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शनिदेव से डरें नहीं, शनिदेव को समझें, यह जानकारी आपकी आंखें खोल देंगी

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भारतीय ज्योतिष पद्धति नवग्रह और 12 राशियों पर आधारित है। सूर्यपुत्र शनि सबसे धीमी  गति से चलने वाला ग्रह है। यह एक राशि पर करीबन 2 वर्ष 6 माह रहता है। बारह राशि की परिक्रमा 29 वर्ष 5 माह 17 दिन 5 घंटों में पूर्ण करता है। शनि 140 दिन वक्री रहता है और मार्गी होते समय 5 दिन स्तंभित रहता है। शनि ग्रह के कारण ही मानव समाज में एक अजान भय का वातावरण बना हुआ है।
 
शनि जब किसी राशि पर भ्रमण करता है, उस वक्त वह अपनी वर्तमान राशि, पिछली राशि, अगली राशि, तीसरी राशि, दसवीं राशि, बारहवी राशि और शनि स्वयं की राशि मकर और कुंभ राशि को पूर्ण दृष्टि से देखता है। शनि की महादशा भी 19 साल की रहती है। जन्म पत्रिका के बारह घर में से दो-तीन को छोड़ सभी घर शनि की दृष्टि से प्रभावित रहती हैं। भय का यह भी एक मुख्य कारण है।
 
शनि के स्वभाव पर विचार करें- (1) शनि अपना प्रभाव तीन चरणों में दिखाता है, जो साढ़े 7 सप्ताह से साढ़े 7 वर्ष तक रहता है। पहले चरण में जातक का संतुलन बिगड़ना, निश्चय विचार से भटकाव। दूसरे चरण में मानसिक और शारीरिक रोग। तीसरे चरण में मस्तिष्क का ठीक नहीं रहना, क्रोधी होना।

(2) शनि न्यायप्रिय और कर्मप्रधान ग्रह है। अध्यात्म, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक सुख और शारीरिक सुख का दाता है। इसके अलावा शनि अध्यात्म, आर्थिक वैभवशाली जीवन इत्यादि को विशेष तौर पर प्रभावित करता है।
 
शनि के कारण ही व्यक्ति की जीवनशैली अभावमुक्त, सुख और शांति से व्यतीत होगी। हमेशा प्रसन्नचित्त रहेगा, चाहे शनि कितना ही खराब क्यों न हो। शनि के प्रभाव का सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर यह पाया गया कि शनि में दुर्गुणों की अपेक्षा गुणों की भरमार है।
 
गुण- कर्मप्रधान, न्यायप्रिय, त्यागी, लोककल्याण के लिए प्रयत्नशील, मिलनसार, उदार, राष्ट्रीय कार्य में तत्पर, घर बसाने वाला, परोपकार वृत्ति, ज्ञानी, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने वाला, विश्व बंधुत्व, प्रेम-पवित्रता की भावना विकसित करने वाला, किसी भी गूढ़ शास्त्र में तह तक खोज करने वाला, अभ्यास, लेखन, ग्रंथ प्रकाशन, तत्व ज्ञान का प्रसार, अपमानित स्थिति में दीर्घकाल न रहकर स्वाभिमान से दो दिन में मरना अच्छा, ऐसी भावना वाला, हंसी-मजाक का वातावरण बनाना, व्यावहारिक ज्ञान दाता, कुशलता बढ़ाने वाला, व्यापार में चतुरता देने वाला, भोजन बनाने की कला में निपुणता, झूठ और सत्य का भेद समझने वाला, गंभीरता से बोलने वाला, आत्मविश्वासी, मितव्ययी, इच्‍छाशक्ति प्रबल होने से सहनशील, शांत, स्थिर, दृढ़ प्रकृति, अनासक्त की इच्छा न होते हुए भी अधिकार प्राप्त करने वाला, अन्याय का प्रतिकार करने वाला, विचार गुप्त रखने वाला, चिकित्सा व्यवसाय देने वाला।
 
