लोकसभा चुनाव 2024: निशिकांत दुबे को गोड्डा में क्या चौथी बार मिलेगा मौका?- ग्राउंड रिपोर्ट

BBC Hindi
गुरुवार, 30 मई 2024 (08:53 IST)
रवि प्रकाश, गोड्डा (झारखंड) से, बीबीसी हिंदी के लिए
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में एक जून को जिन सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत तय होगी, उनमें झारखंड की गोड्डा सीट भी है। संथाल परगना की इस लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के निशिकांत दुबे जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। बीजेपी ने उन्हें चौथी बार फिर से टिकट दिया है। उनका मुक़ाबला इसी सीट से चार बार चुनाव हार चुके इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव से है। इनके बीच सीधी टक्कर है।
 
प्रदीप यादव को झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे दलों का समर्थन हासिल है। वे इस सीट से एक बार सांसद रह चुके हैं और झारखंड सरकार में मंत्री भी। इस समय वे गोड्डा ज़िले के पोड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं।
 
त्रिकोणीय बनाने की कोशिश
निर्दलीय अभिषेक आनंद झा इसे त्रिकोणीय बनाने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन वे अपनी कोशिश में कितने कारगर होंगे, यह बहुत हद तक देवघर के पंडा समाज के वोटरों पर निर्भर करेगा। साल 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मधुपुर सीट से बीजेपी प्रत्याशी के बतौर चुनाव लड़ा था। इसमें उनकी हार हुई थी।
 
इस संसदीय चुनाव में वे बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी के ख़िलाफ़ मैदान में हैं। वे अविभाजित बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री विनोदानंद झा के पौत्र हैं। गोड्डा सीट से इन तीनों नेताओं समेत कुल 19 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनकी क़िस्मत का फ़ैसला यहां के करीब 20 लाख मतदाता करेंगे।
 
एनडीए और इंडिया गठबंधन की विभिन्न पार्टियों के सक्रिय कार्यकर्ताओं को छोड़ दें, तो दूसरे आम मतदाता खुलकर बोलना नहीं चाहते। मतलब, साइलेंट (मौन) हैं। ऐसे में यहां किसी की भी जीत या हार का अनुमान आसानी से लगा पाना फिलहाल मुश्किल दिखता है।
 
छह में से चार विधायक इंडिया गठबंधन के
गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें देवघर, गोड्डा, मधुपुर, पोड़ैयाहाट, महागामा और जरमुंडी आती हैं। इनमें से चार सीटों पर फ़िलहाल इंडिया गठबंधन के विधायकों का कब्ज़ा है।
 
पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ दो सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी। तीन सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर जेएमएम के उम्मीदवार जीते थे। झारखंड में विधानसभा का चुनाव साल 2019 में लोकसभा चुनाव के महज छह महीने बाद हुआ था। 
 
पिछले लोकसभा चुनाव में गोड्डा सीट से बीजेपी के निशिकांत दुबे ने तब झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के प्रत्याशी रहे प्रदीप यादव को पौने दो लाख से भी अधिक वोटों के अंतर से पराजित किया था।
 
उस चुनाव में भी प्रदीप यादव यूपीए गठबंधन के उम्मीदवार थे। उन्हें जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी का समर्थन हासिल था। बीजेपी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी तब जेवीएम के प्रमुख थे। विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर दिया।
 
तब प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए थे। अब वे कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर निशिकांत दुबे को टक्कर दे रहे हैं और बाबूलाल मरांडी उनके ख़िलाफ़ प्रचार कर रहे हैं।
 
शीर्ष नेताओं का जमावड़ा
इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप यादव के लिए कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी, मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, जेएमएम की नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की सभाएं हो चुकी हैं।
 
एनडीए प्रत्याशी निशिकांत दुबे के लिए गृहमंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा शर्मा, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी सरीखे नेता जनसभाएं और रोड शो कर चुके हैं।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को दुमका में एक जनसभा को संबोधित किया। इस रैली में गोड्डा समेत संथाल परगना क्षेत्र की तीनों लोकसभा सीटों के प्रत्याशी मौजूद होंगे। उनके अलावा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की भी एक सभा और रोड शो बुधवार को हो रही है।
 
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भी एक सभा 30 मई को दुमका में होनी है। इस सभा में भी गोड्डा, दुमका और राजमहल (संथाल परगना की लोकसभा सीटें) के इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों की मौजूदगी रहेगी। निशिकांत दुबे और प्रदीप यादव समेत अधिकतर प्रत्याशियों का ज़ोर व्यक्तिगत जनसंपर्क पर है।
 
बड़ी चुनावी सभाओं के अलावा प्रदीप यादव और निशिकांत दुबे रोज़ करीब आधा दर्जन गांवों में व्यक्तिगत तौर पर छोटी-छोटी मीटिंग कर रहे हैं। ऐसे जनसंपर्क कार्यक्रम देर शाम तक चलते रहते हैं। इसके बावजूद कई गांवों में न तो कांग्रेस प्रत्याशी गए हैं और न बीजेपी के।
 
