धोनी की कप्तानी के वो 10 बेमिसाल फ़ैसले

Webdunia
रविवार, 16 अगस्त 2020 (07:12 IST)
क्रिकेट में ऐसी कोई ट्रॉफ़ी नहीं हैं जिस पर महेंद्र सिंह धोनी ने कब्ज़ा न किया हो। 50 ओवरों के मुक़ाबले में धोनी वर्ल्ड कप और चैंपियन्स ट्रॉफ़ी जीत चुके हैं। 20 ओवरों के खेल में वो वर्ल्ड टी-20, आईपीएल और चैंपियन्स लीग जीत चुके हैं। टेस्ट मैच में वो टीम इंडिया को नंबर वन का ताज दिला चुके हैं। एक नज़र डालते हैं धोनी के उन 10 अहम फ़ैसलों पर जिन्होंने भारतीय क्रिकेट में नया इतिहास रचा।

1- जोगिंदर को बनाया हीरो : 2007 वर्ल्ड टी-20 के फ़ाइनल में अगर महेंद्र सिंह धोनी ने जोगिंदर शर्मा से आख़िरी ओवर न कराया होता, तो दुनिया को शायद ये भी याद न रहता कि वो वर्ल्ड चैंपियन टीम का हिस्सा थे।

फ़ाइनल मैच के आख़िरी ओवर में पाकिस्तान को जीत के लिए 13 रन की ज़रुरत थी। भारत को सिर्फ एक विकेट चाहिए था, लेकिन, क्रीज़ पर इन फ़ॉर्म मिस्बाह उल हक़ मौजूद थे।

ऐसे अहम मौके पर धोनी ने अनुभवी हरभजन सिंह की जगह जोगिंदर शर्मा को गेंद थमाई। जोगिंदर ने ओवर की तीसरी गेंद पर मिस्बाह का विकेट लेकर धोनी के दांव को हमेशा के लिए यादगार बना दिया।
 
2- बॉल आउट में बल्ले-बल्ले : 2007 वर्ल्ड टी-20 के लीग राउंड में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत का मैच टाई हुआ। मैच का फ़ैसला बॉल आउट के जरिए होना था। बॉल आउट में गेंदबाज़ को एक ही बार में गेंद डालकर गिल्ली उड़ानी होती है।

पाकिस्तान ने रेगुलर गेंदबाज़ों को चुना जबकि धोनी ने हरभजन सिंह के अलावा वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा जैसे पार्ट टाइम गेंदबाज़़ों पर दांव खेला और मैच जीता।
 
3- धोनी का छक्का और इंडिया चैंपियन : 2011 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में कुलशेखरा की गेंद पर धोनी का जीत दिलाने वाला छक्का कौन भूल सकता है?
 
भारत को 28 साल बाद वर्ल्ड कप दिलाने वाले धोनी ने फ़ाइनल में नाबाद 91 रन बनाए। उस मैच में अगर धोनी का बल्ला न चलता तो वो आलोचकों के निशाने पर होते। इसकी वजह ये है कि फ़ाइनल के पहले धोनी का बल्ला खामोश था। वो हाफ़ सेंचुरी तक नहीं बना सके थे।
 
फ़ाइनल में धोनी इन फ़ॉर्म युवराज की जगह खुद को प्रमोट करते हुए पांचवें नंबर बल्लेबाज़ी के लिए आ गए।
कारण ये था कि एक तो क्रीज पर बाएं हाथ के बल्लेबाज़ गौतम गंभीर मौजूद थे और वो बाएं और दाएं हाथ के खिलाड़ियों का तालमेल बरकरार रखना चाहते थे।
 
दूसरी वजह ये थी कि धोनी मानते थे कि वो श्रीलंका के स्पिनरों के ख़िलाफ़ आसानी से रन जुटा सकते हैं। धोनी ने जो सोचा वही हुआ।
 
4- गेंदबाज़ युवराज पर दांव : युवराज सिंह की पहचान उनकी बल्लेबाज़ी से है। लेकिन, धोनी ने 2011 वर्ल्ड कप में युवराज को रेगुलर गेंदबाज़ की तरह इस्तेमाल किया और इस दांव से विरोधियों को घेरने में कामयाब रहे।
युवराज ने 9 मैचों में 75 ओवर डाले और 15 विकेट लिए। उन्होंने क्वार्टर फ़ाइनल, सेमीफाइऩल और फ़ाइनल में दो-दो विकेट हासिल किए।
 
