जिन ईयू सांसदों को कश्मीर बुलाया, वही करवा रहे हैं संसद में कश्मीर और CAA पर चर्चा

Webdunia
बुधवार, 29 जनवरी 2020 (12:54 IST)
- सलमान रावी
यूरोपीय यूनियन की संसद में भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून और जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने को लेकर कुल 6 प्रस्तावों पर यूनियन और भारत के बीच कूटनीतिक पेंच फंसा हुआ है। ये प्रस्ताव बुधवार को संसद के पटल पर रखे जा रहे हैं जिन पर 30 जनवरी को मत डाले जाएंगे। हालांकि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, न ही इस पर कोई ब्रीफिंग ही की है। मगर सरकार की तरफ से विदेश मंत्री की बजाय क़ानून मंत्री का बयान आया है जिसमें उन्होंने इस तरह के प्रस्तावों को 'वाम गठजोड़' वाले संगठनों की साज़िश क़रार दिया है।

लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने भी यूरोपीय यूनियन की संसद के अध्यक्ष डेविड ससोली को पत्र लिख कर भारत की आलोचना करने वाले प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने को कहा है। अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि एक विधायिका द्वारा दूसरी विधायिका के फैसलों पर इस तरह का प्रस्ताव लाना एक अस्वस्थ परंपरा की शुरुआत होगी। भारत के क़ानून मंत्री का कहना है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का भारत की संसद से पारित होना भारत का आंतरिक मामला है जो जनतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही किया गया है।

751 सदस्यों वाली यूरोपीय संसद में जो प्रस्ताव लाए गए हैं उनमें नागरिकता संशोधन क़ानून और जम्मू कश्मीर से धारा 370 के हटाए जाने के अलावा नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस यानी 'एनआरसी' भी शामिल है। प्रस्ताव लाने वाले गुटों में मध्य-दक्षिणपंथी संगठन (यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (क्रिस्चियन डेमोक्रेट्स) और मध्य मार्गी संगठन) प्रोग्रेसिव अलायन्स ऑफ़ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रेट्स यानी एस एंड डी शामिल है, जबकि वाम संगठनों का मोर्चा (यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट नार्डिक ग्रीन लेफ्ट) यानी जीयूई/ एनजीएल के सांसद भी इसमें शामिल हैं।

इन 6 प्रस्तावों पर कुल 626 सांसदों के हस्ताक्षर हैं जिनमें 7 ऐसे सांसद भी शामिल हैं जिन्हें पिछले साल अक्टूबर में भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर का दौरा कराया था। राजनयिक हलकों में इसी बात पर चर्चा हो रही है कि जब सरकार ने यूरोपीय यूनियन के सांसदों को आमंत्रित कर जम्मू कश्मीर का दौरा करवाया तो फिर यूरोपीय संसद में इस तरह का प्रस्ताव आना कहीं भारत की कूटनीतिक चूक तो नहीं? हालांकि यूरोपीय यूनियन या यूरोपीय संघ ने इन प्रस्तावों से ख़ुद को अलग कर लिया है।

संघ के विदेश विभाग ने स्पष्ट किया है कि उनकी संसद के अंदर जो चल रहा है उसका मतलब ये नहीं है कि वो यूरोपीय यूनियन का भी विचार हो। उन्होंने इसे संसदीय प्रक्रिया बताया है। लेकिन यूरोपीय संसद में लेबर पार्टी के नेता और सांसद रिचर्ड ग्रेहम कॉर्बेट ने मेल के ज़रिए भेजे बयान में कहा, यह सबसे गंभीर बात इसलिए भी है कि यूरोपीय संसद में भारत द्वारा लाए गए नागरिकता क़ानून पर चर्चा हो रही है। भारत के मित्र आशा कर रहे हैं कि मोदी सरकार इस क़ानून पर अपना रुख़ बदलेगी।

ओम बिरला का कहना है कि इस क़ानून को लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी गई सरकार ने भारत की संसद के दोनों सदनों से पारित कराया है, लेकिन इन प्रस्तावों को लाने में अहम भूमिका निभाने वाली जीयूई/ एनजीएल की सांसद इडोइया विल्लनुएवा ने मेल पर भेजे रिकॉर्ड किए गए बयान में कहा कि पूरे विश्व में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के हनन के मामले बढ़ रहे हैं। वो कहती हैं कि विश्व के विभिन्न देशों में दमन की घटनाएं देखने को मिल रहीं हैं।

उनका कहना था, इस संबंध में हम ये सोच रहे हैं कि यूरोपीय यूनियन की क्या भूमिका होनी चाहिए? हमें लगता है कि यूरोपीय यूनियन को देशों की स्वायत्तता को सम्मान देने के साथ-साथ ये भी सुनिश्चित करना होगा कि लोगों के अधिकारों के मुद्दे गौण ना हो जाएं। यूरोपीय यूनियन की संसद में लाए जा रहे प्रस्तावों के बारे में वो कहती हैं, मोदी के सत्ता में आने और हिन्दू कट्टर राष्ट्रवाद का उभरना चिंताजनक है। इसमें 2 चीज़ें देखने को मिलीं, जम्मू कश्मीर में संचार साधनों का बंद होना और नए नागरिकता क़ानून का आना। ये भारत की समरसता और विभिन्नता पर सीधा हमला है। यूरोपीय यूनियन भारत के साथ सामरिक समझौतों की तरफ देख रहा है मगर हम मानवाधिकारों की स्थिति को अनदेखा नहीं कर सकते।

लेकिन ताज़ा जानकारी के अनुसार 66 सदस्यों वाले यूरोपियन कंज़र्वेटिव्ज़ एंड रेफारमिस्ट्स यानी ईसीआर ने इन प्रस्तावों से ख़ुद को पीछे कर लिया है। 751 की संख्या वाले यूरोपीय यूनियन की संसद में भारत के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाने वाले सदस्यों की संख्या अब सिर्फ़ 560 रह गई है। अभी ये भी कहना मुश्किल है कि क्या और भी सांसद प्रस्तावों से किनारा कर लेंगे।

क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर अपने तौर पर यूरोपीय यूनियन और उसके सांसदों से संपर्क में हैं। वहीं ब्रसेल्स में मौजूद भारत की राजदूत गायत्री इस्सार कुमार प्रस्ताव लाने वाले सांसदों के समूहों से अलग-अलग चर्चा कर रही हैं। भारत की तरफ़ से कोशिश की जा रही है ताकि इन प्रस्तावों पर मतदान को टाला जा सके लेकिन कुछ राजनयिक मानते हैं कि यूरोपीय यूनियन के सांसद पकिस्तान द्वारा भारत के ख़िलाफ़ फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का शिकार हुए हैं और इससे रंज़िशें ही बढ़ेंगी।

पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा ने बात करते हुए कहा, ये स्पष्ट है कि यूरोपीय यूनियन के सांसद दुष्प्रचार का शिकार हुए हैं। ऐसा नहीं है की फ़्रांस या इटली में अवैध रूप से रहने वालों को ना निकाला जाता हो या फिर इंग्लैंड में अवैध रूप से रह रहे लोगों को जेल न भेजा गया हो। ये जो सांसद सिर्फ़ भारत को अलग-थलग कर रहे हैं ये सिर्फ पाकिस्तान के बहकावे पर कर रहे हैं।

इससे पहले मलेशिया ने भी भारत के नागरिकता क़ानून को लेकर टिप्पणी की थी जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार पर असर भी पड़ा जिससे मलेशिया को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। राजनयिकों का कहना है कि इस तरह के प्रस्तावों का यूरोपीय देशों और भारत के बीच कैसा असर होगा ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगी लेकिन मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्रसेल्स जाना है। उससे पहले इस तरह के प्रस्तावों से राजनयिक संबंधों पर असर पढ़ना लाज़मी भी है।

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