नैयाडीह का दर्द
ऐसा ही एक गांव नैयाडीह है। देवघर प्रखंड के इस गांव में एयरपोर्ट निर्माण के दौरान विस्थापित हुए 500 से अधिक परिवारों को बसाया गया है।
 
साल 2017-18 के दौरान इनके घरों को तोड़ने के वक्त सरकार ने कई सुविधाओं का भरोसा दिलाया था, जिनमें से कई वादे अभी तक पूरे नहीं किए जा सके हैं।
 
यहां मेरी मुलाक़ात मिथुन मांझी से हुई। वे दलित हैं। साल 2017 की सर्दियों में प्रशासनिक अधिकारियों ने देवघर एयरपोर्ट के निर्माण के लिए तय किए गए बाबूपुर गांव में स्थित इनका घर तोड़ दिया था।
 
तब खुले आसमान के नीचे पुरानी साड़ियों और तिरपाल से बनाए गए अस्थायी टेंट में रहने के कारण उनके पिता पोचा मांझी की ठंड से मौत हो गई थी। उस बस्ती के कई और लोग ठंड से मर गए थे।
 
बहरहाल, मिथुन मांझी ने बताया कि उनके टोले में न तो कांग्रेस के प्रत्याशी आए और न बीजेपी के। फिर भी वे वोट देंगे। लेकिन, किसे देंगे, अभी तय नहीं किया है।
 
मिथुन मांझी ने बीबीसी से कहा, "हमारे घरों में तो कोई नहीं आया। बीजेपी प्रत्याशी के कुछ लोग आए थे लेकिन वे खुद नहीं आए। हमारे घरों में न बिजली है और न नल का पानी। एक स्कूल बना भी है, तो कभी खुला नहीं। ठंड से मेरे पिताजी मर गए। हमारा घर तोड़ दिया गया।"
 
"अब बड़का लोग तो हवाई जहाज़ से आता है। हमारे पास तो ट्रेन पर चढ़ने का भी पैसा नहीं है। एयरपोर्ट बनने से हम लोगों को क्या मिला। घर टूटा। ज़मीन गई लेकिन मुआवज़ा भी नहीं मिला। यहां करीब 700 वर्ग फ़ुट ज़मीन मिली। अपने पैसे से किसी तरह घर बनाए। कोई सुविधा है नहीं। बताइए किसको वोट दें।"
 
सुविधाओं की कमी
इसी गांव के प्रशांत कुमार पांडेय ने कहा कि कॉलोनी में सुविधाओं का घोर अभाव है। "इसलिए हमारा वोट उन्हें मिलेगा, जो विकास करे।"
 
प्रशांत कुमार पांडेय ने बीबीसी से कहा, "देवघर एयरपोर्ट के लिए भितिया, पदमपुर, मनियाना, सुंदरी, पहाड़पुर, सातर, बाबूपुर जैसे गांवों का अस्तित्व खत्म कर दिया गया। ठीक है हमें मुआवज़ा मिला। घर बनाने के लिए यहां ज़मीन मिली, पैसा भी मिला।"
 
वो कहते हैं, "लेकिन यहां नाले का पानी सड़कों पर बहता है। क्योंकि, उसकी निकासी का कोई उपाय नहीं है। स्कूल नहीं खुला है। हमारे लिए बनी दुकानें हमें आवंटित नहीं की गई हैं। इन समस्याओं में हम लोग रहते हैं। इसलिए वोट उसको, जो हमारी समस्याओं को दूर करे।"
 
निशिकांत दुबे को लेकर क्या सोचते हैं लोग?
देवघर में प्रसिद्ध बाबा वैद्यनाथ मंदिर के पास रहने वाले 90 वर्षीय श्रीकृष्णा प्रसाद साह खुद को कांग्रेसी बताते हैं। वो कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रवैया तानाशाहों वाला है। इसके बावजूद वे बीजेपी प्रत्याशी निशिकांत दुबे की प्रशंसा करते हैं।
 
उन्होंने बीबीसी से कहा, "नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी से होने के बावजूद मेरे एमपी निशिकांत दुबे को लोगों का समर्थन है। उन्होंने गोड्डा में रेलवे परिचालन शुरू कराया। देवीपुर में एम्स बनवाया। देवघर एयरपोर्ट बना। सड़कें बनीं। हम विकास के इन कामों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।"
 
वहीं, गोड्डा शहर की चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता वंदना दुबे का मानना है कि महिलाओं के मुद्दों को उठाने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला एमपी होना चाहिए।
 