शनि का प्रभाव :- यह ग्रह शांत, गंभीर और विचारी प्रवृत्ति देता है। वृद्धावस्था पर इसका अधिकार, आत्मविश्वास, संकुचित वृत्ति, मितव्ययी, धूर्तता, इच्‍छाशक्ति प्रबल होने से सहनशील, स्थिर, दृढ़ प्रकृति होती है। उल्लास, आनंद, प्रसन्नता- ये गुण कम दिखाई देते हैं। हंसी-मजाक का वातावरण बनाना, व्यावहारिक ज्ञान और कुशलता के बल पर सफल व्यापारी, कर्मचारी होना।
 
शनि के अवगुण : - स्वार्थी, धूर्त, दुष्ट, आलसी, मंदबुद्धि, अविश्वासी, गर्वीला, नीच कार्य करने वाला, झगड़ालू, झगड़े लगाने वाला, थोड़ी बचत करते हैं और बड़े खर्च रोक नहीं सकते।
 
 ईर्ष्या करने वाला, दूसरों की तरक्की में बुरा मानने वाला, कठोर बोलने वाला, असंतोष, व्यसनों में आसक्ति, स्त्रियों की अभिलाषा, पाप-पुण्य की परवाह न करना, दुराचरण, अच्‍छे कामों में विघ्न लाना, स्वार्थी, दूसरों की गलतियां ढूंढते रहना, वीभत्स बोलना, दूसरों के धन का अपहरण करना, धन की तृष्णा, सत्ता की कोशिश, जुल्म और दुराचार करना, क्रोधी प्रवृत्ति, उपाधियों की प्राप्ति के लिए झूठ का आश्रय लेना, गद्दारी, दारिद्रय, ग्रह कलह।
 
शनि एक अच्‍छा ग्रह है। यदि इसके स्वभाव के अनुरूप कार्य होगा तो शनि के दुष्प्रभाव का किंचित मात्र भी असर नहीं होगा। रवि और गुरु द्वारा शनि पराजित होता है। यह तुला, मकर  तथा कुंभ राशि में स्त्री स्थान में, स्वग्रह में, शनिवार को अपनी दशा में, राशि के अंत भाग में, युद्ध के समय, कृष्णपक्ष में तथा वक्री हो, इस समय, किसी भी स्थान पर हो बलवान होता है। 
 
शनि के उपाय, जीवन में अपनाएं  
 
(1) प्रात:काल सूर्य उदय होने से पूर्व उठकर सूर्य भगवान की पूजा करें, गुड़ मिश्रित जल को चढ़ाएं। 
(2) माता-पिता और घर के बुजुर्गों की सेवा करें। 
(3) गुरु या गुरुतुल्य के आशीर्वाद लेते रहें। 
(4) किसी को अकारण कष्ट नहीं दें और प्रत्येक को भगवान का स्वरूप समझें। 
(5) पारिवारिक भरण-पोषण के लिए ईमानदारी और मेहनत से कमाए धन का सदुपयोग करें। 
(6) अपने ईष्ट पर अटूट श्रद्धा और विश्वास रखें और नियमित रूप से उनकी पूजा-अर्चना करें। 
(7) जो व्यक्ति कर्म और मन से सात्विक हो, परोपकार वृत्ति हो, गरीबों को अपनी समर्थता के अनुसार दान करता हो उन्हें शनि परेशान नहीं करते। 
(8) दुर्व्यसन से परहेज करें। 
शनि के प्रभाव से फिर भी डर लगता हो, तो ऐसे व्यक्ति को माणक या पुखराज धारण करना चाहिए। 
 
बीमारी अवस्था में एक कटोरी में मीठा तेल लेकर अपना चेहरा देखें, फिर उस कटोरी को आटे से भरकर गाय को खिला दें। बीमारी से राहत मिलने लगेगी। ग्रह शांति के लिए प्रत्येक अमावस, पूर्णिमा की शाम एक दोने में पके हुए चावल लें। उस पर दही डाल दें। अपने मकान में लेकर घूमें, फिर यह दोना किसी पीपल के वृक्ष के नीचे जाकर रख आएं। शनि को अपना हमसफर मानें और उसके स्वभाव के अनुसार चलकर स्वयं का जीवन और परिवार का जीवन सुखमय बनाएं।
 
-अरविंद जोशी

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