इमरान ख़ान क्या पाक प्रशासित कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने जा रहे हैं?

BBC Hindi
शुक्रवार, 31 जनवरी 2020 (19:50 IST)
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि वो अपने नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के मुख्य भू-भाग में नहीं मिलाएगा। पाकिस्तान में इस तरह की अफ़वाह थी कि वो भी भारत की तरह ऐसा करने वाला है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता आइशा फ़ारूक़ी ने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि 'इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है'।
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पाकिस्तान में इसे लेकर कई हफ़्तों से हलचल है। इस बात को तब और बल मिला, जब पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के प्रधानमंत्री फ़ारूक़ हैदर ख़ान ने कहा कि 'वे इस स्वायत्त क्षेत्र के आख़िरी प्रधानमंत्री होंगे'। इसके बाद ये अफ़वाह और भी बढ़ी जब पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर ने अपनी एक ब्यूरोक्रेसी सर्विस का नाम बदला। यह भी अफ़वाह है कि गिलगित-बल्टिस्तान का भी प्रशासनिक स्टेटस बदला जाएगा।
 
आइशा फ़ारूक़ी ने मीडिया में चल रही तमाम अफ़वाहों को तो ख़ारिज कर दिया है लेकिन इस पर बातचीत अब भी थमी नहीं है। भारत ने पिछले साल 5 अगस्त को अपने नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था।
 
कश्मीर- दोनों देशों के बीच विवाद का मुद्दा
 
कहा जा रहा है कि पाकिस्तान भी अब भारत की तरह कोई फ़ैसला ले सकता है। पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने लिखा है कि 'यहां इस बात की चर्चा है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर पर ख़तरा है इसलिए मुख्य भू-भाग में मिला लेना चाहिए'।
 
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी हफ़्ते कहा था कि भारत पाकिस्तान से एक हफ़्ते में ही युद्ध जीत लेगा। प्रधानमंत्री मोदी की इस टिप्पणी पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि 'भारत को पुलवामा हमले के बाद का वो वाक़या याद रखना चाहिए जब उसके लड़ाकू विमान को मार गिराया गया था'।
 
आइशा फ़ारूक़ी ने कहा, 'भारत अपने यहां अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभाव और कश्मीर से ध्यान को भटकाना चाहता है, इसलिए युद्ध छेड़ने के बयान आते रहते हैं। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की सेना किसी भी हालात से निपटने के लिए तैयार है। हम भारत के नियंत्रण वाले कश्मीर में जारी मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे को दुनिया के अलग-अलग मंचों पर उठा रहे हैं। हम कश्मीर पर चुप नहीं रह सकते।'
 
पाकिस्तान अपने हिस्से वाले कश्मीर को 'आज़ाद कश्मीर' कहता है। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से ही कश्मीर दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दा रहा है। 1947 के बाद जम्मू, भारत प्रशासित कश्मीर और लद्दाख भारत के नियंत्रण में है, वहीं पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और उत्तरी कश्मीर (गिलगित और बल्टिस्तान) पाकिस्तान नियंत्रित हैं जबकि अक्साई चिन और ट्रांस काराकोरम (शक्सगाम घाटी) चीन के पास हैं।
 
क्षेत्रफल के हिसाब से कश्मीर के केवल 45 फ़ीसदी हिस्से पर ही भारत का वास्तविक नियंत्रण है जबकि पाकिस्तान का लगभग 35 फ़ीसदी कश्मीर पर नियंत्रण है। बाक़ी का 20 फ़ीसदी हिस्सा चीन के नियंत्रण में है। पाकिस्तान में इसी 35 फ़ीसदी हिस्से को मुख्य भू-भाग में पूरी तरह से मिला लेने की बात हो रही है। भारत और पाकिस्तान दोनों पूरे जम्मू-कश्मीर पर अपना दावा करते हैं।
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चीन का निवेश
 
दिसंबर में फ़ारूक़ हैदर ख़ान ने कहा था कि 'वे पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के आख़िरी प्रधानमंत्री होंगे। इसके बाद से पाकिस्तान में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है'। पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में चीन की ओर से बड़ा निवेश किया जा रहा है। चीन ने पाकिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा सेक्टर में 57 अरब डॉलर का निवेश किया है।
 
यह निवेश कश्मीर के ज़रिए हो रहा है। ऐसे में दशकों पुराना वह रुख़ कमज़ोर हुआ है कि कश्मीर विवादित इलाक़ा है। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष तौक़ीर गिलानी पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में काम करते हैं। यह जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रवादी संगठन माना जाता है। उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा है कि 'चीन के निवेश से इस विवादित इलाक़े में विनाशकारी नतीजे आएंगे'।
 
गिलानी ने कहा है, 'चीन के लोग कारोबार और मुनाफ़े के लिए काम करते हैं। ये हमारे इलाक़े में निवेश करना चाहते हैं लेकिन यह विवादित इलाक़ा है इसलिए वो डरे रहते हैं कि निवेश कहीं डूब ना जाए। ऐसे में चीन लीगल मामलों के लिए पाकिस्तान की तरफ़ देखता है। चीन ने श्रीलंका में क्या किया? और अफ़्रीका में क्या कर रहा है? हम अपना अधिकार चीन और पाकिस्तान को नहीं दे सकते हैं। हम आज़ाद कश्मीर चाहते हैं और यह आज़ादी भारत और कश्मीर दोनों से चाहिए।'
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शक्सगाम घाटी पर चीनी नियंत्रण
 
अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर के अलावा शक्सगाम घाटी के 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाक़े पर भी चीन का नियंत्रण है।
 
काराकोरम पर्वतों से निकलने वाली शक्सगाम नदी के दोनों ओर शक्सगाम वादी फ़ैला हुआ है। 1948 में इस पर पाकिस्तान ने अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था। बाद में 1963 में एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को चीन को सौंप दिया।
 
पाकिस्तान का मानना था कि इससे दोनों देशों के बीच दोस्ती बढ़ेगी और साथ ही यह भी दलील थी कि चूंकि यहां पहले से अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारित नहीं थी लिहाजा पाकिस्तान को इसे चीन को सौंपने से कोई नुक़सान नहीं हुआ।
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इसी इलाके को लेकर पाकिस्तान ने चीन के साथ समझौता किया था। आज, चीन और पाकिस्तान यहीं बने काराकोरम हाइवे से एक-दूसरे के साथ व्यापार करते हैं, जो पश्चिमी कश्मीर के ज़रिए दोनों देशों को जोड़ता है।
 
चीन-पाकिस्तान के बीच इस अरबों डॉलर के आर्थिक गलियारे में मल्टीलेन एस्फाल्ट की सड़कें बनाई जा रही हैं ताकि पूरे साल इनका इस्तेमाल किया जा सके। भारत के अनुसार अक्साई चिन और शक्सगाम आज भी जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा है। 6 अगस्त को इसी अक्साई चिन के बारे में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि यह भारत का अभिन्न हिस्सा है।
 
दुनिया की 2 सर्वाधिक आबादी वाले 2 देश चीन और भारत कुछ क्षेत्रीय दावों को लेकर आपस में कई वर्षों से उलझे हुए हैं।

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