ओमिक्रॉनः वैक्सीन ले ली, फिर भी क्यों हो रहा है कोरोना संक्रमण?

BBC Hindi
शुक्रवार, 7 जनवरी 2022 (07:49 IST)
दुनियाभर में कोरोना संक्रमण के मामलों में फिर से तेज़ी देखी जा रही है। अभी जारी लहर के लिए सबसे बड़ी वजह वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट को बताया जा रहा है।
 
ये वेरिएंट सबसे पहले दक्षिण अफ़्रीका में मिला। इस वेरिएंट की वजह से अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों में रिकॉर्ड संख्या में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। भारत में भी नए मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है।
 
और ये स्थिति तब है जब भारत समेत सारी दुनिया में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के टीकाकरण की कोशिश जारी है। बड़ी आबादी को टीके लग भी चुके हैं लेकिन फिलहाल ऐसे भी मामले आ रहे हैं, जहां टीका लगवा चुके लोगों को भी संक्रमण हो रहा है। तो क्या अभी जो वैक्सीन हैं उनका ओमिक्रॉन पर असर नहीं होता?
 
वैक्सीन के असर को लेकर छिड़ी बहस के बीच पिछले साल दिसंबर में भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने राज्यसभा में कहा था कि ऐसा 'कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि मौजूदा वैक्सीन ओमिक्रॉन वेरिएंट पर काम नहीं करतीं।'
 
ब्राज़ील के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रेनाटो कफोरी का भी कहना है कि कोरोना से बचाव की जो पहले दौर की वैक्सीन आई हैं उनका उद्देश्य फिलहाल बीमारी के गंभीर खतरों को कम करना है, यानी ऐसा ना हो कि संक्रमण हुआ भी तो अस्पताल जाने की नौबत आ जाए, या संक्रमण जानलेवा बन जाए।
 
'नुक़सान को कम करती है वैक्सीन'
बीबीसी की ब्राज़ील सेवा से बात करते हुए ब्राज़ीलियन सोसाइटी ऑफ इम्युनाइजेशन के डायरेक्टर डॉक्टर कफोरी ने कहा, ''वैक्सीन सामान्य लक्षण वाले, हल्के लक्षण वाले या बिना लक्षण वाले कोरोना के मामलों के मुकाबले गंभीर मामलों में ज्यादा सुरक्षा प्रदान करती है।''
 
इसका मतलब ये हुआ कि टीकों का मुख्य लक्ष्य इंफेक्शन को रोकना नहीं बल्कि शरीर में कोरोना संक्रमण से हुए नुक़सान को कम करना है। फ्लू को रोकने वाले टीके भी ऐसे ही काम करते हैं, जिनका दशकों से इस्तेमाल हो रहा है। कई देशों में लोग हर साल ये वैक्सीन लेते हैं।
 
ये वैक्सीन संक्रमण को रोकती नहीं है, लेकिन ये बच्चों, गर्भवती महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों या किसी ना किसी बीमारी से जूझते लोगों में संक्रमण से हो सकने वाली गंभीरता को कम करती है।
 
'पूरे स्वास्थ्य तंत्र को लाभ'
 
यदि संक्रमित लोगों की स्थिति गंभीर नहीं होगी तो उन्हें अस्पताल में जाने की नौबत नहीं आएगी। इसका असर ये होगा कि अचानक से स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव नहीं बढ़ेगा और स्वास्थ्य तंत्र नहीं चरमराएगा। इससे अस्पतालों के वार्ड में ज़्यादा बेड उपलब्ध रहेंगे, चिकित्साकर्मियों को इलाज का पर्याप्त समय मिलेगा।
 
मौजूदा आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो कॉमनवेल्थ फंड के अनुसार अकेले अमेरिका में नवंबर तक कोरोना वैक्सीन की वजह से 11 लाख मौतों को रोकना मुमकिन हुआ। साथ ही 1 करोड़ 30 लाख मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
 
यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (ECDC) और विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अकेले अमेरिकी महाद्वीप के 33 देशों में वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद से 60 साल से अधिक उम्र के 4,70,000 लोगों की जान बचाई जा चुकी है।
 
टीकाकरण के बाद भी नए मामलों में तेज़ी क्यों?
 
