खालसा पंथ क्या है? किसने की स्थापना?

Webdunia
सिख धर्म में खालसा पंथ नाम से एक पंथ है। इस पंथ की चर्चा अक्सर होती है। इस नाम से वर्तमान में कई तरह के अन्य संगठन भी बने हुए हैं। बैसाखी के दिन इस पंथ की स्थापना हुई थी। उस दौर में बैसाखी का पर्व अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 अप्रैल को था। आओ जानते हैं कि क्या है खालसा पंथ और किसने की थी इसकी स्थापना।
 
किसने की थी खालसा पंथ की स्थापना?
देश और धर्म की रक्षा के लिए सिख धर्म के 10वें गुरु गुरु गोविंदसिंह जी ने इस पंथ की स्थापना की थी। 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उस समय बैसाखी का पर्व भी था। यानी बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख धर्म के लोग इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
क्या है खालसा पंथ?
एक बार गुरुजी ने धर्म की रक्षार्थ बलिदान देने के लिए 3 मार्च, 1699 को वैशाख के दिन केशगढ़ साहिब के पास आनंदपुर में एक सभा बुलाई। इस सभा में हजारों लोग इकट्ठा हुए। यह भी कहा जाता है कि इस दौरान दुर्गा का यज्ञ रखा गया था। उन्होंने लोगों को परखने के लिए एक लीला रची। वे इस सभा में अपने हाथ में एक नंगी तलवार लेकर पहुंचे और कहने लगे कि 'मुझे एक व्यक्ति का सिर चाहिए, जो देना चाहता हो वो आगे आएं।' यह भी कहा जाता है कि गुरुजी ने कहा था कि, देवी दुर्गा ने बलिदान मांगा है। क्या आप में से कोई ऐसा वीर है, जो देवी की प्रसन्नता के लिए अपना सिर दे सके?"
 
सभा में कुछ देर सन्नाटा छाया रहा। उन्होंने इस तरह तीन बार आह्वान किया कि क्या कोई है जो अपना सिर दे सके? तभी 30 वर्षीय लाहौर के निवासी भाई दयाराम खत्री उठे और वे गुरुजी के सामने शीश नवाकर खड़े हो गए। गुरुजी उसे अपने साथ तंबू के अंदर ले गए और खून से सनी तलवार लेकर बाहर निकले।
 
फिर से उन्होंने लोगों से कहा कि एक और बलिदान चाहिए। जो देना चाहता हो वह सामने आए। चुपचाप खड़ी भीड़ में से तभी 33 वर्षीय दिल्ली निवासी भाई धर्मसिंह जाट ने आगे आकर सिर झुका दिया। गुरुजी उसे भी अंदर ले गए और खून से सनी तलवार के साथ बाहर आए। सभी यह घटना देखकर स्तब्ध थे।
तीसरी बार गुरुजी ने आकर फिर कहा कि और कोई है जो बलिदान देने के लिए तैयार हो? अब की बार 36 वर्षीय मोखम या मोहकचंद धोबी आगे आए। गुरुजी उनको भी तंबू में ले गए और इस बार तंबू के बाहर रक्त की धार बहती दिखाई दी।
 
गुरुजी इस बार रक्त से पूर्णत: सनी हुई तलवार लेकर बाहर आए और फिर से वहीं मांग की। इस बार दोनों बार क्रम से 33 वर्षीय बीदर निवासी भाई साहबचंद नाई और 38 वर्षीय जगन्नाथ निवासी भाई हिम्मतराय कुम्हार ने अपना सिर गुरुजी के समक्ष खड़े होकर झुका दिया। दोनों की वही दशा हुई जो प्रथम तीन की हुई थी।
 
बलिदान के इस दृश्य को देखकर लोगों की भावनाएं उमड़ पड़ी और संपूर्ण जनसमूह गुरुजी से कहने लगा कि- "हमारा सिर लीजिए, हमारा सिर लीजिए।"
 
फिर गुरुजी तंबू में गए और आखिर में वे उन पांचों को लेकर बाहर आए जिन्होंने सबसे पहले सिर देना स्वीकार किया था। उन पांचों ने सफेद पगड़ी और केसरिया रंग के कपड़े पहने हुए थे। यही पांच युवक उस दिन से 'पंच प्यारे' कहलाए।
 
तब गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा, आज से ये पांचों मेरे पंच प्यारे हैं। इनकी निष्ठा और समर्पण से खालसा पंथ का आज जन्म हुआ है। आज से यही तुम्हारे लिए शक्ति का संवाहक बनेंगे। यही ध्यान, धर्म, हिम्मत, मोक्ष और साहिब का प्रतीक भी बने।
 
तभी तो गुरु गोविंद सिंह ने कहा ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊ- तब गोविंद सिंह नाम कहाऊ।’
 
इन पंच प्यारों को गुरुजी ने अमृत (अमृत यानि पवित्र जल जो सिख धर्म धारण करने के लिए लिया जाता है) चखाया। इसके बाद इसे बाकी सभी लोगों को भी पिलाया गया। इस सभा में हर जाती और संप्रदाय के लोग मौजूद थे। सभी ने अमृत चखा और खालसा पंथ के सदस्य बन गए।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

shradh paksh 2025: गयाजी के आलावा इन जगहों पर भी होता है पिंडदान, जानिए कौन से हैं ये स्थान जहां होता है तर्पण

पूर्वजों को श्रद्धा सुमन अर्पण का महापर्व श्राद्ध पक्ष

September 2025 Weekly Horoscope: इस हफ्ते आपके सितारे क्या कहते हैं?

Chandra Grahan 2025: पितृपक्ष में पूर्णिमा के श्राद्ध पर चंद्र ग्रहण का साया, श्राद्ध कर्म करें या नहीं, करें तो कब करें?

Shradh paksh 2025: श्राद्ध के 15 दिनों में करें ये काम, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति

सभी देखें

धर्म संसार

12 September Birthday: आपको 12 सितंबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 12 सितंबर, 2025: शुक्रवार का पंचांग और शुभ समय

Sharadiya navratri 2025: शारदीय नवरात्रि में प्रारंभ हो गई है गरबा प्रैक्टिस, जानिए गरबा उत्सव के नियम

Shradha Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष के बाद इन 96 दिनों में कर सकते हैं श्राद्ध कर्म

shraddha Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष में सप्तमी तिथि का श्राद्ध कैसे करें, जानिए कुतुप काल मुहूर्त और सावधानियां

अगला लेख