अंतरजातीय शादियों का इनाम लेने वाले नदारद क्यों?

Webdunia
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017 (11:29 IST)
दिलीप मंडल (वरिष्ठ पत्रकार)
भारत सरकार उन नवविवाहित जोड़ों को ढाई लाख रुपए देती है, जिन जोड़ों में पति या पत्नी में से कोई एक अनुसूचित जाति का हो। अब तक यह शर्त थी कि उस जोड़े की सालाना आय पांच लाख रुपए से ज़्यादा न हो। केंद्र सरकार ने अपने ताज़ा फ़ैसले में पांच लाख रुपए आय की शर्त हटा दी है और इस योजना को तमाम आय वर्गों के लिए खोल दिया है।
 
यह योजना 2013 से चल रही है और इसे डॉ. आंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटिग्रेशन नाम दिया गया है। यह योजना केंद्र सरकार की है। इसके अलावा कई राज्य सरकारें भी अनुसूचित जाति के साथ होने वाली शादियों को प्रोत्साहित करती है। जातिमुक्त भारत की दिशा में यह सरकारी पहल है।
 
भारत जैसे देश में किसी परिवार के लिए ढाई लाख रुपए बड़ी रकम है। खासकर नवविवाहित जोड़ों को तो रुपयों की ज़रूरत और भी ज़्यादा होती है। इसलिए किसी को लग सकता है कि इस स्कीम के तहत प्रोत्साहन राशि लेने के लिए लाखों आवेदन आते होंगे और बड़ी संख्या में लोग यह रकम लेते होंगे।
 
कोई और योजना होती तो एकमुश्त ढाई लाख रुपए पाने के लिए लाखों लोग आवेदन भेज देते। लेकिन इस स्कीम का लाभ उठाने वालों की संख्या चौंकाने वाली है। 2014 में सिर्फ 5 परिवारों ने यह रकम ली। 2015 में 72 और 2016 में 45 परिवारों ने यह प्रोत्साहन राशि ली। सरकार को इस योजना से बहुत उम्मीद भी नहीं थी। इस योजना के लिए सालाना सिर्फ़ 500 परिवारों का लक्ष्य रखा गया था।
 
अमेरिका में अंतरनस्लीय शादियां
ऐसा लगता है कि इस योजना के पात्र परिवारों की संख्या ही कम है। भारत में अनुसूचित जाति के 16.6 करोड़ लोग हैं। यह अमेरिका की आबादी से ठीक आधी है। प्यू रिसर्च की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में हर साल 1 करोड़ 10 लाख से ज़्यादा अंतरनस्लीय शादियां होती हैं। वहां होने वाली हर छठी शादी में दूल्हा और दुल्हन अलग अलग नस्लों के होते हैं।
 
यानी श्वेत अश्वेत से, श्वेत हिस्पैनिक्स से, हिस्पैनिक्स ब्लैक्स से, ब्लैक्स एशियन से ख़ूब शादियां कर रहे हैं। अमेरिका ने यह सब 50 साल में देख लिया है। 1967 तक अमेरिका के कई राज्यों में अंतरनस्लीय शादियां अवैध थीं। उस साल रिचर्ड और मिलडर्ड लविंग ने वर्जिनिया स्टेट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा जीता, जिसके बाद पूरे अमेरिका में अंतरनस्लीय शादियों को क़ानूनी मान्यता मिल गई।
 
भारत में कितनी अंतरजातीय शादियां?
इसके मुक़ाबले, ऐसा लगता है कि भारत में अंतरजातीय शादियां बेहद कम होती हैं। ऐसी शादियों के आंकड़े सरकार नहीं जुटाती। सरकार दरअसल जाति के आंकड़े ही नहीं जुटाती।
 
भारत में आख़िरी जाति जनगणना 1931 में हुई। 1941 की जनगणना दूसरे विश्व युद्ध की भेंट चढ़ गई और आजादी के बाद हुई 1951 में हुई पहली जनगणना के लिए उस समय की सरकार ने तय किया कि जाति नहीं गिनी जाएगी। तर्क यह था कि जाति एक पुरातन पहचान है और भारत एक आधुनिक राष्ट्र बनने के रास्ते पर बढ़ रहा है। उम्मीद यह थी कि जाति नहीं गिनने से जाति खत्म हो जाएगी। जातियों की गिनती तब से ही बंद है, लेकिन जाति अपनी जगह पर कायम है।
 
क़ानूनी जरूरतों के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति की जनगणना की जाति है क्योंकि उन्हें आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की व्यवस्था संविधान में है।
 
बहरहाल, दलितों के साथ शादियों की प्रोत्साहन राशि लेने वालों की संख्या से यह संकेत तो मिल ही रहा है कि भारत में अंतरजातीय शादियां कितनी कम होंगी। 16.6 करोड़ आबादी वाले समुदाय में शादी करने का इनाम लेने के लिए अगर साल में 100 वैध आवेदन भी न आएं, तो स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
 
