यूनान का सिकंदर आख़िर कैसे बना 'सिकंदर महान'

Webdunia
बुधवार, 16 मई 2018 (11:35 IST)
यूनान के सम्राट सिकंदर को दुनिया सिकंदर महान, या 'अलेक्ज़ेंडर द ग्रेट' कहती है। हम आप सिकंदर को महान इसलिए कहते हैं कि उसने बहुत कम उम्र में यूरोप से लेकर एशिया तक अपनी सत्ता का विस्तार कर लिया था।
 
महज़ 32 बरस की उम्र में मरने से पहले सिकंदर ने ग्रीस के सदियों पुराने दुश्मन फ़ारस को अपनी सेना के आगे घुटने टेकने को मजबूर किया। उसने सभ्यताओं के केंद्र रहे मध्य-पूर्व यानी आज के तमाम अरब देशों पर अपनी हुकूमत क़ायम कर ली थी। सिकंदर के महान बनने और इतनी कामयाबी हासिल करने में सबसे बड़ा रोल उसके उस्ताद अरस्तू की दी हुई शिक्षा का माना जाता है।
 
अरस्तू थे सिकंदर के शिक्षक
क्या आपको पता है कि अरस्तू ने सिकंदर को क्या पढ़ाया था? असल में अरस्तू ने सिकंदर को सुनायी थी एक कहानी। ये कहानी कुछ कल्पना और कुछ हक़ीक़त के मेल से बनी थी। कहानी थी ट्रॉय के युद्ध की जिसे ग्रीक कवि होमर ने अपने महाकाव्य 'इलियड' में विस्तार से बयां किया है।
 
ये कहानी तमाम इंसानी जज़्बों का निचोड़ है। इश्क़ और मोहब्बत है। नफ़रत है। इसमें वीर रस है। इस में इंसान के दैवीय चमत्कारों को भी बयां किया गया है। इलियड एक ऐसा महाकाव्य है जिसने सिकंदर को जीत के जज़्बे से भर दिया। उसने ट्रॉय की लड़ाई से ग्रीक राजाओं की एकजुटता और युद्ध की रणनीति का सबक़ सीखा और फिर दुनिया जीत ली।
 
वो कहानी जिसने सिकंदर को महान बनाया
कहानियों का हमारी सभ्यता से गहरा नाता रहा है। पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, दुनिया के हर कोने में क़िस्सागोई इंसानी सभ्यता के विकास के हर दौर में शामिल रही है। बचपन में हम सभी ने अपनी दादी, नानी से कहानियां ज़रूर सुनी हैं। राजा रानी की कहानी, सात बहनों की कहानी, अली बाबा और चालीस चोर, पंचतंत्र की कहानी वग़ैरह।
 
हर कहानी के अंत में एक सीख होती थी। साथ ही शब्दों के ज़रिए उस दौर का ख़ाका खींचा जाता था जिससे बच्चों को उस दौर के समाज के तौर-तरीक़ों और चाल-चलन की जानकारी मिलती थी। कहानियां कहने और लिखने का काम हर दौर में रहा है। अरब देशों में अलिफ़-लैला लिखी गई, तो भारत में पंचतंत्र की कहानियां। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य लिखे गए।
 
कहानियों की क़द्र सिर्फ़ किताबों के पन्नों तक ही नहीं है, बल्कि इंसानी ज़िंदगी में भी उनकी क़ीमत है। ख़ुद अरस्तू का कहना था कि साहित्य और कहानियां सिर्फ़ इंसान का मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि इनका इंसानियत का पाठ सिखाने और क़ायदे-क़ानून बनाने में भी अहम रोल होता है। इसके अलावा ग़ज़लें, नज़्म, कविता दोहे, छंद और रूबाई इंसानी जज़्बात बयां करते हैं। ये सभी बेहतर इंसान बनाने में अहम रोल निभाती हैं।
 
चीन में सरकारी अधिकारी करते थे कविता
ऐसा नहीं है कि सारी दुनिया में साहित्य लिखने की शुरुआत महाकाव्यों या उस दौर के राजा महाराजाओं की हार जीत की कहानियां लिखने से हुई हो। बहुत-सी जगहों पर इसकी शुरूआत कविताओं से भी हुई है। मसलन चीन में साहित्य की शुरूआत नज़्में लिखने से हुई। यहां कविताएं लिखने का काम सिर्फ़ शायर नहीं करते थे, बल्कि हुकूमत में बड़े ओहदों पर बैठने वालों को भी कविता लिखने के इम्तिहान से गुज़रना पड़ता था।
 
