पाकिस्तान ने हालांकि जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को भारत-विरोधी पेश करने की कोशिश की है, लेकिन यूएन ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर में 'मानवाधिकारों के उल्लंघन की एक पूरी संरचनात्मक व्यवस्था है।'
चंद दिनों पहले जारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की 43-पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर में 'बोलचाल से लेकर, मिलने-जुलने, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को शांत करने के लिए आतंकवाद-विरोधी क़ानूनों का इस्तेमाल किया जाता है।,'
ये रिपोर्ट साल 2018 में जम्मू-कश्मीर पर जारी रिपोर्ट की दूसरी कड़ी है जिसमें कमीशन ने साफ़ तौर पर कहा था कि पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में हालात भारत से कहीं बदतर है जिसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र कमीशन का पहुंच पाना भी आसान नहीं।
संयुक्त राष्ट्र की दूसरी रिपोर्ट आईओके (भारत के क़ब्ज़े वाले कश्मीर) के बारे में आई जिसका ज़िक्र करते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फ़ैसल ने एक ट्वीट में कहा कि 'ये रिपोर्ट भारतीय सेना के ज़रिए बड़े पैमाने पर किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों की एक बार फिर पुष्टि करती है'।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भारत-प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर कई सवाल खड़े किए गए हैं और कहा गया है कि पिछले साल के दौरान हुई 160 आम शहरियों की मौतें पिछले एक दशक में सबसे अधिक थीं और बावजूद इसके भारतीय सेना का विशेषाधिकार जारी है और भारत की तरफ़ से इस बात की कोई कोशिश नहीं हुई है कि वो सेना के द्वारा अपनाए जा रहे तौर-तरीक़ों की किसी तरह की जाँच परख करे।
रिपोर्ट में श्रीनगर के महाराजा हरि सिंह अस्पताल के हवाले से कहा गया है कि पैलेट-गन के इस्तेमाल से 2016-मध्य और 2018 के अंत तक 1253 लोग आंखों की रोशनी खो चुके हैं।
रिपोर्ट में प्रदर्शनकारियों, राजनीतिक मतभेद रखनेवालों और स्वंयसेवी संस्थाओं को मनमाना तौर पर नज़रबंद करने को भी मानवाधिकार उल्लंघन के उदाहरण के तौर पर पेश किया गया है और इसमें कश्मीरियों पर भारत के अलग-अलग हिस्सों में हुए हमलों का भी ज़िक्र है।
भारत ने जम्मू-कश्मीर पर रिपोर्ट को 'मनगढ़ंत और प्रेरित' बताया है और कहा है कि कमीशन 'आतंकवाद को वैधता प्रदान करने की कोशिश' कर रहा है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने 'रिपोर्ट को भारत की संप्रभुता का उल्लंघन क़रार देते हुए कहा कि इसमें सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले की पूरी तरह अनदेखी की गई है।'
कश्मीर घाटी में रिपोर्ट को लेकर हालांकि कुछ ख़ास प्रतिक्रिया अबतक नज़र नहीं आई है और सामान्यत: सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहने वाले उमर अब्दुल्लाह ने इसपर कुछ नहीं कहा है, न ही महबूबा मुफ़्ती ने।
हुर्रियत कांफ्रेस के अलगाववादी नेता मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने रिपोर्ट को अहम बताया है और कहा है कि भारत और पाकिस्तान दोनों को रिपोर्ट में सुझाए गए अनुशंसाओं को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए।