कर्नाटक : अब ईसा मसीह की मूर्ति के ख़िलाफ़ खड़ा हुआ संघ परिवार

Webdunia
बुधवार, 15 जनवरी 2020 (15:23 IST)
- इमरान क़ुरैशी, बेंगलुरु से
केरल में सबरीमला मंदिर और कर्नाटक में बाबाबुडनगिरी दरगाह के बाद संघ परिवार की नज़रें अब ईसा मसीह की मूर्ति पर हैं। कर्नाटक की पिछली कांग्रेस सरकार ने बेंगलुरु से 65 किलोमीटर दूर कनकपुरा में ईसा मसीह की 114 फुट लंबी मूर्ति बनवाने के लिए 10 एकड़ ज़मीन देने का प्रस्ताव रखा था लेकिन अब राज्य में हिंदू जागरण वेदिके नाम की दक्षिणपंथी संस्था मौजूदा बीजेपी सरकार से यह मांग कर रही है कि वो इस प्रस्ताव को वापस ले।

हिंदू जागरण वेदिके के सदस्यों ने ईसा मसीह की प्रस्तावित मूर्ति के ख़िलाफ़ कनकपुरा में एक विशाल रैली का आयोजन भी किया। प्रस्तावित मूर्ति को लेकर विवाद तब और बढ़ गया था जब इसके लिए 10 लाख की सस्ती दर पर ज़मीन देने वाले कांग्रेस विधायक डीके शिवकुमार का नाम मनीलॉन्ड्रिंग के एक कथित मामले में सामने आया। इस सिलसिले में वे पिछले साल अक्टूबर तक 50 दिनों के लिए जेल में थे।

डीके शिवकुमार पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री थे और वे कनकपुरा से विधायक भी हैं। कनकपुरा रैली की अहमियत बताने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने कल्लडका प्रभाकर भट्ट जैसे नेता को आगे किया है। तक़रीबन 2 दशक पहले कर्नाटक के तटीय ज़िलों को 'हिंदुत्व की प्रयोगशाला' में तब्दील करने का श्रेय कल्लडका को ही दिया जाता है।

क्रिसमस डे से यूं बढ़ा विवाद
बीबीसी हिंदी ने कल्लडका से पूछा कि क्या बाबाबुडनगिरी दरगाह और सबरीमला मंदिर में भी ऐसे ही हालात पैदा होंगे?

इसके जवाब में उन्होंने कहा, हां, ऐसा होगा। प्रदर्शन आगे बढ़ेगा। हम इसे ऐसे ही नहीं जाने देंगे। हम इसे इसके तार्किक अंजाम तक पहुंचाएंगे।

90 के दशक में चिक्कामगलुरु में एक तरफ़ सूफ़ी दरगाह और दूसरी तरफ़ दत्तात्रेय पीठ विवाद का विषय बन गए थे। बीजेपी का मानना था कि क्योंकि यहां दत्तात्रेय पीठ की जगह ज़्यादा थी इसलिए इसे दरगाह के सज्जादानशीन से प्रशासित नहीं होना चाहिए।

बीजेपी के इस अभियान का नतीजा कर्नाटक के पहाड़ी इलाक़े मालनाड में भगवाकरण के रूप में देखा गया। इससे बीजेपी को चुनावों में भी काफ़ी फ़ायदा मिला।

हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने केरल स्थित सबरीमला मंदिर को लेकर कुछ ऐसी ही मुहिम छेड़ी थी, लेकिन इससे पार्टी को चुनाव में कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ।

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 के अपने फ़ैसले में 10-50 साल की महिलाओं को सबरीमला के स्वामी अयप्पा मंदिर में प्रवेश की इजाज़त दे दी थी। इसके बाद केरल में बीजेपी से संबद्ध दक्षिणपंथी संगठनों ने इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कशिश की थी।

यह विवाद पिछले साल 25 दिसंबर यानी क्रिसमस डे को उस वक़्त बढ़ गया जब शिवकुमार को कनकपुरा में एक पहाड़ी पर ईसा मसीह की मूर्ति की रेप्लिका लेकर शिलान्यास करते देखा गया।

सरकारी ज़मीन पर बन रही है मूर्ति?
उस वक़्त ये सवाल उठने लगे कि उस सरकारी ज़मीन पर ऐसी मूर्ति कैसे बनाई जा सकती हैं जहां सिर्फ़ जानवरों को चारा खिलाने, अस्पताल खोलने या अन्य सार्वजनिक सुविधाएं शुरू करने की ही अनुमति है।

शिवकुमार ने इस बारे में बीबीसी हिंदी को बताया, यहां के ईसाई इस जगह पर 100 साल से भी ज़्यादा समय से प्रार्थना करते आ रहे हैं। मैं कुछ साल पहले यहां आया था और मैंने देखा कि लोग प्रार्थना कर रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि वो सरकारी ज़मीन पर प्रार्थना न करें, बल्कि इसके लिए एक स्थाई मूर्ति बना लें। मैंने उन्हें क़ानूनी प्रक्रिया अपनाने का सुझाव दिया।

