सावन के तीसरे सोमवार को है अश्लेषा नक्षत्र, इस नक्षत्र के देव नाग महाराज हैं, जानिए खास बातें

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भारतीय ज्योतिष शास्त्रों के हिसाब से कुंडली से की जाने वाली गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले सताईस नक्षत्रों में से एक अश्लेषा नक्षत्र है। 
 
इस नक्षत्र को बुध के अधीन माना जाता है।
 
 इस नक्षत्र के देव सर्प हैं जो कि भगवान शिव के कंठ पर सुशोभित हैं। 
 
बुध को वैदिक ज्योतिष के अनुसार वाणी का कारक माना जाता है। 
 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ही इस नक्षत्र की राशि कर्क मानी जाती है जिसके स्वामी चंद्रमा माने जाते हैं। 
 
जो महादेव के जटाओं में विराजमान हैं। 
 
2021 में सावन के तीसरे सोमवार को अश्लेषा नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है... कुल मिलाकर इस दिन यह संयोग सभी के लिए बहुत सौभाग्यशाली कहा जा सकता है। रूप, गुण, कला, ज्ञान, विवेक आदि के लिए यह नक्षत्र बहुत महत्वपूर्ण होता है। 

अश्लेषा का अर्थ आलिंग होता है। आकाश मंडल में अश्लेषा नक्षत्र का स्थान 9वां है। यह कर्क राशि के अंतर्गत आता है। इस नक्षत्र का स्वामी बुध है। सूर्य के नजदीक होने से इसे प्रातः काल में देखा जा सकता है।
 
अश्लेषा नक्षत्र : इस नक्षत्र का स्वामी बुध है। अश्लेषा नक्षत्र में जन्म होने पर जन्म राशि कर्क तथा राशि स्वामी चन्द्रमा, वर्ण ब्राह्मण, वश्य जलचर, योनि मार्जार, महावैर यानी मूषक, गण राक्षस तथा नाड़ी अन्त्य है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वालों पर जीवनभर बुध व चन्द्र का प्रभाव पड़ता है।
 
* प्रतीक चिन्ह : सर्प
*रंग : लाल
*अक्षर : ड
*देव : सर्प
*वृक्ष : नागकेशर
*नक्षत्र स्वामी : बुध
*शारीरिक रचना : दुबला लेकिन कठोर शरीर, मादक और तेज आंखें।
भौतिक सुख : स्त्री और पुत्र का सुख।
 
आइए जानते हैं अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक कैसे होते हैं?
*सकारात्मक पक्ष : धाराप्रवाह बोलने वाला, हंसमुख, कलात्मक अभिरुचियों वाला, साहित्य तथा संगीत प्रेमी, प्रसिद्ध और नेतृत्वशील, सफल व्यापारी।
 
*नकारात्मक पक्ष : यदि बुध और चन्द्र खराब स्थिति में है तो जातक चालाक, क्रूर स्वभाव, व्यर्थ भ्रमण करने वाला, व्यर्थ धन को गंवाने वाला, परिवर्तनशील आचरणयुक्त, कामासक्त, कभी-कभार चोरी करने वाला, आलसी, स्वार्थी, अकस्मात आहत होने वाला होता है।

9 अगस्त को श्रावण मास का तीसरा सोमवार है। इस दिन अश्लेषा के बाद मघा नक्षत्र, वरियान योग, किंस्तुघ्न करण और औदायिक योग सौम्य का मान है। इस दिन के व्रत से पुण्य की अभिवृद्धि और पूर्वाजित पापों का क्षय होगा।

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