चीन में सभी बड़े सरकारी अफ़सरों को कविता कहने और उसकी बारीकियों की समझ होनी ज़रूरी थी। पूर्वी एशिया में गानों और कविताओं का संकलन यहां के साहित्य का बड़ा हिस्सा रहा है। चीन से ही प्रभावित होकर जापान में भी कविता की विधा को ख़ूब आज़माया गया। पहले के दौर में जापान में महिलाओं को चीनी साहित्य पढ़ने की इजाज़त नहीं थी।
 
लेकिन कहते हैं जहां चाह, वहां राह। पाबंदी के बावजूद जापान में साहित्य की दुनिया को बड़ा तोहफ़ा एक उपन्यास के तौर पर मिला जिसका नाम था, 'द टेल ऑफ जेंजी'। इसे एक महिला ने लिखा था जिसका नाम था मुरासाकी शिकिबू।
 
जापानी महिला ने लिखा उपन्यास
इस महिला ने अपने भाई को पढ़ते देखकर लिखना सीखा था। फिर उसने क़रीब हज़ार पन्नों वाला मास्टर पीस तैयार किया। अपने उपन्यास को आला दर्जे का साहित्य बनाने के लिए उसने क़रीब 800 कविताएं इसमें शामिल कीं।
 
साहित्य यानी क़िस्से-कहानियों की दुनिया में क्रांति लाने का श्रेय जाता है अरब देशों को जिन्होंने चीन से काग़ज़ बनाने की कला सीखी और उसे एक बेहद कामयाब कारोबार के रूप में आगे बढ़ाया। काग़ज़ के आविष्कार से पहले कहानियां मुंह ज़बानी सुनाकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाई जाती थीं।
 
जब इंसान ने लिखना शुरू किया तो उसने अपने विचार पेड़ों की छालों पर दर्ज किए। पत्थरों पर उकेरे। काग़ज़ वजूद में आने के बाद तो तस्वीर ही बदल गई। अरब देशों में भी अलिफ़-लैला की कहानियां इसी तरह से इकट्ठा की गई थीं।
 
कहानियां हों, कविताएं या फिर महाकाव्य सभी मानवता के इतिहास का अटूट हिस्सा हैं। जन्नत और दोज़ख़ का तसव्वुर पूरी तरह से धार्मिक है। लेकिन इतालवी कवि दांते ने इस तसव्वुर को बहुत ख़ूबसूरत और मज़ाकिया अंदाज़ में पेश किया, 'डिवाइन कॉमेडी' में।
 
काग़ज़ की ईजाद ने साहित्य को संजोने में मदद की थी। प्रिंटिंग के आविष्कार ने इसे घर-घर तक पहुंचा दिया। प्रिंटिंग के बाद उपन्यास लिखने का चलन बढ़ने लगा। ख़ास तौर से महिलाओं के लिए बड़े पैमाने पर उपन्यास लिखे जाने लगे। नए उभरते देशों ने अपनी आज़ादी के लिए म़ॉडर्न नॉवेल का इस्तेमाल ख़ूब किया। दरअसल सियासी आज़ादी के लिए सांस्कृतिक आज़ादी का होना बहुत ज़रूरी है और उपन्यास इसकी पूरी छूट देता है।
 
साहित्य पर इंटरनेट युग का असर
जैसे-जैसे तकनीक बढ़ती गई, साहित्य की पहुंच भी बढ़ती गई। शिक्षा के बढ़ते स्तर ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई। ज़्यादा पढ़ने वाले पैदा होने लगे तो ज़्यादा कहानियां लिखने वाले भी सामने आने लगे। आज हर तरह की कहानियां लिखने और पढ़ने वाले मौजूद हैं।
 
आज हम इंटरनेट के दौर में जी रहे हैं। एक क्लिक पर दुनिया भर का साहित्य हमारे सामने आ जाता है। हालांकि हरेक चीज़ ऑनलाइन होने की वजह से किताबों की छपाई पर बुरा असर पड़ा है, लेकिन इससे कहानियां सुनने-सुनाने के लोगों के जुनून में कोई कमी नहीं आई है।
 
भले ही किताब हाथ में लेकर कोई ना पढ़े, लेकिन हरेक के हाथ में गैजेट् मौजूद है जिस पर वो जब चाहे जो चाहे पढ़ सकता है। लिहाजा हम कह सकते हैं कि डिजिटल वर्ल्ड में हम साहित्य लिखने की फिर से नई शुरूआत कर रहे हैं। तो, दौर भले बदल गए हों, ताज भले ही बदल गए हों, क़िस्से सुनने-सुनाने का दौर जारी है। कहानी की हुकूमत हमारे दिलों पर क़ायम है।

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