महंगाई में घर चलाने के लिए क्या-क्या जुगत लगा रही हैं महिलाएं?

BBC Hindi
शुक्रवार, 19 अगस्त 2022 (08:12 IST)
आप हर महीने घर का बजट बनाते हैं और फिर उनमें से किसी मद में ख़र्चा अचानक बढ़ जाता है। तो आप क्या करते हैं? ज़ाहिर है किसी ना किसी हिस्से के बजट में कटौती करते हैं। बढ़ती महँगाई और जीने-रहने-खाने के बढ़ते ख़र्चे के बीच फ़िलहाल भारत का हर परिवार कुछ ऐसी ही कटौती की जुगत में लगा है। 
 
बीबीसी ने भारत के अलग-अलग शहरों में रहने वाली महिलाओं से जानने की कोशिश की कि वो कौन सी चीज़ें हैं जिसमें वो बढ़ती महँगाई की वजह से ख़र्च में कटौती करने के लिए मजबूर हैं।
 
सिल्विया डेनियन दो बच्चों की सिंगल मदर हैं। 20 हज़ार रुपये महीने में दोनों बच्चों को पढ़ाना-लिखना और पालन-पोषण कर बड़ा करना काफ़ी मुश्किल भरा है। बच्चों की पढ़ाई के लिए लोन भी लिया जो बढ़ती महंगाई में और महंगा हो गया है।
 
शुक्र है कि बेटी की हाल में नौकरी लग गई, अब वो भी अच्छा कमा रही है। नहीं तो सिलविया के बुटीक की कमाई से घर चलाना अब मुश्किल हो रहा था।
 
घर चलाने के किस ख़र्चे में कटौती करें - इस सवाल पर वो कहती हैं, ''बढ़ते बच्चों के खाने में तो कटौती कर नहीं सकती, पढ़ाई के लोन का इंस्टॉलमेंट तो देना ही है। इसलिए कटौती बचत में ही हो रही है।'' 
 
शादी के गहने में कटौती
पंजाब के संगरूर में रहने वाले शर्मा परिवार का अपना छोटा-सा बिज़नेस है। परिवार की सालाना आमदनी 3-4 लाख है। रेणु की एक बेटी है जो 16 साल की है। दो-चार साल में उसकी शादी होगी जिसकी फ़िकर में रेणु अभी से परेशान हैं।
 
हर महीने कुछ पैसा जोड़कर साल में एक गहना बनाने का उन्होंने एक लक्ष्य ख़ुद के लिए रखा था ताकि एक साथ उन पर भारी बोझ ना पड़े। पर पहले कोरोना और अब बढ़ती मंहगाई की वजह से वो इसे टालती ही चली जा रही हैं। सोने की बढ़ी हुई क़ीमतों ने उनकी बेटी की शादी की चिंता को और बढ़ा दिया है।
 
ना तो वो बेटी की शादी के लिए पैसे जुटा पा रही हैं और ना ही गहने बना पा रही हैं। परिवार ने त्योहारों पर ख़ुशियों के लिए ख़र्चे भी कम कर दिए हैं।
 
त्योहारों पर अपनी ख़्वाहिशों पर अंकुश
किस्मत कंवर जयपुर के प्रताप नगर में रहती हैं। परिवार की मासिक आमदनी 30 हज़ार रुपये है जिसमें से किसी महीने 28 हज़ार रुपए तो किसी महीने आमदनी से अधिक खर्च हो ही जाते हैं।
 
घर के राशन की बढ़ती क़ीमत, सिलेंडर और सब्ज़ियों के बढ़ते दाम ने इनके घर का बजट बिगाड़ दिया है। घर ख़र्च को आमदनी के अंदर रखने के लिए इन्होंने बच्चों के जन्मदिन और त्योहारों पर अपनी ख़्वाहिशों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया है। घर के लिए कोई नया सामान ख़रीदने के बारे में पाँच बार सोचती हैं। सब्ज़ी एक ही बार बनती है।
 
सरसों तेल की जगह उबले खाने ने ली
महज़बीन उत्तर प्रदेश में हरदोई की रहने वाली हैं। महीने में पति-पत्नी मिल कर 12 हज़ार रुपये कमा पाते हैं। पत्नी सिलाई-कढ़ाई करके कुछ कमा लेती है और पति दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं। कई दिन दोनों खाली ही बैठे रहते हैं और कमाई का कोई ज़रिया नहीं होता। इस कमाई में खाए क्या और बचाए क्या। घर पर बड़े बुजुर्ग भी हैं और बच्चे भी। ना तो उनकी दवाई में कटौती कर सकते हैं और न खाने में। इसलिए बच्चों को ट्यूशन भेजना बंद कर दिया है। खाने का तेल महँगा हो गया, तो उबले खाने से काम चलाती हैं।
 
उधार लेने की नौबत
मिनोति दास असम के जोरहाट ज़िले में रहती हैं। वो एक प्राइवेट स्कूल में चपरासी की नौकरी करती हैं और उनके पति एक प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड हैं। परिवार की मासिक आमदनी 14 हज़ार रुपये है जबकि घर का ख़र्च और बेटे की पढ़ाई में सारे पैसे लग जाते हैं। वह कहती हैं कि पिछले कुछ महीनों में जिस क़दर सारी चीज़ों की क़ीमतें बढ़ी हैं उसमें कई बार उधार लेने की नौबत आ गई है।
 
घर ख़र्च कैसे चलता है? इस सवाल पर वो सिलेंडर और सरसों तेल के दाम मानो रट कर बैठी थीं।
 
"हर महीने 1070 रुपये गैस सिलेंडर पर ख़र्च करना पड़ता है। सरसों के तेल की क़ीमत कुछ महीने पहले तक 115 रुपये प्रति लीटर थी जो अब 210 रुपये हो गई है। पहले 4000 रुपये में एक महीने का राशन आ जाता था, लेकिन अब 6000 रुपये ख़र्च हो जाते है। इसके अलावा बेटे की पढ़ाई का ख़र्च भी पहले के मुक़ाबले बढ़ गया है। ट्यूशन फ़ीस कुछ महीने पहले तक 600 रुपये थी लेकिन अब हज़ार रुपये हो गई है।
 
मिनोति पहले एक साथ घर का राशन ख़रीदती थीं, लेकिन अब जितनी ज़रूरत होती है उतना ही लाती हैं ताकि कोई भी सामान बर्बाद न हो। सबसे बड़ी चिंता स्वास्थ्य को लेकर रहती है। कहती हैं कि इतनी आमदनी में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे।
 
जीना कैसे छोड़ दें
नज़मुस्सबा उत्तर प्रदेश के बिजनौर में रहती हैं। परिवार की मासिक आमदनी 30 हज़ार रुपये है जिसमें वो पहले 5-7 हज़ार रुपये बचा लेती थीं। लेकिन अब बचत ना के बराबर है।
 
दूध के दाम बढ़े तो तुरंत ही दो वक़्त की चाय पीना बंद कर दिया है। पूड़ी-कचौड़ी जैसे पकवान का स्वाद तो तेल की बढ़ती क़ीमतों की वजह से पहले ही भूल चुके हैं। कटौती के सवाल पर वो कहती हैं, ''केवल बचत में कटौती ही कर सकते हैं। बाक़ी जीना कैसे छोड़ दें।''
 
स्कूटी चलाना छोड़ दिया
दीपिका सिंह का परिवार छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहने वाला एक मध्यमवर्गीय परिवार है। परिवार की मासिक आमदनी 40 हज़ार है जिसमें से हर महीने 30-35 हज़ार का ख़र्चा निकल ही आता है। परिवार में पाँच सदस्य हैं।
 
मकान का किराया, राशन, बिजली बिल, बच्चों की पढ़ाई, गाड़ी का पेट्रोल, मेडिकल बिल और कुछ दूसरे छोटे-मोटे ख़र्चे तो होते ही हैं।
 
परिवार ने कहीं आने-जाने के लिए अब अपनी गाड़ी के बजाए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। बहुत मजबूरी हो तो ही स्कूटी निकालती है। बिजली का बिल कम करने के लिए एसी और पंखे का इस्तेमाल सीमित कर दिया गया है। जिस मद में ख़र्च कम हो सकता है, वो हर कोशिश करती हैं कि बचत होती रहे।
 
घर पर मेहमाननवाज़ी में कमी
मौमिता बनर्जी झारखंड के रांची में रहती हैं। परिवार की मासिक आमदनी 36 हज़ार रुपये है जिसमें हर महीने लगभग 32 हज़ार रुपये ख़र्च हो ही जाते हैं। पिछले दिनों गैस सिलेंडर, सरसों तेल, सब्ज़ी, पनीर के बढ़ते दाम ने उनके किचन का बजट बिगाड़ दिया है।
 
मासिक बजट को कमाई के अंदर रखने के लिए अब आधा खाना इंडक्शन पर बना रही हैं। इससे बिजली बिल में बढ़त तो हुई है, लेकिन गैस के बढ़े दाम के मुकाबले ये फ़िलहाल कम है। हरी सब्ज़ी उनके खाने से गायब होती जा रही है। हफ़्ते में सात दिन की जगह दो-तीन दिन ही बाज़ार जा रही हैं। बाकि के दिन मूंगफली, राजमा, मटर से काम चल रहा है। बच्चों के साथ बाहर खाना और त्योहारों में कपड़े ख़रीदना अब कम कर दिया है। घर पर दोस्तों की दावत भी अब कम हो गई है।
 
'सस्ते चावल और दाल तलाशती हूं'
महाराष्ट्र में सांगली की रहने वाली शीरीन इन दिनों हर सामान का सस्ता वर्जन ढूंढती हैं। चावल में सस्ते चावल, दाल में सबसे सस्ती दाल, सब्ज़ी में सबसे सस्ती सब्ज़ी - वजह है बढ़ती मंहगाई।
 
800 रुपये में मिलने वाला गैस सिलेंडर जब क़रीब 1100 रुपये का हो गया तो शीरीन को गेहूं का ख़र्चा कम करना पड़ा। 300 रुपये में वो पूरे महीने का गेहूं खरीद लेती थीं। यही काम उन्होंने सरसों के तेल के साथ किया। पहले महीने में पांच लीटर ख़रीदती थीं, अब चार लीटर में काम चलाती हैं। कहती हैं, ''घर में ना तो लोगों का पेट छोटा कर सकते हैं और ना ही लोगों की संख्या।''  ऐसे में विकल्प बहुत कम हैं। 
 
इस रिपोर्ट के लिए आनंद दत्त ने रांची से, मोहर सिंह मीणा ने जयपुर से, मोहम्मद आसिफ़ ने हरदोई (उत्तर प्रदेश) से, दिलीप शर्मा ने असम, शहबाज़ अनवर ने बिजनौर (उत्तर प्रदेश) से, इमरान कुरैशी ने बेंगलुरु से, कुलवीर सिंह ने पंजाब से, आलोक पुतुल ने रायपुर (छत्तीसगढ़) से और सरफ़राज ने सांगली (महाराष्ट्र) से अपने इनपुट भेजे हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Reels पर तकरार, क्यों लोगों में बढ़ रहा है हर जगह वीडियो बनाने का बुखार?

क्या है 3F का संकट, ऐसा कहकर किस पर निशाना साधा विदेश मंत्री जयशंकर ने

कौन हैं स्‍वाति मालीवाल, कैसे आप पार्टी के लिए बनी मुसीबत, पिता पर लगाए थे यौन शौषण के आरोप?

रायबरेली में सोनिया गांधी की भावुक अपील, आपको अपना बेटा सौंप रही हूं

कांग्रेस, सपा सत्ता में आई तो राम मंदिर पर बुलडोजर चलाएंगी

iQOO Z9x 5G : लॉन्च हुआ सबसे सस्ता गेमिंग स्मार्टफोन, धांसू फीचर्स

Realme का सस्ता 5G स्मार्टफोन, रोंगटे खड़े कर देंगे फीचर्स, इतनी हो सकती है कीमत

15000 में दुनिया का सबसे पतला स्मार्टफोन, 24GB तक रैम और 60 दिन चलने वाली बैटरी

53000 रुपए की कीमत का Google Pixel 8a मिलेगा 39,999 रुपए में, जानिए कैसे

Apple Event 2024 : iPad Pro, iPad Air, Magic Keyboard, Pencil Pro एपल ने लूज इवेंट में किए लॉन्च

अगला लेख