1.आकाश मंडल में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। प्राचीन आचार्यों ने हमारे आकाश मंडल को 28 नक्षत्र मंडलों में बांटा है। इन्हें आसमान के 12 भागों अर्थात 12 राशियों के अंतर्गत 27 नक्षत्रों में विभाजित किया है। नक्षत्रों की जानकारी की इस सीरीज में इस बार जानिए दूसरा नक्षत्र भरणी।
2.भरणी नक्षत्र आकाश मंडल में दूसरा नक्षत्र है। 'भरणी' का अर्थ 'धारक' होता है। दक्ष प्रजापति की एक पुत्री का नाम भरणी है जिसका विवाह चन्द्रमा से हुआ था। उसी के नाम पर इन नक्षत्र का नामकरण किया गया है। भरणी नक्षत्र में यम का व्रत और पूजन किया जाता है। इसका प्रतीक चिन्ह त्रिकोण, रंग लाल और वृक्ष युग्म है।
2.यदि आपका जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है तो आपकी राशि मेष है जिसका स्वामी मंगल है, लेकिन नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। इस तरह आप पर मंगल और शुक्र का प्रभाव जीवनभर रहेगा। मंगल जहां ऊर्जा, साहस व महत्वाकांक्षा देगा। वहीं, शुक्र कला, सौंदर्य, धन व सेक्स का कारण बनेगा। अवकहड़ा चक्र के अनुसार वर्ण क्षत्रिय, वश्य चतुष्पद, योनि गज, महावैर योनि सिंह, गण मानव तथा नाड़ी मध्य हैं।
3.इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक मध्यम कदकाठी, लम्बी गर्दन और सुंदर आंखों वाले होते हैं। यदि गर्दन छोटी है तो चेहरा गोल होगा। ऐसे जातक सुखी, भाग्यशाली, भवन और वाहन का मालिक होगा।
4.भरणी नक्षत्र में जन्म होने से जातक सत्य वक्ता, उत्तम विचार, वचनबद्ध, रोगरहित, धार्मिक कार्यों के प्रति रुचि रखने वाला, साहसी, प्रेरणादायक, चित्रकारी एवं फोटोग्राफी में अभिरुचि रखने वाला होता है। अपना उद्देश्य अंतिम रूप से प्राप्त करने में समर्थ व्यक्ति। 33साल की उम्र के बाद एक सकारात्मक मोड़।
5.यदि मंगल और शुक्र की जन्म कुंडली में स्थिति खराब है तो ऐसा व्यक्ति क्रूर, सदा अपयश का भागी, दूसरे की स्त्री में अनुरक्त, विनोद में समय व्यतीत करने वाला, जल से डरने वाला, चपल, निंदित तथा बुरे स्वभाव वाला होता है। ऐसा जातक बुद्धिमान होने के बावजूद निम्न स्तर के लोगों के मध्य रहने वाला, विरोधियों को नीचा दिखाने वाला, मदिरा अथवा रसीले पदार्थों का शौकीन, रोग बाधा से अधिकतर मुक्त रहने वाला, चतुर, प्रसन्नचित तथा उन्नति का आकांक्षी होता है। उसके इस स्वभाव से स्त्री और धन का सुख मिलने की कोई गारंटी नहीं।