अमेरिका बनाम भारत
अंतरजातीय या अंतरनस्लीय शादियों का महत्व इसलिए है क्योंकि इससे ही, दरअसल, एक मिले-जुले समाज का निर्माण हो सकता है और आइडेंटिटी यानी पहचान की दीवारें कमज़ोर हो सकती हैं। कम्युनिटी के सोसायटी बनने की यात्रा इसी तरह पूरी हो सकती है।
 
मिसाल के तौर पर, अमेरिका में 2015 में हर सातवां बच्चा यानी 14 फ़ीसदी बच्चों के माता और पिता अलग अलग नस्लों के हैं। यानी, ये वे बच्चे हैं, जिनमें नस्लवादी विचारों का होना मुश्किल है। वे एक मुकम्मल नागरिक होंगे, क्योंकि नागरिक होने के अलावा दूसरी प्रमुख पहचान उनमें कमजोर होगी।
 
भारत के राष्ट्रनिर्माताओं ने भी ऐसे नागरिकों की कल्पना की थी, जो राष्ट्र के नागरिक होने को अपनी प्राथमिक पहचान मानें। संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने बेहद गर्व से कहा था कि मेरी पहली और आख़िरी पहचान भारतीय होना है। धर्म और जाति को प्राथमिक पहचान मानने वाला व्यक्ति ऐसी बात कह ही नहीं सकता। वह न सिर्फ़ दूसरी जाति या धर्म में शादी नहीं करेगा, बल्कि ऐसी शादियों का विरोध भी करेगा।
 
'लव जिहाद' के नाम पर या खाप द्वारा दूसरी जाति में शादी करने वालों की हत्या की घटनाएं यह बताती है कि भारतीय आधुनिकता की सतह को खुरचते ही नीचे जाति और धर्म का पोंगापंथ अपने सबसे बुरे शक्ल में फल-फूल रहा है।
 
नेशन इन द मेकिंग
अमरीका में प्यू संस्था के उसी शोध में पता चला कि 39% अमेरिकी अंतरनस्लीय शादियों को समाज के लिए अच्छा मानते हैं जबकि सिर्फ़ 10% लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कहा कि वे ऐसी शादियों का विरोध करेंगे।
 
भारत में अगर ऐसा कोई शोध हुआ तो उसके आंकड़ों की कल्पना की जा सकती है। भारत में अब भी शादी का प्राथमिक तरीका अरेंज्ड मैरिज है, जिसमें दूल्हे के लिए दुल्हन परिवार के लोग चुनते हैं और अब ऐसी कुछ शादियों में लड़के और बेहद कम मामलों में लड़कियों की राय पूछ ली जाती है। सामाजिक दबाव के कारण राय पूछना अक्सर औपचारिकता ही होती है।
 
भारत अपनी विशाल आबादी के कारण शादियों का बहुत बड़ा बाज़ार है। कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां हर साल एक करोड़ से ज़्यादा शादियां होती हैं। इतनी सारी शादियों में अगर हर साल 100 जोड़े भी दलितों के साथ शादी करने की प्रोत्साहन राशि नहीं लेते हैं, तो मानना होगा कि भारत को अभी एक राष्ट्र बनने की दिशा में लंबी यात्रा तय करनी है।
 
जब तक अंतरजातीय शादियां बेहद आम नहीं हो जातीं, तब तक हम अलग अलग जातीय धार्मिक और जातीय गिरोहों का संघ हैं, जिसे सही मायने में एक राष्ट्र बनना है। डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा की बहस के दौरान अपने आख़िरी भाषण में भारत को बनता हुआ राष्ट्र यानी नेशन इन द मेकिंग यूं ही नहीं कहा था।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

कौन थे रजाकार, कैसे सरदार पटेल ने भैरनपल्ली नरसंहार के बाद Operation polo से किया हैदराबाद को भारत में शामिल?

कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ में बंजारुमाले गांव में हुआ 100 प्रतिशत मतदान

धीरेंद्र शास्‍त्री के भाई ने फिर किया हंगामा, टोल कर्मचारियों को पीटा

प्रवेश द्वार पर बम है, जयपुर हवाई अड्‍डे को उड़ाने की धमकी

दिल्ली में देशी Spider Man और उसकी Girlfriend का पुलिस ने काटा चालान, बाइक पर झाड़ रहा था होशियारी

AI स्मार्टफोन हुआ लॉन्च, इलेक्ट्रिक कार को कर सकेंगे कंट्रोल, जानिए क्या हैं फीचर्स

Infinix Note 40 Pro 5G : मैग्नेटिक चार्जिंग सपोर्ट वाला इंफीनिक्स का पहला Android फोन, जानिए कितनी है कीमत

27999 की कीमत में कितना फायदेमंद Motorola Edge 20 Pro 5G

Realme 12X 5G : अब तक का सबसे सस्ता 5G स्मार्टफोन भारत में हुआ लॉन्च

क्या iPhone SE4 होगा अब तक सबसे सस्ता आईफोन, फीचर्स को लेकर बड़े खुलासे

अगला लेख