क्या हैं सेना को खुली छूट देने के मायने?

Webdunia
सोमवार, 18 फ़रवरी 2019 (11:34 IST)
- वात्सल्य राय
 
भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा में गुरुवार को सीआरपीएफ़ के काफिले पर हुए हमले के बाद से देश भर में विरोध प्रदर्शन का दौर जारी है। केंद्र सरकार से मांग की जा रही है कि वो दोषियों को 'मुंहतोड़ जवाब दें।'
 
हमले की ज़िम्मेदारी चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। ये संगठन पाकिस्तान की ज़मीन से अपनी गतिविधियों को संचालित करता है। ऐसे में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करते हुए उससे मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्ज़ा वापस ले लिया है।
 
सैन्य बलों और आम लोगों की भावनाओं की जानकारी होने की बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को बिहार की एक रैली में कहा, "मैं अनुभव कर रहा हूं कि देशवासियों के दिल में कितनी आग है। जो आग आपके दिल में है, वही आग मेरे दिल में भी है।"
 
इसके पहले एक और रैली में मोदी ने कहा, "गुस्से को देश समझ रहा है। इसलिए सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी गई है।" हालांकि, सामरिक मामलों के विशेषज्ञों की राय है कि ऐसे बयानों के आधार पर ये मानना ठीक नहीं होगा कि अगला विकल्प युद्ध है।
 
बीबीसी हिंदी रेडियो के साप्ताहिक कार्यक्रम में इंडिया बोल में शरीक हुए पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने कहा कि इस वक़्त 'रणनीतिक जवाब' की बात हो रही है। उन्होंने कहा, "जब फ़ौज को छूट दी जाती है, वो टैक्टिकल लेवल (सामरिक स्तर) पर होती है। फ़ौज ये कर रही है और आगे भी करती रहेगी।"
 
'आधुनिकीरण के मामले में सेना पिछड़ गई'
पुलवामा हमले के बाद हो रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान पाकिस्तान को 'सबक सिखाने' की मांग भी की जा रही है। टीवी चैनलों में भी कई बहसों के दौरान युद्धोन्माद खड़ा करने की कोशिश दिखती है। लेकिन 1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हुए युद्ध में हिस्सा ले चुके पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद आगाह करते हैं अब लड़ाई आसान नहीं है।
 
उन्होंने कहा, "इस बात को ध्यान से समझना चाहिए कि पाकिस्तान के पास भी आर्मी है। पाकिस्तान की सेना ऐसी कमज़ोर नहीं है। हालांकि, हमने उनको 1971 में पछाड़कर 90 हज़ार बंदी भी लिए थे। लेकिन पाकिस्तान के पास लड़ाकू विमानों के 25 स्क्वार्डन हैं। हमारे पास उनसे (सिर्फ़) दो चार स्क्वार्डन ज़्यादा हैं। यानी क्रेडिबल डेटेरेंस (भरोसेमंद रक्षातंत्र) नहीं है।"
 
वो कहते हैं कि दो दशक से ज़्यादा वक़्त के दौरान रणनीति खामियों और राजनीतिक विवादों की वजह से आधुनिकीकरण के मामले में सेना पिछड़ गई है। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद कहते हैं, "दुख की बात ये है कि पिछले 20-25 साल से सैन्य बलों के आधुनिकीकरण का काम पीछे रह गया है।"
 
उनकी राय है कि अगर आगे भी सेना के आधुनिकीकरण पर ध्यान नहीं दिया गया तो देश को नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने कहा, "जब तक सशस्त्र सेनाएं और ख़ुफिया एजेंसियां मजबूत नहीं होंगी तब तक दुश्मन खिलवाड़ करता रहेगा।"
 
मौजूदा वक़्त में सरकार क्या विकल्प आजमा सकती है, ये पूछे जाने पर पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने कहा, "गुस्से में इसका हल नहीं निकल सकता है। हमें शांति से सोचना चाहिए कि क्या विकल्प हैं।" वो सीआरपीएफ़ में भी बड़े बदलाव की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं। वो कहते हैं कि सीआरपीएफ़ को भी सेना की तरह ढालने की ज़रूरत है।
प्रोफ़ेशनलिज़्म की कमी
पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, "सीआरपीएफ की बनावट में जबरदस्त बदलाव की ज़रूरत है। सीआरपीएफ़ की यूनिट कंपनी के स्तर पर काम करती हैं। उनके कमांडिंग अफ़सर कहीं और मीलों दूर बैठे होते हैं। उनकी जो कंपनी लड़ती है, उसके साथ मेजर के रैंक के अधिकारी होते हैं। सेना में पूरी यूनिट साथ जाती है। उसके कमांडिंग अफसर साथ होते हैं। अगर हमला होना होता है तो कमांडिंग अफसर उसकी अगुवाई करते हैं। आपने ये करगिल (संघर्ष) में देखा होगा।"
 
वो आगे कहते हैं, "मैं समझता हूं कि सीआरपीएफ़ के मिडिल और सीनियर रैंक में प्रोफ़ेशनलिज़्म की कमी है। वो नौकरशाहों जैसे काम करना चाहते हैं। सरकार भी ये सब बातें जानती है। लेकिन राजनीति और दूसरी अड़चनों की वजह से बदलाव नहीं हो पा रहा है। इनकी बनावट, नेतृत्व और ट्रेनिंग तवज्जो देने की जरूरत है।"
 
हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि इन खामियों को पुलवामा हमले से जोड़ना ठीक नहीं होगा। वो कहते हैं कि इस हमले के बाद साफ़ है कि सुरक्षा और ख़ुफिया तंत्र के लिहाज से हर स्तर पर कमी रही है। ये बात हैरान करने वाली है कि कश्मीर में इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक जा रहा है और उसकी किसी ने जांच नहीं की।

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