Pradosh Vrat 2024: बुध प्रदोष व्रत आज, जानें महत्व और पूजा विधि और उपाय

WD Feature Desk
बुधवार, 13 नवंबर 2024 (09:50 IST)
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Budh Pradosh Vrat : वर्ष 2024 में दीपावली के बाद पड़ने वाला कार्तिक माह का बुध प्रदोष व्रत आज यानि 13 नवंबर, बुधवार के दिन रखा जा रहा है। बुध प्रदोष व्रत की पूजा सायंकाल के समय प्रदोष काल में की जाएगी। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार प्रदोष व्रत कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी के दिन किया जाता है।

Highlights 
  • कार्तिक माह का बुध प्रदोष व्रत आज। 
  • बुध प्रदोष व्रत बुधवार को।
  • कार्तिक माह का दूसरा प्रदोष व्रत कब है?
यहां जानते हैं बुध त्रयोदशी पर पूजन की विधि, महत्व और उपाय के बारे में खास जानकारी...
 
बुध प्रदोष व्रत महत्व क्या है : धार्मिक मान्यतानुसार प्रदोष व्रत हर महीने कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। इस दिन शाम को प्रदोष समय में भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से सभी परेशानियां दूर होकर मोक्ष प्राप्त होता है। इस व्रत के संबंध में मान्यता के मुताबिक बुध प्रदोष व्रत करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार बुधवार को आने वाले प्रदोष व्रत से ज्ञान, शिक्षा की प्राप्ति तथा समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन गंगा जल के उपाय करने से खास तौर पर शिव जी की कृपा प्राप्त होती है।
 
कैसे करें बुध प्रदोष के दिन शिव जी का पूजन : 
 
पूजा विधि : 
इस दिन भगवान शिव जी तथा माता पार्वती की धूप, बेल पत्र आदि से पूजा-आराधना करनी चाहिए। 
जिस वार के अनुसार जो प्रदोष व्रत किया जाता है, वैसे ही उसका फल प्राप्त होता है। 
त्रयोदशी के दिन गाय का कच्चा दूध तथा शुद्ध जल शिव जी को अर्पित करने से वे शीघ्र ही प्रसन्न होते है।
इस दिन हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। 
इस दिन शिव पूजन से चंद्र दोष दूर होकर शांति का अनुभव कराते है। 
प्रदोष व्रत करने वाले को सौ गाय दान करने का फल प्राप्त होता है। 
प्रदोष या त्रयोदशी व्रत मनुष्य को संतोषी एवं सुखी बनाने वाला माना गया है। 
आज के दिन 'ॐ गं गणपतये नम:।' तथा 'ॐ शिवाय नम:' या ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ। मंत्र का जाप करना फलदायी रहता है।
 
प्रदोष व्रत पर करें गंगा जल के उपाय :
 
• गंगा जल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। 
• कई धार्मिक अनुष्ठानों, पूजन-अभिषेक में गंगा जल का प्रयोग करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है।
• प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि अपने कमंडल में गंगा का जल रखकर इसी जल से वरदान या श्राप देते थे।
• गंगा जल का आचमन करना पुण्यकारी कार्य है, इसे पीने से प्राणवायु बढ़ती है। 
• गंगा को पापमोचनी कहा गया है, मरते समय व्यक्ति को गंगा जल पिलाने से मोक्ष मिलता है।
• जन्म-मरण, ग्रहण के सूतक का शुद्धिकरण गंगा जल से किया जाता है।
 
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