ज्योतिष शास्त्र में सप्तम भाव से दाम्पत्य सुख एवं जीवनसाथी का विचार किया जाता है। इसे जाया भाव या जामित्र भाव कहा जाता है। इस भाव से सम्बन्धित दोष को जाया दोष या जामित्र दोष कहते हैं। जामित्र दोष में विवाह करना सर्वथा घातक होता है।
इसके फ़लस्वरूप भावी दंपत्ति दाम्पत्य सुख से वंचित रह सकते हैं। विवाह मुहूर्त में लग्न का निर्धारण करते समय यदि चन्द्र लग्न या लग्न से सप्तम स्थान में कोई भी ग्रह, चाहे वह पूर्ण चन्द्र ही क्यों ना हो, स्थित हो तो इसे जामित्र दोष कहा जाता है। इस दोष विवाह में करना घातक होता है। अत: विवाह लग्न का निर्धारण करते समय जामित्र दोष का परीक्षण कर इसे त्यागना उचित व हितकर रहता है।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया