पश्चिम बंगाल: कोरोना के आंकड़ों पर क्यों छिड़ा है विवाद?

BBC Hindi
गुरुवार, 7 मई 2020 (08:00 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी, बीबीसी हिंदी के लिए, कोलकाता से

क्या पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार राज्य में कोरोना संक्रमितों या इससे मरने वालों के आंकड़े छिपा रही है? राज्यपाल जगदीप धनखड़ और विपक्षी राजनीतिक दलों की मानें तो पहले दिन से ही उठ रहे इस सवाल का जवाब 'हां' है और राज्य सरकार और सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस की मानें तो इसका जवाब 'ना' है।

अब कोरोना संक्रमितों और इससे होने वाली मौतों पर आंकड़ों के कथित हेरफेर को इस साल होने वाले नगर निगम चुनावों और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है।

बंगाल में कोरोना के आंकड़ों की हकीकत चाहे जो हो, राज्य सरकार की गतिविधियों ने संदेह को बल ही दिया है।
पहले तो उसने कोरोना से होने वाली मौतों की पुष्टि के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया और उसके आधार पर अप्रैल के पहले सप्ताह में मौतों की तादाद उस समय के सात से घटा कर तीन कर दी।
 
उसके बाद भी अब तक 72 ऐसी मौतें हुई हैं जो कोरोना वायरस से संक्रमित तो थे लेकिन सरकार का दावा है कि वो लोग दूसरी गंभीर बीमारियों की वजह से मरे हैं।

गठित की गई समिति पर विवाद : इस विशेषज्ञ समिति पर लगातार सवाल उठने और सरकार को कठघरे में खड़े करने के बाद अब उसके अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। अब मौतों की पुष्टि के लिए उसकी मुहर की ज़रूरत नहीं है।
 
साथ ही सरकार ने माना है कि निजी अस्पतालों से समय पर तमाम तथ्य नहीं मिलने की वजह से आंकड़ों में अंतर आ रहा था। अब इसे सुधार लिया गया है।

इसके बावजूद सरकार कोरोना से मरने वालों में उन 72 लोगों को शामिल नहीं करने पर अड़ी है जिनकी मौत कथित रूप से दूसरी बीमारियों के चलते हुई है।

कोरोना वायरस से होने वाली मौतों पर विवाद बढ़ने के साथ राज्य सरकार ने मार्च के आख़िर में ही ऐसी मौतों की पुष्टि के लिए एक पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर सरकार ने मृतकों का आंकड़ा सात से घटा कर तीन कर दिया था। उस समय मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने कहा था, "बाकी चार मरीज़ों की मौत दूसरी बीमारियों की वजह से हुई है।"
 
वैसे, इस समिति पर शुरुआत से ही विवाद पैदा हो गया था। विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार ने कोरोना से होने वाली मौतों पर पर्दा डालने के लिए ही इसका गठन किया है।

राज्यपाल धनखड़ भी अपने ट्वीट्स और पत्रों में सरकार पर मौतों का आंकड़ा छिपाने का आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस इसे राजनीति से प्रेरित आरोप बताती रही है।
 
क्या प्रशासन और सरकार के बीच समन्वय नहीं है? : राज्य के दौरे पर आने वाली केंद्रीय टीम ने भी समिति के गठन के औचित्य पर सवाल उठाए थे। तब मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने कहा था, "इस समिति का गठन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाह पर ही किया गया है।"
 
विशेषज्ञ समिति पर विवाद बढ़ने के बाद अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इससे पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने दावा किया है कि इसका गठन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने किया है और उनको इसके या इसके सदस्यों के बारे में जानकारी नहीं है।

दूसरी ओर, मुख्य सचिव राजीव सिन्हा का कहना है, "अब विशेषज्ञ समिति की भूमिका सीमित कर दी गई है। आगे से मौतों के तमाम मामले समिति के पास नहीं भेजे जाएंगे। समिति अब कुछ मामलों की जांच कर सरकार को सिफारिशें देगी। समिति का गठन शोध के मकसद से किया गया था।"

कोरोना के आंकड़ों में अंतर पर सरकार की ओर से ग़लती क़बूल किए जाने से विपक्ष के आरोपों को बल मिला है। सरकार ने माना है कि कोरोना मरीज़ों का आंकड़ा एकत्र करने के तरीके में चूक हुई है।

उसका कहना है कि हो सकता है कि कुछ मामले रिपोर्ट नहीं किए जा सके हों। हालांकि सरकार ने 72 संदिग्ध मौतों को कोरोना से मरने वालों की सूची में शामिल करने से इंकार किया है।

मुख्य सचिव का क्या कहना है? : मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने आंकड़े जारी करने में देरी के लिए निजी अस्पतालों को ज़िम्मेदार ठहराया है। मई के पहले तीन दिन आंकड़े जारी होने के सवाल पर उन्होंने पत्रकारों से कहा, "निजी अस्पतालों की खामियों की वजह से प्रदेश सरकार को आंकड़े जारी करने में देरी हो रही है। कोरोना के मामलों में रिपोर्टिंग की प्रक्रिया बहुत जटिल है। इससे आंकड़ों का मिलान करने में चूक हो रही है।"

इससे पहले तक राज्य सरकार ने जितने हेल्थ बुलेटिन जारी किए थे उनमें कोरोना के मरीज़ों की कुल तादाद का ज़िक्र नहीं किया जाता था। इसकी बजाय सिर्फ सक्रिय मामलों के बारे में जानकारी दी जाती थी।

सिन्हा कहते हैं, "अब तमाम अस्पताल कोमोर्बिडिटी यानी ऐसे मरीज़ों की मौतों के आंकड़े नहीं देंगी जो कोरोना पाजीटिव होने के बावजूद दूसरी गंभीर बीमारियो की वजह से मर रहे हैं।"

कोरोना के आंकड़ों पर बढ़ते विवाद के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपनी फ़ेसबुक पोस्ट के जरिए सफ़ाई देनी पड़ी है।

उन्होंने अपनी पोस्ट में आंकड़ों के हवाले लिखा है, "साठ हज़ार प्रशिक्षित आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर आंकड़े जुटा रही हैं। बीते सात अप्रैल से तीन मई तक 5।57 करोड़ घरों के आंकड़े जुटाए जा चुके हैं। यह प्रक्रिया अब भी जारी है।"

विपक्ष का आरोप : लेकिन विपक्ष इससे संतुष्ट नहीं है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए ही कोरोना के आंकड़ों में पारदर्शिता नहीं बरत रही है।

प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष आरोप लगाते हैं, "सरकार कोरोना से संबंधित तथ्य छिपा रही है। शायद उसकी निगाहें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर है।"

घोष ने इस बारे में कलकत्ता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की है। इसमें विशेषज्ञ समिति के गठन पर भी सवाल उठाया गया है।

बीजेपी सांसद सुभाष नस्कर, जो खुद एक डॉक्टर हैं, कहते हैं, "सरकार शुरू से ही राज्य में कोरोना संक्रमण के मामलों को दबाने का प्रयास कर रही है। वह इस महामारी को राजनीतिक रंग देने का प्रयास कर रही है। सरकार की ग़लती की वजह से ही राज्य में संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।"

वाम दल का क्या कहना है? : विधानसभा में वामपंथी विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, "आंकड़ों में अंतर से साफ है कि सरकार बंगाल में कोरना संक्रमण से संबंधित तथ्य छिपा रही है। पहले मौत के आंकड़े कम दिखाने के लिए मौत की वजहों में अंतर गिनाया गया और अब सभी मामलों को दबाया जा रहा है।" लेकिन दूसरी ओर, राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस विपक्ष के आरोपों का निराधार बताती है।
 
संसदीय कार्य मंत्री और तृणमूल के महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, "कोरोना संकट के इस दौर में राज्यपाल और केंद्र सरकार राजनीति कर रही हैं। यह लोग गुजरात की बात क्यों नहीं कर रहे हैं?

मरीज़ों की तादाद और मौतों के मामले में बंगाल देश में 16वें स्थान पर है। दरअसल, राजनीतिक हित साधने के लिए इस बहाने सरकार को बदनाम करने की साजिश चल रही है।"

'क्या सिर्फ ताली बजाने से कोरोना भाग जाएगा?' : स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य कहती हैं, "आंकड़े छिपाने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। कोमार्बिडिटी कोई नई व्यवस्था नहीं है। यह बहुत पहले से चली आ रही है। बंगाल को बेवजह अपमानित किया जा रहा है। इसीलिए यहां त्रुटिपुर्ण किट भेजे गए थे।"

उनका सवाल है कि प्रधानमंत्री ने पहले इस मामले में मुख्यमंत्री से कोई बात क्यों नहीं की? क्या सिर्फ ताली और थाली बजाने से ही कोरोना भाग जाएगा?

राजनीतिक पर्यवेक्षक समरेश दास कहते हैं, "यह मुद्दा विवादित है। सरकार और विपक्ष अपने-अपने दावे को सही ठहरा रहे हैं। लेकिन इस मामले की हकीकत का पता लगाना बेहद मुश्किल है। ऐसे में आम लोग असमंजस में हैं। मौजूदा परिस्थिति में कोरोना के आंकड़ों पर विवाद जारी रहने के आसार हैं।"

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