कैसे बनते हैं प्रेत, यह विश्लेषण अचरज में डाल देगा आपको

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सामान्यत: 'प्रेत' शब्द अशरीरी आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है। यह आत्मा की उस स्थिति का द्योतक है, जबकि शरीर तो नष्ट हो जाए, पर आत्मा संसार से बंधी रहे। यह आत्मा की एक अस्वाभाविक स्थिति है। 
 
आइए, अब जानते हैं कि आत्मा इस अस्वाभाविक स्थिति में प्रेत होकर क्यों और कैसे पहुंच जाती है।
 
प्रेत किसी भी जीवधारी का सूक्ष्म शरीर होता है। स्वाभाविक मृत्यु के समय व्यक्ति के अंग धीरे-धीरे काम करना बंद करते हैं अर्थात उसके ऊर्जा परिपथ का क्रमश: क्षरण होता जाता है। पहले उसके हाथ-पांव आदि सुन्न होते हैं, फिर शरीर सुन्न होता है, तत्पश्चात मष्तिष्क की चेतना से हृदय का संबंध टूटता है, प्राण बाद में निकलते हैं। 
 
यह समस्त क्रिया कोशिकाओं में स्थित विद्युत कणों के क्रमश: क्षरण के कारण होती है। कोशिकाओं के माइटोकांड्रिया जिस विद्युत का निर्माण करते हैं वे स्टोर होते हैं, फिर कोशिकाओं को शक्ति प्रदान करते हैं और शरीर के ताप को बनाए रखने के साथ उपापचय की क्रियाएं नियमित रखते हैं। 
 
कोशिकाओं के विद्युत केंद्रों का संबंध विद्युतीय शक्ति किरणों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ा होता है। स्वाभाविक मृत्यु में यह संबंध धीरे-धीरे क्षीण होकर टूट जाता है और इलेक्ट्रॉनिक (विद्युतीय) शरीर नष्ट हो जाता है जिससे आत्मा जुड़ी होती है। विद्युतीय शरीर नष्ट हो जाने पर आत्मा दूसरा विद्युतीय शरीर तलाश करती है और भ्रूण के एक निश्चित स्तर के विकास पर उसमें प्रवेश करती है जिससे उसे विद्युतीय शरीर मिलता है।
 
जब कोई मनुष्य किसी आकस्मिक चोट, विष अथवा सांसों के बंद हो जाने या शरीर जल जाने से किसी प्रकार स्थूल शरीर की अचानक क्षति कर लेता है या यह क्षति किसी अन्य के द्वारा कर दी जाती है तो शरीर तो नष्ट हो जाता है किंतु विद्युतीय शरीर का क्षरण नहीं हो पाता अथवा अचानक आघात से शरीर के अंग काम न करने से या शरीर के अनुपयुक्त हो जाने से विद्युतीय शरीर का क्षरण नहीं हो पाता तो आत्मा उसी से बंधी रह जाती है। 
 
विद्युतीय शरीर में होने के कारण उसका प्रत्यक्षीकरण या दिखाई देना अन्य लोगों की दृष्टि में बंद हो जाता है और लोग स्थूल शरीर को निर्जीव पाकर समझते हैं कि व्यक्ति मर गया, किंतु वह उस विद्युतीय शरीर में जीवित रहता है तथा उसकी चेतना अनुभूति आदि बनी रहती है साथ ही तृष्णा, कामना, इच्छा आदि भी बनी रहती है, परंतु क्रिया के लिए शरीर नहीं होता। 
 
शरीर की क्रिया समाप्त होने से विद्युतीय केंद्रों में संचित (स्टोर) विद्युत का क्षरण अल्प हो जाता है और वह उसी विद्युतीय स्थिति में जीवित रहता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यह 'विद्युतीय-शरीर ही प्रेतात्मा है।' विद्युतीय शरीर के क्षरण पर ही उस आत्मा की मुक्ति निर्भर हो जाती है। 
 
कभी-कभी यह विद्युतीय शरीर हजारों वर्षों में क्षरित होता है। यह स्थिति जीव के लिए अत्यंत कष्टप्रद स्थिति है तथा वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता और छटपटाता रहता है और स्वयं असंतुष्ट और कष्ट में होने से अथवा कामनाएं अधूरी रहने से दूसरों को कष्ट देता है तथा कामनाएं पूरी करने का प्रयास करता है। 
 
इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त पितृ इसीलिए असंतुष्ट होते हैं कि वे देखते हैं कि हम अपना जीवन जी रहे हैं किंतु उनके लिए या उनकी मुक्ति के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। इसीलिए जो इस स्थिति के जानकार हैं, वे इनकी मुक्ति (इलेक्ट्रॉनिक बॉडी नष्ट करने) के लिए विभिन्न उपायों द्वारा इन्हें मुक्ति प्रदान करने का प्रयास करते हैं।
 
राम, हनुमान, काली, भैरव, नरसिंह जैसे देवताओं के पवित्र मंत्र या किसी ध्यान सिद्ध योगी, तांत्रिक आदि का स्पर्श इनके विद्युतीय शरीर के क्षरण को तीव्र कर देता है अर्थात विशिष्ट कंपन या सिद्ध विद्युत शरीर का प्रभाव जब इन प्रेतरूपी विद्युतीय शरीर पर पड़ता है तो उसका क्षरण तेज हो जाता है और इन्हें उसी प्रकार कष्ट होता है जिस प्रकार स्थूल शरीर के नष्ट होने से होता है इसीलिए ये इन ध्वनियों, यंत्रों, मंत्रों, ताबीजों आदि से दूर भागते हैं। ये सब विद्युतीय तरंगों की क्रियाएं हैं। प्रकृति की कुछ विशेष वनस्पतियां, वृक्ष, स्थान आदि ऐसे हैं, जहां इन विद्युतीय शरीरों को शांति मिलती है। ये वहां रहना पसंद करते हैं।

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