नूपुर शर्मा पर एफआईआर: क्या बीजेपी असमंजस में है?

BBC Hindi
शुक्रवार, 10 जून 2022 (08:18 IST)
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
दिल्ली पुलिस ने पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। इससे पहले मुंबई पुलिस भी आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर चुकी है।
 
इसी मामले में दर्ज एक अन्य एफ़आईआर में पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नवीन जिंदल, वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी, शादाब चौहान, मौलाना मुफ़्ती नदीम, अब्दुर रहमान, गुलज़ार अंसारी, अनिल कुमार मीणा और हिंदू महासभा से जुड़ीं पूजा शकुन के ख़िलाफ़ आईपीसी की धाराओं 153, 295, 505 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
 
बीजेपी ने अब तक इस मामले में जो कुछ किया है, उसके बाद बीजेपी समर्थकों और कार्यकर्ताओं में नाराज़गी और निराशा का भाव पैदा हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी इस मुद्दे को लेकर असमंजस में क्यों है?
 
पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ टिप्पणी मामले में अब तक क्या हुआ?
 
क्या असमंजस में है बीजेपी?
साल 2014 में नरेंद्र मोदी की प्रचंड जीत के बाद बीजेपी को एक ऐसी पार्टी के रूप में जाना जाता है जिसके शीर्ष नेता और ज़मीनी कार्यकर्ता एक ही स्वर में बात करते हैं।
 
मोदी और शाह के नेतृत्व में बीजेपी पिछले आठ सालों में अपने लिए एक विशाल जनाधार खड़ा करने में समर्थ हुई है। इस जनाधार की वजह से ही बीजेपी 2014 एवं 2019 के आम चुनाव और 2017 एवं 2022 के यूपी चुनाव में भारी बहुमत से जीत दर्ज करने में सफल हुई है।
 
और ये सब नरेंद्र मोदी की हिंदू हृदय सम्राट वाली छवि, अमित शाह की चुनावी रणनीति, सोशल मीडिया समर्थकों और कार्यकर्ताओं के बीच बेहतरीन समन्वय की वजह से संभव हुआ है।
 
लेकिन ये पहला मौक़ा है जब ये समन्वय टूटता दिख रहा है। क्योंकि एक ओर बीजेपी नूपुर शर्मा और नवीन ज़िंदल जैसे बड़े प्रवक्ताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है। वहीं, बीजेपी समर्थक पार्टी के इस फ़ैसले का विरोध करते नज़र आ रहे हैं।
 
बीजेपी की राजनीति को समझने वालीं वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन इसे बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती मानती हैं।
 
वह कहती हैं, "जब इस तरह की स्थिति पैदा होती है तो बीजेपी एक असमंजस का शिकार हो जाती है कि वह विचारधारा के साथ जाए या गवर्नेंस के साथ। क्योंकि ये हमेशा आसान नहीं होता है कि इन दोनों चीजों को अलग-अलग रखा जा सके। ये कांग्रेस के दौर में भी हुआ है और अब बीजेपी के दौर में स्पष्ट रूप से होता हुआ नज़र आ रहा है।
 
हमें ये देख रहे हैं कि बीजेपी का मतलब सिर्फ़ बीजेपी नहीं है। इस व्यापक परिवार में आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और हिंदू जागरण मंच समेत अन्य संगठन शामिल हैं जो एक ही विचारधारा के आधार पर एक दूसरे से जुड़े हैं।
 
ऐसे में जब ऐसे मौके आते हैं तो बीजेपी ख़ुद को अपनी विचारधारा से अलग नहीं कर पाती है। इस वजह से बीजेपी असमंजस में पड़ गयी है। क्योंकि नूपुर शर्मा ने जो आपत्तिजनक बयान दिया है, वो अचानक तो नहीं दे दिया है।
 
उन्होंने इससे पहले भी भड़काऊ बयान दिए हैं। और ऐसे कई लोग हैं जो भड़काऊ बयान देते हैं। ये लोग बीजेपी या विचारधारा से जुड़े संगठनों से जुड़े होते हैं। ऐसे बयान सामने आने पर हमें पहले कभी ये देखने को नहीं मिला कि कोई बड़ी कार्रवाई हुई हो।"
 
बीजेपी की लिए बड़ी चुनौती
नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ पार्टी के फ़ैसलों की आलोचना करने वालों में पार्टी कार्यकर्ता भी शामिल हैं जो कि अंदरूनी बातचीत से लेकर सांकेतिक रूप से अपना विरोध जता रहे हैं।
 
राधिका रामाशेषन बताती हैं, "पिछले कुछ दिनों में मेरी बीजेपी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं से बात हुई है। उनको ये बात चुभ रही है कि सरकार को इस्लामिक देशों के दबाव में नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी पड़ी। ये उन्हें बहुत परेशान कर रहा है।
 
इसी जगह पर अमेरिका कोई आपत्ति दर्ज कराता और सरकार कोई फ़ैसला करती तो ऐसा विवाद न खड़ा होता। क्योंकि इनकी सोशल मीडिया आर्मी सीधे-सीधे क़तर को आड़े हाथों ले रही है।
 
लोग ये स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि इस्लामिक देशों के दबाव में बीजेपी, वो भी नरेंद्र मोदी की सरकार को ये फ़ैसला लेना पड़ा। इसने कुछ लोगों को तो सदमे में डाल दिया है।"
 
बीजेपी क्या कर रही है?
पिछले कुछ दिनों से ख़बरें आ रही हैं कि बीजेपी ने अपने प्रवक्ताओं से बयानबाजी में संयम बरतने को कहा है।
 
इसका असर बीजेपी प्रवक्ताओं के सोशल मीडिया हैंडल्स पर भी नज़र आता है। पिछले कुछ दिनों से ज्ञानवापी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर ट्वीट करने से बचने की कोशिश की जा रही है।
 
