गुरु पूर्णिमा पर अवश्य पढ़ें श्री रामचरित मानस में वर्णित गुरु वंदना

Webdunia
* गुरु वंदना (हिन्दी अर्थसहित) 
 
 
* बंदऊं गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
 
भावार्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1॥
 
* सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
 
भावार्थ:- वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2॥
 
* श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥
 
भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥
 
* उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4॥
 
भावार्थ:- उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं-॥4॥
 
* बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥
 
भावार्थ:- मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूं, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥
 

चौपाई :
 
दोहा :
 
* जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥
 
भावार्थ:- जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1॥
 

चौपाई :
 
* गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउं राम चरित भव मोचन॥1॥
 
भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं॥1॥

सम्बंधित जानकारी

Show comments

ज़रूर पढ़ें

गुरु का मिथुन राशि में उदय, 12 राशियों का राशिफल

बाबा वेंगा के अनुसार 2025 के अगले 6 महीने इन 5 राशियों के लिए साबित होंगे लकी! कहीं आपकी राशि तो नहीं इनमें?

क्या है कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील में शिव जी के डमरू और ओम की आवाज का रहस्य?

सप्ताह भर की भविष्यवाणी: आपकी राशि के लिए क्या है खास? (जानें 12 राशियां)

शुक्र का वृषभ राशि में गोचर, 12 राशियों का राशिफल

सभी देखें

नवीनतम

गुरु पूर्णिमा पर क्यों करते हैं व्यास पूजा, जानिए पूजन का शुभ मुहूर्त

चातुर्मास कब से कब तक रहेगा, इन 4 माह में 15 चीजें नहीं खाना चाहिए

Hindi Panchang Calendar July 2025: नए सप्ताह के मंगलमयी मुहूर्त, जानें साप्ताहिक पंचांग 07 से 13 जुलाई तक

Aaj Ka Rashifal: आज इन 3 राशियों को मिलेगी खुशियों की सौगात, पढ़ें 07 जुलाई का भविष्यफल

वर्ष 2025 से ज्यादा खतरनाक रहेगा 2026, अभी से पैसा बचाना कर दें प्रारंभ, बुरे वक्त में आएगा काम, क्या होगा जानें

अगला लेख