शिवकुमार बताते हैं, उस वक़्त क़ागज़ी कार्रवाई पूरी हो गई थी। तब राजस्व सचिव ने भी इस बारे में पूछताछ की थी क्योंकि उस 10 एकड़ की ज़मीन में ग्रेनाइट पत्थर थे। जब सस्ते दाम में ज़मीन ख़रीदने की बात हुई तब मामला कैबिनेट के सामने आया। मंदिर और धर्मशाला वगैरह बनाने के लिए ज़मीन ख़रीदने पर 10 फ़ीसदी छूट मिलने का प्रावधान है। उस वक़्त मैंने चेक से पैसे चुकाने की बात कही थी।

जिस ज़मीन पर ग्रेनाइट से ईसा मसीह की यह मूर्ति बनाई जाएगी उसकी क़ीमत एक करोड़ बताई गई थी और शिवकुमार ने इसके लिए 10 लाख रुपए चुकाए थे।

बीजेपी सरकार मानती है कि यह फ़ैसला सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने लिया था। सस्ती ज़मीन का मसला जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन वाली एचडी कुमारस्वामी सरकार के सामने एक बार फिर सामने आया था।

राजस्व सचिव आर. अशोक ने इस बारे में बीबीसी हिंदी को बताया, समस्या यह है कि मूर्ति बनाने का काम एक अनाधिकृत सड़क पर कुछ साल पहले ही शुरू कर दिया गया है। इसके लिए अनाधिकृत तरीक़े से बिजली की लाइनें ले ली गई हैं और अनाधिकृत ढंग से बोरवेल की खुदाई भी कर ली गई है। इस बारे में मांगी गई रिपोर्ट में इसलिए देरी हुई है क्योंकि शिवकुमार ने मंत्री रहते हुए वहां सभी अधिकारियों की ख़ुद ही नियुक्ति की थी।

हालांकि कल्लडका प्रभाकर भट्ट इस संबंध में दूसरे सवाल पूछते हैं। उन्होंने कहा, मुझे सबसे ज़्यादा दुख इस बात का है कि उन्होंने मुन्नेश्वर पहाड़ी पर 'क्रॉस' रख दिया है। ये वो जगह है जहां मुनि पूजा होती है। क्या उन्हें ईसा मसीह की मूर्ति बनाने के लिए कोई और जगह नहीं मिली? वो हमें अपमानित करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? और सरकारी ज़मीन को धार्मिक मक़सद के लिए कैसे दिया जा सकता है? उनके इरादे क्या हैं?

चर्च के सदस्य और स्थानीय निवासी संध्यागप्पा चिन्नाराज ने इस बारे में बीबीसी से कहा, हम मुन्नेश्वरा पहाड़ी पर क्रॉस कैसे रख सकते हैं जब ये जगह (कपालबेट्ट पहाड़ी) वहां से 3 किलोमीटर दूर है? चिन्नाराज का कहना है कि ईसाई समुदाय उस इलाक़े में साल 1906 से रह रहा है।

शिवकुमार ने कहा, मैंने मंदिर भी बनवाए हैं...
वो बताते हैं, हमारी कुल आबादी लगभग 3500 लोगों की है। हमने कपालबेट्टा को चुना क्योंकि गुड फ़्राइडे को हम जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाए जाने का नाट्य रूपांतरण यहीं पर करते हैं।

चिन्नाराज के मुताबिक़ कपालबेट्टा डेवलपमेंट ट्रस्ट के सदस्यों ने सस्ती क़ीमत में ज़मीन मांगने में देरी इसलिए की क्योंकि ईसाई समुदाय सरकार को देने के लिए पूरे पैसे नहीं जुटा सका।

वहीं भट्ट का कहना है, वो ईसाइयों की सेवा करके समाज सेवा करें, लेकिन वो हमारे हिंदू समाज में ऐसा क्यों कर रहे हैं? जो कुछ हो रहा है वो संविधान के ख़िलाफ़ है। उन्हें वो काम करना चाहिए जिसकी इजाज़त संविधान में हो।

भट्ट ने कनकपुरा में आयोजित रैली में ईसा मसीह की मूर्ति के निर्माण में सहयोग देने की वजह से शिवकुमार को 'देशद्रोही' बताया था।

इस बारे में पूछे जाने पर शिवकुमार ने कहा, मैंने राम मंदिर बनवाया है, शिव मंदिर बनाया है और इसके अलावा सैकड़ों अन्य मंदिर बनवाए हैं। वो जो करना चाहते हैं, करने दीजिए। वो सरकार में हैं।

बीजेपी का कहना है कि शिवकुमार सोनिया गांधी को ख़ुश करने के लिए ये सब कर रहे हैं। इस पर शिवकुमार ने कहा, इस मसले से सोनिया गांधी का क्या लेना-देना? ये मेरे निर्वाचन क्षेत्र का मुद्दा है और मैं ये उन लोगों के लिए कर रहा हूं, जो बरसों से मेरा साथ देते आए हैं।

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