राधिका रामाशेषन बताती हैं, "बीजेपी ने एक रणनीति के रूप में तय किया है कि मीडिया सेल या प्रवक्ताओं के माध्यम से ज्ञानवापी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कराने की जगह प्रधानमंत्री की ग़रीब कल्याण योजनाओं पर फोकस करना है। एक बीजेपी प्रवक्ता ने मुझे बताया कि अब ग़रीब कल्याण से जुड़ी योजनाएं ही हमारी गीता है, और ये तय कर लिया गया है कि इधर-उधर बयान नहीं करना है।"
 
नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती
भारतीय राजनीति में बीजेपी को एक अनुशासित पार्टी के रूप में जाना जाता है जहां पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अलग-अलग मुद्दों पर पार्टी का रुख तय करता है। इसके बाद प्रवक्ता और कार्यकर्ता पार्टी के दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं। लेकिन ये पहला मौका है जब पार्टी कार्यकर्ता नूपुर शर्मा मामले में शीर्ष नेतृत्व के फ़ैसले से सहमत नहीं दिख रहे हैं।
 
बीजेपी के इस आंतरिक संघर्ष पर राधिका रामाशेषन कहती हैं, "ये समझने की ज़रूरत है कि पार्टी के शीर्ष और मध्यम स्तर के नेता - प्रवक्ता पार्टी के निर्देशों का पालन करेंगे। लेकिन जो कार्यकर्ता हैं, वो किसी न किसी तरह से अपनी भावनाएं ज़ाहिर करेंगे। उनके मन में सवाल हैं कि आख़िर सिर्फ नूपुर शर्मा को क्यों टारगेट किया गया, उनका क्या कसूर है आदि आदि। ऐसे कार्यकर्ता पार्टी के दिशा-निर्देश मानने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में बीजेपी में एक तरह का विभाजन जैसा हो गया है।"
 
लेकिन सवाल ये उठता है कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए ये कितनी बड़ी चुनौती है। क्योंकि आने वाले कुछ महीनों में बीजेपी गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्य में चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसे में बीजेपी के लिए कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों की नाराज़गी एक बड़ा मुद्दा बन सकती है।
 
राष्ट्रीय राजनीति को पिछले कई सालों से देख रहीं वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी इसे बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती मानती हैं।
 
वे कहती हैं, "नूपुर शर्मा के आपत्तिजनक बयान से जो विवाद खड़ा हुआ है, उससे बीजेपी की अंदरूनी रणनीति और दिशा को लेकर बड़े सवाल खड़े हो गये हैं।
 
एक प्रचलित उदाहरण है कि शेर पर चढ़ना आसान है लेकिन शेर से उतरना मुश्किल होता है। जब आपकी नीति ध्रुवीकरण की रही है, हिंदू-मुसलमान के बीच तनाव पैदा करने वाले मुद्दे उठाना रही है, जिससे हिंदू एकजुट हो जाएं ताकि चुनावों में बीजेपी को इसका फायदा मिले तो इस नीति पर लगाम लगाना मुश्किल हो जाता है और ये होता दिख रहा है।
 
मुझे याद है कि साल 2015 में बीजेपी और आरएसएस से जुड़े इनसाइडर ने मुझे बताया था कि आने वाले समय में नरेंद्र मोदी के सामने जो चुनौती आएगी, वो विपक्ष की ओर से नहीं आएगी, बल्कि ये चुनौती बीजेपी के अंदर जो दक्षिण पंथ है, उसकी ओर से आएगी। और ये बात आज सच साबित होती दिख रही है।
 
क्योंकि पिछले कुछ सालों की राजनीति से निकले कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि इस्लामिक देशों के दबाव में आकर हम फ़ैसला क्यों कर रहे हैं, हम तो इस्लाम के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे, हम क्यों बुजदिल हो रहे हैं, हम क्यों नहीं खड़े हो पा रहे हैं, उनके मन में इस तरह के सवाल आ रहे हैं।
 
और ये चुनौती नरेंद्र मोदी की है कि वो जिस पद पर बैठे हैं, और जिस पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, उन दोनों भूमिकाओं में समन्वय कैसे बिठाएं। उन्होंने अब तक इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है, और बीजेपी के अंदर और बाहर लोग बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं कि वो क्या बोलेंगे। लेकिन वो अब तक चुप हैं।"

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

फेंगल तूफान : क्रैश होने से बचा विमान, पायलट ने सूझबूझ से बचाई यात्रियों की जान, रोंगटे खड़े करने वाला Video

Maharashtra CM : कौन होगा महाराष्ट्र का सीएम, BJP के वरिष्ठ नेता ने कर दिया खुलासा

Waqf Bill : वक्फ की कितनी संपत्तियों पर है कब्जा, संसदीय समिति ने राज्यों से मांगा ब्योरा, सच्चर कमेटी का दिया हवाला

Sambhal Violence : संभल हिंसा की जांच शुरू, न्यायिक आयोग की टीम ने किया जामा मस्जिद का दौरा

जनसंख्या गिरावट से मोहन भागवत चिंतित, बताया कैसे नष्‍ट होता है समाज?

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

सस्ता Redmi A4 5G लॉन्च, 2 चिपसेट वाला दुनिया का पहला 5G स्मार्टफोन

Vivo Y19s में ऐसा क्या है खास, जो आपको आएगा पसंद

क्या 9,000 से कम कीमत में आएगा Redmi A4 5G, जानिए कब होगा लॉन्च

तगड़े फीचर्स के साथ आया Infinix का एक और सस्ता स्मार्टफोन

Infinix का सस्ता Flip स्मार्टफोन, जानिए फीचर्स और कीमत

अगला लेख