वंदना दुबे ने बीबीसी से कहा, "जो महिलाओं के विकास की बात करेगा, हमारा वोट तो उसी के लिए है। इसके अलावा देवघर और बासुकीनाथ में कांवरिया पथ का निर्माण समेत बाकी विकास के काम होने चाहिए। पिछले कुछ सालों में यहां बहुत बदलाव हुआ है लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी भी है।"
 
जीत के अपने अपने दावे
बीजेपी के प्रत्याशी निशिकांत दुबे आश्वस्त हैं कि इस चुनाव में भी उनकी जीत होगी और बीजेपी को देशभर में 400 से अधिक सीटें मिलेंगी। वे अपनी जनसंपर्क बैठकों के दौरान लोगों से विकास कार्यों की बात करते हैं। इसके साथ ही वे पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी द्वारा गिरफ़्तार किए जाने और कथित भ्रष्टाचार को लेकर भी मुखर हैं।
 
निशिकांत दुबे कहते हैं कि मैंने पिछले 15 सालों में गोड्डा को देश के नक्शे पर स्थापित किया है। सड़कों का जाल बिछाया। एम्स खुलवाया। एयरपोर्ट बना। अब लोग प्लेन से कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, रांची और बेंगलुरु जा रहे हैं।
 
गोड्डा से ट्रेनें चल रही हैं। हमसफ़र जैसी ट्रेन गोड्डा से चलती है। सॉफ़्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क बनवाया है। फूड क्राफ्ट इंस्टीट्यूट, प्लास्टिक पार्क बनवाया। अदानी पॉवर प्लांट में लोगों को रोज़गार मिला। अभी और भी कई काम होने हैं।
 
वहीं, दूसरी तरफ़ कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इलेक्टोरल बांड के ज़रिए सबसे बड़ा घोटाला किया। उद्योगपतियों से कथित तौर पर पैसे की उगाही की। इसलिए चुनाव में बीजेपी की हार तय है।
 
प्रदीप यादव कहते हैं, "बीजेपी सरकार की तानाशाही से जनता ऊब चुकी है। निशिकांत दुबे के ख़िलाफ़ अंडर करंट है। बीजेपी गोड्डा में तो हारेगी ही, पूरे देश से उनका सफाया होने जा रहा है। जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी यहां मिलकर चुनाव लड़ रही है और हमलोग निशिकांत दुबे को आसानी से हराने जा रहे हैं।”
 
निर्दलीय अभिषेक आनंद झा और उदय शंकर खवाड़े को उम्मीद है कि निशिकांत दुबे यह चुनाव हार जाएंगे। इन दोनों प्रत्याशियों का मानना है कि इस बार निशिकांत दुबे के बाहरी (बिहार) होने का फ़ैक्टर काम करेगा। लोग स्थानीय प्रत्याशी को चुनेंगे।
 
'ईसाई मिशनरीज और आरएसएस एक हो जाएं'
इस बीच एक अंग्रेज़ी अखबार को दिए इंटरव्यू में निशिकांत दुबे ने कहा, "अब समय आ गया है कि आदिवासियों को बचाने के लिए, बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा लव और लैंड जिहाद न हो, उसके लिए हमने कहा है कि क्रिश्चियन मिशनरीज़ और आरएसएस दोनों को हाथ मिला लेना चाहिए।"
 
"आपातकाल के दौरान सीपीएम और आरएसएस ने कांग्रेस के ख़िलाफ़ एक साथ काम किया भी था, ताकि देश को तानाशाही से बचाया जा सके।"
 
पीएम मोदी पर लग रहे तानाशाही के आरोपों पर निशिकांत दुबे ने इस इंटरव्यू में कहा, "सोशल मीडिया पर मोदी जी को रोज़ गालियां दी जाती हैं। कितने लोग गिरफ़्तार किए गए। क्या आप बंगाल में ममता बनर्जी, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु में एम के स्टालिन के ख़िलाफ़ ट्वीट कर सकते हैं। तो बताइए मुझे तानाशाह कौन है।"
 
इस बार कड़ी टक्कर
देवघर के वरिष्ठ पत्रकार और रिटायर्ड प्रोफ़ेसर डॉ रामनंदन सिंह ने कहा कि इस बार कड़ी टक्कर है। डॉ रामनंदन सिंह ने बीबीसी से कहा कि मुख्य लड़ाई बीजेपी के निशिकांत दुबे और कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव के बीच है।पिछले चुनाव में निशिकांत दुबे ने प्रदीप यादव को रिकॉर्ड मतों से हराया था।

वो कहते हैं, "इस बार वैसी हालत नहीं है। ऐसे में जो भी जीते, जीत का अंतर कम होगा। क्योंकि, निर्दलीय अभिषेक आनंद झा ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है।"
 
वो कहते हैं, "वोटरों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का असर दिखता है। वहीं मतदाताओं के एक वर्ग में पूर्व मुख्यमंत्री की गिरफ़्तारी और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के भाषणों का भी प्रभाव दिखता है। इसके अलावा स्थानीय मुद्दे तो है हीं।"

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