विनीत खरे (बीबीसी संवाददाता)
अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में सूअर पालने वाले एक किसान विलियम थॉमस बटलर ने 1995 में एक मीट प्रोसेसिंग कंपनी के साथ अनुबंध किया था। सौदे में लिखी शर्तों पर वो कहते हैं कि, 'हम जिनसे अनुबंध करते हैं, उन पर कम या ज़्यादा यक़ीन ज़रूर करते हैं।'
उन्होंने मुझे बताया कि कंपनी ने उन्हें हर साल कितना मुनाफ़ा होना चाहिए इसके बारे में बताया था। बटलर ने क़रीब 6 लाख डॉलर लोन लेकर 108 एकड़ ज़मीन में 6 बाड़े तैयार किए। पहले 6-6 सालों में उन्हें सालाना 25,000-30,000 डॉलर का लाभ हुआ। इससे उन्होंने 4 और बाड़े तैयार किए। वो कहते हैं, 'काफ़ी बढ़िया और शानदार चल रहा था। शुरू में ऐसा लग रहा था कि चीज़ें बेहतर हो रही हैं।'
कमाई में उतार-चढ़ाव
बटलर के मुताबिक़ लेकिन बाद में चीज़ें बदलनी शुरू हो गईं। बटलर कहते हैं, 'पहली चीज़ जो कंपनी ने नहीं डिलीवर की वो थी कचरा प्रबंधन को लेकर दिया जाने वाला प्रशिक्षण। किसी भी किसान को मैं नहीं जानता जिसे इसका आइडिया हो कि वो हर रोज़ कितना कचरा पैदा करता है।'
'मेरे छोटे से खेत में 10,000 गैलन से अधिक हर रोज़ कचरा पैदा होता है। अगर किसी किसान को उस वक़्त 1995 में यह पता होता तो कोई भी इस सौदे के लिए राज़ी नहीं होता। लेकिन हमें इसे लेकर पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया।' कमाई में उतार-चढ़ाव शुरू होने के साथ ही अनुबंध के तहत ज़िम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं।
बटलर बताते हैं, 'हमें बताया गया था कि कैसे हम पैसे कमा सकते हैं लेकिन वो सब वाक़ई में बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया था। धीरे-धीरे कई सालों में उनकी ओर से दी गई गारंटी को उन्होंने बदल दिया। शुरुआत में सारी ज़िम्मेदारी कंपनी के ऊपर होती थी। किसानों को सिर्फ़ सूअर पालना होता था। बीमारी या बाज़ार के उतार-चढ़ाव जैसी बातों की चिंता सूअर पालने वालों को नहीं करनी थी।'
'और शुरुआत में ऐसा हुआ भी लेकिन धीरे-धीरे अनुबंध बदलने शुरू हो गए और हमारे ऊपर बीमारी से लेकर बाज़ार में होने वाले उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों की भी ज़िम्मेदारी आ गई। इन सब के लिए कंपनी की बजाए हमारी ओर से भुगतान किया जाने लगा। हमने जिन चीज़ों की उम्मीद की थी उन सब पर हमारा नियंत्रण नहीं रहा। हम सिर्फ़ काम करते और उनके आश्वासनों के हिसाब से चलते। कोई संतुलन नहीं रह गया। हमें सिर्फ़ सौदों में लिखे के हिसाब से उनका पालन करना होता है।'
कॉन्ट्रैक्ट की मजबूरी
कर्ज में डूबे होने की वजह से बटलर के सामने इस अनुबंध से बाहर आने का रास्ता बंद हो चुका है। वो कहते हैं कि हम इस अनुबंध को तोड़ भी नहीं सकता हूं, क्योंकि इसके बाद दूसरी स्थानीय कंपनी की ओर से अनुबंध पाने की संभावना फिर बहुत कम होगी।
अनुबंध से बाहर आने का मतलब यह भी होगा कि अब तक निवेश से हाथ धो देना। एक्टिविस्टों का कहना है कि मुनाफा कमाने के लिए कॉर्पोरेट्स ने किसानों को पूरी तरह से निचोड़ लिया है। किसानों के मुताबिक मुर्गी पालन करने वाले किसानों को अनुबंध के हिसाब से कम लागत में बढ़िया मुर्गी तैयार करने पर भुगतान किया जाता है। इसे 'टूर्नामेंट सिस्टम' कहते हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि एक किसान दूसरे किसान के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा और आधे किसानों को बोनस मिलेगा और आधे किसानों को मिलने वाले पैसे में कटौती की जाएगी। दशकों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को यह कहकर बढ़ावा दिया जाता रहा है कि ये किसानी और पशुपालन को आधुनिक बनाने में मदद करेगी और किसानों को बेहतर बाज़ार का विकल्प मुहैया कराएंगे।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर जोर
लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे बाज़ार की ताकत कुछ मुट्ठीभर कॉर्पोरेट्स के हाथों में सिमटती चली जाएगी और किसानों का इनके हाथों शोषण आसान हो जाएगा। कंपनी इस तरह के आरोपों को खंडन करती हैं और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर जोर देती हैं। उनकी दलील होती है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसान और प्रोसेसिंग कंपनी दोनों के लिए ही एक फायदे का सौदा है।
