'लव जिहाद' अध्यादेश के औचित्य पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

DW
शुक्रवार, 27 नवंबर 2020 (09:21 IST)
कथित लव जिहाद के मामले में यूपी सरकार अध्यादेश लाई है और दूसरी राज्य सरकारें भी कानून बनाने को लेकर उत्सुक हैं। उधर इलाहाबाद उच्च न्यायालय जीवन साथी चुनने को मौलिक अधिकार बताते हुए इसमें दखल को गैरकानूनी बता रहा है।
 
यूपी कैबिनेट ने उस अध्यादेश के मसौदे पर अपनी मुहर लगा दी है जिसके तहत शादी के लिए 'छल, कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण' कराए जाने पर अधिकतम 10 साल जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। अब यह अध्यादेश राज्यपाल के पास उनकी स्वीकृति के लिए भेजा गया है और उसके बाद इसके बारे में नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा।
 
मूल अधिकारों का उल्लंघन
 
दूसरी ओर, सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या यह इतना बड़ा मसला है कि इस पर कानून बनाया जाए और वो भी इतनी आपात स्थिति में कि अध्यादेश जारी किया जाए। हालांकि यूपी के अलावा मध्‍यप्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक जैसे राज्‍यों ने भी 'लव जिहाद' को लेकर कानून बनाने की बात कही है।
 
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना है यूपी सरकार द्वारा लाया जा रहा यह कानून कानून संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है। वो कहते हैं, 'हमारा संविधान किसी भी धर्म के 2 वयस्क युवक-युवती को आपसी रजामंदी से विवाह करने की अनुमति देता है। धर्म या जाति के आधार पर इसमें बंदिश नहीं लगाई जा सकती। यह कानून संविधान में किसी व्यक्ति को मिले मूल अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। जहां तक मुझे लगता है कि यदि यह सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया तो वहां यह खारिज कर दिया जाएगा।'
 
प्रशांत भूषण कहते हैं कि आईपीसी की धारा 493 में पहले से ही यह प्रावधान हैं कि अगर विवाह करने के लिए किसी तरह का प्रलोभन दिया जाता है, दबाव डाला जाता है या कोई अन्य अवैध रास्ता अपनाया जाता है तो यह दंडनीय अपराध है। इसके लिए दस साल तक की कैद की सजा हो सकती है। जानकारों का कहना है कि अवैध तरीके से या जबरन कराए गए धर्म परिवर्तन के खिलाफ भी आईपीसी में स्पष्ट प्रावधान हैं। ऐसे में फिर से एक कानून लाए जाने का कोई औचित्य नहीं है।
 
यूपी में डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी विक्रम सिंह कहते हैं, 'इस नए कानून का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है। जितने भी अपराध की बात इस अध्यादेश के मसौदे में की गई है, उन सबके खिलाफ पहले ही कानून हैं और कठोर दंड के प्रावधान हैं। आप पहले से मौजूद कानूनों पर अमल तो करा नहीं पा रहे हैं, अनावश्यक तौर पर नए कानून लाकर सिर्फ भ्रमित किया जा रहा है।'
कानपुर पुलिस की जांच में क्या हुआ
 
अंतर-धार्मिक विवाहों को लेकर इस समय देश भर में बहस छिड़ी हुई है। इसका विरोध करने वाले कुछ संगठन खासकर मुस्लिम पुरुष और हिन्दू महिला की शादियों को 'लव जिहाद' बताकर इसके पीछे किसी बड़े षडयंत्र को देख रहे हैं। यूपी के कानपुर शहर में इस तरह की कई शादियों की पिछले दिनों शिकायत की गई और उन सबके पीछे मुस्लिम युवकों और कुछ मुस्लिम संगठनों की साजिश बताया गया।
 
कानपुर पुलिस ने इन शादियों की जांच के लिए आठ सदस्यों की एक एसआईटी यानी विशेष जांच टीम गठित की। इस टीम ने ऐसी 14 शादियों की जांच की लेकिन 2 महीने की जांच के बावजूद उसे किसी तरह की साजिश के सबूत नहीं मिले।
 
कानपुर जोन के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल बताते हैं, '11 मामलों में एसआईटी ने पाया कि अभियुक्तों ने धोखाधड़ी करके हिन्दू लड़कियों से प्रेम संबंध बनाए। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। बाकी तीन मामलों में लड़कियों ने अपनी मर्जी से शादी करने की बात कही है इसलिए उसमें पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी है। एसआईटी जांच में किसी तरह की साजिश या बाहरी फंडिंग जैसे सबूत नहीं मिले हैं।'
 