हाल में वैक्सीन लगवा चुके लोगों में संक्रमण के मामलों में तेज़ी देखी गई है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि ऐसा क्यों हो रहा है और क्या वैक्सीन असर नहीं कर रही? मोटे तौर इसकी तीन वजह है जिससे इस स्थिति को समझा जा सकता है।
 
पहली वजह: हम खुद पर्व-त्योहारों में लोगों से मिलते-जुलते हैं। क्रिसमस और नए साल पर ख़ास तौर पर पश्चिमी देशों ने लोगों ने मिलकर जश्न मनाया। इससे कोरोना के प्रसार का ख़तरा बढ़ा। लोग संक्रमित होने लगे।
 
दूसरी वजह: दुनियाभर में कोरोना वैक्सीन को उपलब्ध हुए लगभग एक साल हो चुके हैं। जानकारों ने ये बात पहले भी कही है कि वैक्सीन का असर हमेशा नहीं रहेगा।
 
डॉक्टर कफोरी कहते हैं, ''हमने देखा है कि समय बीतने के साथ वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा का स्तर कम होता जाता है। वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा अलग-अलग उम्र वर्ग में अलग-अलग होगी। यह कम या ज्यादा हो सकती है। इसी वजह से पहले अधिक उम्र के लोगों या कम इम्युनिटी वाले लोगों और फिर पूरी आबादी को कोरोना वैक्सीन की तीसरे डोज़ की ज़रूरत महसूस हुई।''
 
तीसरी वजह: ओमिक्रॉन वेरिएंट, जो पहले के वेरिएंट्स की तुलना में ज़्यादा संक्रामक है। ये वैक्सीन के असर को कम करता है, साथ ही इसमें कोरोना संक्रमित हो चुके लोगों को संक्रमण से मिली प्रतिरोधक क्षमता को मात देने की शक्ति है।
 
डॉक्टर कफोरी इस बारे में कहते हैं, ''इन मामलों को देखते हुए वैक्सीन लगवा चुके लोगों में संक्रमण को सामान्य मान लेना चाहिए और हमें इसके साथ जीना सीखना चाहिए।"
 
वो कहते हैं कि राहत की बात ये है कि कोरोना के मामलों में हालिया तेज़ी के बाद भी वैक्सीन ले चुके लोगों में अस्पताल में भर्ती होने की दर के साथ-साथ मृत्यु दर भी बेहद कम है।
 
क्या तीन डोज़ ज़्यादा असरदार है?
अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (CDC) के आँकड़े भी बताते हैं कि वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों में वैक्सीन लगवा चुके लोगों के मुकाबले संक्रमण का खतरा 10 गुना जबकि मौत का खतरा 20 गुना ज्यादा है।
 
ब्रिटेन की हेल्थ ऐंड सेफ्टी एजेंसी की एक हालिया रिपोर्ट भी इसी ओर इशारा करती है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार ओमिक्रॉन से संक्रमित मरीज़ ने अगर वैक्सीन की तीन डोज़ ले रखी हो तो उसके अस्पताल में भर्ती होने की संभावना 81 फीसदी कम है।
 
एजेंसी के दूसरे सर्वे में पता चला कि तीन डोज़ लेने वालों पर वैक्सीन 88 फ़ीसदी असरदार है, हालांकि यह साफ नहीं है कि कितने वक्त तक यह सुरक्षा देती है और क्या आने वाले महीनों में फिर से वैक्सीन लगाने की ज़रूरत पड़ेगी।
 
डॉक्टर कफोरी कहते हैं कि यह सारे सबूत ओमिक्रॉन वेरिएंट के प्रसार के बीच इसके महत्व की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि वैक्सीन लेने के बाद भी लोग बीमार पड़ रहे हैं, इसलिए वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए, ऐसा सोचना ग़लत होगा।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

CM सिद्धारमैया ने बताई अपनी प्रेम कहानी, क्या उन्हें मिल पाया अपना प्यार?

गर्मी ने बढ़ाया पानी का संकट, जलाशयों के जल स्तर में भारी गिरावट

मैं ठीक हूं, बुद्धि का इस्तेमाल करें भाजपा नेता : नवीन पटनायक

गोलगप्पों के लिए खूनी खेल, घर की छत से चली ताबड़तोड़ गोलियां, वीडियो हुआ वायरल

Porsche car accident Pune: सबूत छिपाने की कोशिश, आरोपी का पिता न्यायिक हिरासत में

Realme GT 6T 5G मचा देगा तूफान, 5500mAh की बैटरी के साथ धांसू फीचर्स

50MP कैमरा, 5000mAh बैटरी के साथ भारत में लॉन्च हुआ Motorola Edge 50 Fusion, जानिए क्या है कीमत

iQOO Z9x 5G : लॉन्च हुआ सबसे सस्ता गेमिंग स्मार्टफोन, धांसू फीचर्स

Realme का सस्ता 5G स्मार्टफोन, रोंगटे खड़े कर देंगे फीचर्स, इतनी हो सकती है कीमत

15000 में दुनिया का सबसे पतला स्मार्टफोन, 24GB तक रैम और 60 दिन चलने वाली बैटरी

अगला लेख