ़ जाता है। प्राणायाम करते रहने से मन में कभी भी उदासी, खिन्नता और क्रोध नहीं रहता है। मन हमेशा प्रसन्नचित्त रहता है जिसके चलते आपके आसपास एक खुशनुमा माहौल बन जाता है। आप जीवन में किसी भी विपरीत परिस्थिति से हताश या निराश नहीं होंगे। आप चाहें तो ध्यान को भी अपनी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाकर मस्तिष्क को और भी मजबूत कर सकते हैं।
 
मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का द्वंद्व और विकार नहीं रहता है। व्यक्ति की सोच बहुत ही विस्तृत होकर परिष्कृत हो जाती है। परिष्कृत का अर्थ साफ-सुथरी व स्पष्ट। ऐसे में व्यक्ति की बुद्धि बहुत तीक्ष्ण हो जाती है तथावह जो भी बोलता है, सोच-समझकर ही बोलता है। भावनाओं में बहकर नहीं बोलता है। योग करते रहने का प्रभाव यह होता है कि शरीर, मन और मस्तिष्क के ऊर्जावान बनने के साथ ही आपकी सोच बदलती है। सोच के बदलने से आपका जीवन भी बदलने लगता है। योग से सकारात्मक सोच का विकास होता है।
 
यदि किसी भी प्रकार का मानसिक रोग है तो वह मिट जाएगा, जैसे चिंता, घबराहट, बेचैनी, अवसाद, शोक, शंकालु प्रवृत्ति, नकारात्मकता, द्वंद्व या भ्रम आदि। एक स्वस्थ मस्तिष्क ही खुशहाल जीवन और उज्ज्वल भविष्य की रचना कर सकता है। योग से जहां शरीर की ऊर्जा जाग्रत होती है, वहीं हमारे मस्तिष्क के अंतरिम भाग में छिपी रहस्यमय शक्तियों का उदय होता है। जीवन में सफलता के लिए शरीर की सकारात्मक ऊर्जा और मस्तिष्क की शक्ति की जरूरत होती है। यह सिर्फ योग से ही मिल सकती है, अन्य किसी कसरत से नहीं।

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