संविधान के खिलाफ
 
देश के गृहमंत्री रह चुके सुप्रीम कोर्ट के वकील पी. चिदंबरम कहते हैं कि अंतरधार्मिक विवाह के खिलाफ कानून लाना पूरी तरह असंवैधानिक होगा। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, 'लव जिहाद पर कानून लाना एक छलावा से ज्यादा कुछ नहीं है। यह देश में 'बहुसंख्यकों के एजेंडे' को लागू करने की कोशिश है। भारतीय कानून के तहत विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विवाह की अनुमति दी गई है। यहां तक कि तमाम सरकारें भी इसे प्रोत्साहित करती हैं।' 
 
यूपी में राज्य सरकार ने जिस दिन कैबिनेट की बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी उससे ठीक एक दिन पहले ऐसे ही एक कथित 'लव जिहाद' मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा कि अपनी पसंद के साथी के साथ जीवन जीने का अधिकार किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इसमें परिवार, समाज और सरकार का हस्तक्षेप ठीक नहीं है।
 
यूपी के कुशीनगर के रहने वाले सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार ने पिछले साल अगस्त में शादी की थी। विवाह से ठीक पहले प्रियंका ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था और अपना नाम बदल कर 'आलिया' रख लिया था। प्रियंका के परिजनों ने इसके पीछे साजिश का आरोप लगाते हुए सलामत के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी थी जिसमें उस पर अपहरण और जबरन विवाह करने जैसे आरोप लगाए थे। सलामत के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं।
 
हालांकि पूरे मामले को सुनने के बाद अदालत ने सारे आरोप निरस्त करते हुए कहा कि धर्म की परवाह न करते हुए अपनी पसंद के साथी के साथ जीवन बिताने का अधिकार जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार में ही निहित है। यह फैसला सुनाते वक्त अदालत ने अपने उन पिछले फैसलों को भी गलत बताया जिनमें कहा गया था कि विवाह के लिए धर्मांतरण प्रतिबंधित है और ऐसे विवाह अवैध हैं।
 
एनआईए ने भी की है जांच
 
दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट के कहने पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) ने केरल में कथित लव जिहाद के मामलों की जांच की थी। इस दौरान एनआईए ने 11 अंतरधार्मिक शादियों की पड़ताल की थी लेकिन किसी भी मामले में उसे जबरन धर्म परिवर्तन और कथित 'लव जिहाद' के सबूत नहीं मिले थे।
 
यह जांच बहुचर्चित हादिया मामले की वजह से हुई थी जिसमें केरल के कोट्टायम जिले की अखिला अशोकन ने धर्म परिवर्तन के बाद हादिया जहां के रूप में शफीन जहां से निकाह किया था। इस मामले को हादिया के पिता अशोकन ने 'लव जिहाद' का नाम देते हुए केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने यह शादी रद्द कर दी थी। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया था।
 
सुप्रीम कोर्ट के कहने पर एनआईए ने केरल में कथित लव जिहाद के मामलों की जांच करते हुए 11 अंतरधार्मिक शादियों की पड़ताल की थी। ये 11 मामले उन 89 अंतर धार्मिक शादियों में से चुने गए थे जिनमें लड़कियों के अभिभावकों ने शिकायत की थी और जिन्हें केरल पुलिस ने एनआईए को उपलब्ध कराए थे।
 
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा उपचुनाव के दौरान एक जनसभा में कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून लाने की घोषणा की थी। वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि ऐसी घोषणाओं के पीछे सिवाय राजनीतिक संदेश देने के और कुछ नहीं है। शरद प्रधान के मुताबिक, 'आखिर कोई इमरजेंसी वाली स्थिति आ गई थी क्या कि सरकार को इसके खिलाफ अध्यादेश लाना पड़ा। अध्यादेश तो बहुत ही आपात स्थिति में लाया जाता है जबकि सदन न चल रहा हो और लाए भी हैं तो उसमें क्या नया है। सारे कानून पहले से मौजूद हैं और जो नहीं है उसे सुप्रीम कोर्ट ही खारिज कर देगा बाद में। कुल मिलाकर सरकार एक खास वर्ग को एक खास वर्ग के खिलाफ संदेश देना चाहती है जैसा कि सीएए प्रदर्शन और दूसरी घटनाओं के मामले में हुआ है।'

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