कंपनियों की वेबसाइट खुशहाल किसानों की कामयाब कहानियों से भरी होती हैं जबकि आलोचकों का इस पर कहना है कि ये मीडिया और नेताओं को सिर्फ़ संतुष्ट करने के लिए होती हैं। अमेरिका में 4 कंपनियां 80 फ़ीसदी से ज्यादा बीफ का उत्पादन और प्रोसेसिंग करती हैं।
साल 2015 में 6 कंपनियों की 60 फ़ीसदी से अधिक चिकेन के व्यापार पर नियंत्रण था। ये कंपनियां फ़ीड मिलों, बूचड़खानों और हैचरी का संचालन करती हैं जो चिकन की सर्वोत्तम क्वॉलिटी विकसित करती हैं। चार बायोटेक कंपनियां सोयाबीन प्रोसेसिंग के 80 फ़ीसदी से अधिक कारोबार पर अपना नियंत्रण रखती हैं। सूअर के व्यवसाय से जुड़ी 4 शीर्ष कंपनियों का इसके दो-तिहाई बाज़ार पर नियंत्रण है।
एक तरह का मिश्रित वरदान
कुछ मुठ्ठी भर ये बड़ी कंपनियां किसानों को ये विकल्प मुहैया कराती हैं कि वे व्यापार कर सके। वे इस बात की शिकायत करते हैं कि उन्हें सब्ज़बाग दिखाकर फंसाया जाता है जो कि वैसा होता नहीं है। कंपनियां अपने अनुबंध के शर्तों को बदल देती हैं और मनमाने तरीके से अतिरिक्त पैसे थोपती हैं या फिर जब चाहे तब किसी भी वजह से अनुबंध तोड़ देती है। इसी तरह के कथित कॉर्पोरेट व्यवहार को लेकर भारतीय किसान भी डरे हुए हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया के पीएचडी छात्र तलहा रहमान का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक तरह का मिश्रित वरदान है।
रहमान के परदादा इमाम बख्श भारत में किसान थे। वो साल 1906 में अपने 16 साल के बेटे कालू खान के साथ कैलिफोर्निया आ गए थे। उनके परिवार के पास इस राज्य में सैकड़ों एकड़ खेती की ज़मीन है और वे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करते हैं।
रहमान बताते हैं, 'किसानों के लिए जोखिम कम (कंट्रैक्ट फार्मिंग की वजह से) हो जाता है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनके पास खरीदार है। आपके पास एक सुरक्षा की भावना आ जाती है लेकिन इसमें पारदर्शिता का अभाव होता है। आपका नियंत्रण भी नहीं होता, क्योंकि आपको पता नहीं होता कि आपके उत्पाद की क़ीमत आख़िर में क्या मिलने वाली है।'
मार्केटिंग कॉन्ट्रैक्ट और प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट
दो तरह के कॉन्ट्रैक्ट मुख्य तौर पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किए जाते हैं। एक होता है मार्केटिंग कॉन्ट्रैक्ट और दूसरा है प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट। मार्केटिंग कॉन्ट्रैक्ट के तहत उत्पादन के दौरान उत्पाद पर मालिकाना हक किसानों का ही होता है जबकि प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट के तहत कंट्रैक्टर अक्सर उत्पादन करने वालों को सर्विस और टेक्निकल गाइडेंस मुहैया कराते हैं। उन्हें पैदावार के लिए फ्री मिलता है।
माइक वीवर एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मर हैं। उनका एक विशाल पॉल्ट्री बिज़नेस है। उन्होंने लेकिन 19 साल के बाद कॉन्ट्रैक्ट से बाहर होने का फैसला लिया। उन्हें इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए 15 लाख डॉलर उधार लेना पड़ा था। वो बताते हैं, 'आप कल्पना कीजिए कि एक किसान 15 लाख डॉलर लेता है जैसा मैंने इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया है, ऐसा खड़ा करने के लिए। वो भाग्यशाली होगा तो अपने बिल चुका पाएगा और अपने परिवार का भरण-पोषण भी कर पाएगा। इतना कम मुनाफा इससे हासिल होता है।'
अमेरिकी फूड बिज़नेस
वर्जीनिया कॉन्ट्रैक्ट पॉल्ट्री ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष माइक वीवर कहते हैं, 'पॉल्ट्री के व्यवसाय में लगे लोग बड़ी संख्या में इस व्यवसाय को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं और वो अपने बच्चों को पालने के लिए अब नौकरी कर रहे हैं। वो अपने लोन चुकाने की मशक्कत कर रहे हैं ताकि उनके फार्म बचा रह सके।'