5- 'छुपे रुस्तम' अश्विन-रैना : 2011 वर्ल्ड कप में धोनी ने सुरेश रैना और आर अश्विन को शुरुआती मैचों में 'छुपाए' रखा और नॉकआउट दौर में 'सरप्राइज़ पैकेज' की तरह इस्तेमाल किया।

अश्विन ने 2011 वर्ल्ड कप में सिर्फ दो मैच खेले। इनमें से एक मैच ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ क्वार्टर फ़ाइनल था। इस मैच में धोनी ने अश्विन से गेंदबाज़ी की शुरुआती कराई। दो विकेट लेने वाले अश्विन ने ऑस्ट्रेलिया की लय बिगाड़ दी।

सुरेश रैना ने भी ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ नाबाद 34 रन बनाकर जीत में योगदान दिया। रैना ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में भी नाबाद 36 रन बनाए।
 
6- निशाने पर नेहरा : 2011 वर्ल्ड कप के शुरुआती मैचों में तेज़ गेंदबाज़ आशीष नेहरा प्रभावी साबित नहीं हुए। लेकिन, पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में धोनी ने उन्हें मौका दिया। वो भी ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ असरदार रहे अश्विन की जगह। धोनी का ये दांव भी हिट रहा।
 
10 ओवर में सिर्फ 33 रन देकर दो विकेट हासिल करने वाले नेहरा फ़ाइनल का टिकट दिलाने में मददगार रहे।
 
7- रंग लाया यंगिस्तान पर भरोसा : ऑस्ट्रेलिया में 2008 में हुई ट्राई सीरीज के लिए धोनी ने चयनकर्ताओं के सामने मांग रखी कि वो युवा टीम चुनें। धोनी का मानना था कि ऑस्ट्रेलिया के बड़े मैदानों में उम्रदराज खिलाड़ी रन रोकने में नाकाम रहेंगे।
 
धोनी की आलोचना तो ख़ूब हुई लेकिन इस फ़ैसले के दम पर वो भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया में पहली बार ट्राई सीरीज़ ट्रॉफ़ी जिता पाए। इस जीत में गौतम गंभीर, रोहित शर्मा और प्रवीण कुमार जैसे युवा खिलाड़ियों का रोल अहम रहा।
 
8- ईशांत बने शान : 2013 में इंग्लैंड में खेले गए आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफ़ी में बारिश के बाद फ़ाइनल मैच को 20-20 ओवरों का मुक़ाबला बना दिया गया। भारत ने इंग्लैंड को जीत के लिए 130 रन की चुनौती दी।
 
मोर्गन और बोपारा की शानदार बल्लेबाज़ी के दम पर इंग्लैंड की टीम जीत की तरफ़ बढ़ रही थी। मेजबानों को आख़िरी तीन ओवरों में सिर्फ 28 रन बनाने थे। ऐसे में धोनी ने अपने सबसे खर्चीले गेंदबाज़ ईशांत शर्मा को गेंद थमाई।
 
फ़ैसला अटपटा था लेकिन ईशांत ने एक ही ओवर में मोर्गन और बोपारा को आउट कर इंग्लैंड की जीत की उम्मीद तोड़ दी।
 
9- रोहित की बदली किस्मत : मिडिल ऑर्डर में खेलने वाले रोहित लंबे वक्त तक अपनी प्रतिभा के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे। धोनी ने वनडे में रोहित को ओपनर के रोल में प्रमोट किया और वो चमक उठे। बतौर ओपनर रोहित शर्मा इंटरनेशनल क्रिकेट के सबसे धाकड़ बल्लेबाज़ के तौर पर उभरे।
 
10- हर दांव हिट : भारतीय क्रिकेट टीम के अलावा धोनी ने आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स को भी सबसे कायमाब टीम बनाया। पिछले दिनों ही उन्होंने ये जानकारी सार्वजनिक की थी कि टीम प्रमोटर एन श्रीनिवासन के चाहने के बाद भी टीम की ओर से एक खिलाड़ी को अनुबंधित करने से इनकार कर दिया था।
 

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