'जब आप किसी दुकान में जाते हैं तो 3-4 डॉलर एक चिकन पर खर्च करते हैं। लेकिन इसे तैयार करने में 6 हफ्ते का वक्त लगता है और इसे तैयार करने वाले को सिर्फ़ 6 सेंट मिलते हैं। बाकी सारे पैसे प्रोसेसर और रिटेलर के पास जाते हैं।' कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ने अमेरिकी फूड बिज़नेस और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल दी है।
नेशनल कॉन्ट्रैक्ट पॉल्ट्री ग्रोवर्स एसोसिएशन और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर के 2001 के अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि 71 फ़ीसदी उत्पादक जिनकी आय सिर्फ मुर्गी पालन पर निर्भर है, वो गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। एक्टिविस्ट कई सालों से पॉल्ट्री और मीट इंडस्ट्री में केंद्रीकरण का विरोध कर रहे हैं। उत्पादकों पर लाखों रुपये का भारी कर्च है और कई आत्महत्या जैसे कदम भी उठा रहे हैं।
अमेरिका में किसानों की आत्महत्या
सालाना कितने किसान आत्महत्या कर रहे हैं, इसे लेकर आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है लेकिन सेंटर फॉर डिजीज, कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक दूसरे पेशे की तुलना में आत्महत्या करने के मामले में किसान अधिक हैं। सीडीसी का सर्वे बताता है कि 2 दशकों से कम वक्त में आत्महत्या के मामलों में 40 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मिडवेस्ट अमेरिका में किसानों की आत्महत्या के मामले अधिक हैं। मेंटल हेल्थ प्रैक्टिशनर टेड मैथ्यू ने मिनेसोटा से बताया कि, 'किसान हर वक्त तनाव में रहते हैं।' उन्होंने किसानों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सालों काम किया है। वो कहते हैं, 'वो लोन लेने बैंक जाते हैं। इसके लिए उन्हें अपने कागजात और दूसरी चीजें सही रखनी होती हैं। वो बहुत तनाव में रहते हैं। उन्हें नींद भी कम आती है।' कर्ज में डूबे होने, उत्पाद के लिए मिलने वाली कम क़ीमत और खराब मौसम किसानों के ऊपर बहुत भारी पड़ते हैं।
मीट और पॉल्ट्री इंडस्ट्री
मैथ्यू कहते हैं, 'अगर आप 100 किसानों से पूछेंगे कि उनके लिए सबसे अहम चीज़ क्या है तो वो कहेंगे परिवार और तब मैं उनसे पूछता हूं कि आपने अपने परिवार के लिए पिछले महीने क्या किया। फिर वो चुप हो जाते हैं।' ओबामा प्रशासन के दौरान कृषि और न्याय विभाग ने मीट व्यवसाय में कंपनियों की दबदबेपन के ख़िलाफ़ सार्वजनिक सुनवाई शुरू की थी।
रुरल एडवांसमेंट फाउंडेशन इंटरनेशनल के टेलर व्हाइट्ली का कहना है, 'सरकार की ओर से संरक्षण तो प्राप्त है लेकिन या तो उसे नियम बनाकर या फिर कोर्ट के आदेश से निष्प्रभावी कर दिया गया है। पिछले 30-40 सालों में यह एक इतिहास बन चुका है।' मीट और पॉल्ट्री इंडस्ट्री अमेरिकी कृषि क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा है। 2018 का एक सर्वे बताता है कि सिर्फ 6 फ़ीसदी अमेरिकी ही खुद को शाकाहारी बताते हैं।
खरीदार की गारंटी
अमेरिका में साल 2017 में कुल मीट का उत्पादन 52 बिलियन पाउंड का हुआ था जबकि पॉल्ट्री उत्पादन 48 बिलियन पाउंड का रहा था। इतने बड़े कारोबार का मतलब हुआ कि फूड इंडस्ट्री अपने हितों की रक्षा के लिए राजनीतिक चंदे पर भी बहुत खर्च करता है। किसानों का मानना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के साथ समस्या इसे लागू करने में है। तलहा रहमान कहते हैं, 'अगर कंट्रैक्ट फार्मिंग ठीक से हो तो यह किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है।'
'महत्वपूर्ण यह है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य होना चाहिए। सरकार को न्यूनतम मूल्य तय करना चाहिए जिसके नीचे मूल्य किसी भी हाल में कम ना हो। खरीदार की गारंटी होनी चाहिए। शुरू में ही क़ीमतें नहीं तय होनी चाहिए। अगर मूल्य बढ़ता है तो किसान इनकार कर देते हैं और अगर क़ीमतें गिरती हैं तो खरीदार मना कर देते हैं।' इन सब नज़र रखने के लिए एक निगरानी तंत्र की जरूरत है। (प्रतीकात्मक चित्र)