बिहार चुनाव में बाहुबली अनंत सिंह का डंका,मोकामा सीट से 5 वीं बार विधायक चुने गए 'छोटे सरकार'
बाहुबली अनंत सिंह ने जेडीयू उम्मीदवार को हाराया
बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे बाहुबली अनंत सिंह में लगातार पांचवीं बार विधायक चुने गए है। जेल में बंद आरजेडी के उम्मीदवार अनंत सिंह ने बड़ी जीत हासिल करते हुए जेडीयू उम्मीदवार राजीव लोचन नारायण सिंह को 20,194 मतों से हराया। जेल में रहकर चुनाव लड़ने वाले अनंत सिंह को 38123 वोट हासिल हुए वहीं जेडीयू उम्मीदवार राजीव लोचन नारायण सिंह को 17929 वोट हासिल की है। बाहुबली अनंत सिंह का पूरा चुनाव प्रबंधन उनकी पत्नी संभाल रही थी।
बाहुबली अनंत सिंह लगातार पांचवी बार विधायक चुने गए है। 2005 में पहली बार विधानसभा के सदस्य चुने जाने वाले अनंत सिंह उसकी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में विधायक चुने गए। इसके बाद 2010 में जदयू के टिकट पर और 2015 में निर्दलीय चुनाव के तौर पर विधायक चुने गए।
राजनीति में जारी है 'अनंत' सफर- बाहुबली अनंत सिंह के सियासी सफर को जानने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा। जिस आरजेडी के टिकट पर आज अनंत सिंह चुनाव जीते है उस पार्टी के मुखिया लालू यादव और अनंत सिंह के परिवार के तीन दशक पुराने रिश्ते है। 1990 में जब लालू पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तब अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह चुनाव जीतकर लालू की सरकार में मंत्री बने थे।
नब्बे के दशक में अनंत सिंह का परिवार भले ही बिहार में अपराध की दुनिया के साथ चुनावी राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहा हो लेकिन चार भाईयों में सबसे छोटे अनंत सिंह इन सबसे दूर वैराग्य लेकर पटना से कोसों दूर हरिद्धार में साधु बन ईश्वर की आरधना में लीन हो गए थे।
लेकिन कहते है न कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा..अनंत सिंह के जीवन पर उक्त लाइन एकदम सटीक बैठती है। सियासी अदावत में अनंत सिंह के बड़े भाई बिरंची सिंह की दिनदहाड़े हत्या कर दी जाती है। भाई की हत्या की खबर सुनकर अनंत सिंह का खून खौल उठता है और भाई के हत्यारों को मौत के घाट उतारने के लिए वह वापस बिहार लौटता है और अपने भाई की हत्या का बदला ले लेता है। भाई के हत्यारे को मौत के घाट उतारने के साथ ही अनंत सिंह ने अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बढ़ने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए और वह देखते ही देखते बिहार की राजनीति में भूमिहारों का सबसे बड़ा चेहरा बन बैठा।
इसके बाद तो अनंत सिंह के नाम का डंका बजने लगा। अपराध की दुनिया में अनंत सिंह के अपराध की अनंत कथाएं पुलिस की फाइलों में एक के बाद दर्ज होनी शुरु हो गई है। बेहद शातिर,चालक अनंत सिंह देखते ही देखते अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बन गया है। उसको न तो पुलिस का खौफ था औऱ न ही कानून का डर।
अपराध की दुनिया में अनंत सिंह का बढ़ता कद अब बिहार के सबसे बड़े बाहुबली नेता सूरजभान को खटकने लगा था। सूरजभान उस बाहुबली नेता का नाम था जिसने साल 2000 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को मोकामा सीट से मात दी थी। विधायक बनने के बाद 2004 में सूरजभान बलिया सीट से सांसद बन गया।सूरजभान के सांसद बनने के बाद अब अनंत सिंह पर पुलिसिया प्रेशर बढ़ने लगा। 2004 में बिहार एसटीएफ ने अनंत सिंह के घर को घेर कर उसका एनकाउंटर करने की कोशिश की लेकिन अनंत सिंह बच निकला।
अनंत सिंह अब तक इस बात को अच्छी तरह जान चुका था कि सूरजभान से मुकाबला करने के लिए उसको राजनीति के मैदान में उतरना ही पड़ेगा जिसके बाद वह साल 2005 के चुनाव में पहली बार मोकामा सीट से नीतीश की पार्टी जेडीयू के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरा और अपराधी से माननीय विधायक जी बन गया।
अनंत सिंह का विधायक बनना और फिर नीतीश कुमार का सत्ता में आना, मानो अनंत सिंह के लिए मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा था। सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेजी से बढ़ती गई। इसके बाद 2010 में फिर अनंत सिंह फिर जेडीयू के टिकट पर मोकामा से चुनाव जीत गया। पुलिस की फाइलों का दुर्दांत अपराधी अनंत सिंह अब छोटे सरकार के नाम से पहचाने जाना लगा था। मोकामा के लोगों के लिए अनंत सिंह दादा बन कर और गरीबों के मसीहा यानि रॉबिनहुड बन बैठे।
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है। साल 2014 में बिहार में सत्ता के समीकरण बदलते है। लालू और नीतीश के एक साथ आते ही अनंत सिंह के दिन बदलने शुरु हो जाते है। बिहार के एक और बाहुबली नेता पप्पू यादव जिसकी अनंत सिंह से अदावत काफी पुरानी थी वह लालू पर दबाव बनाता है और किंगमेकर लालू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर। सरकार के मुखिया का इशारा मिलते ही सालों से चुप बैठी बिहार पुलिस अनंत सिंह को गिरफ्तार करने पहुंच जाती लेकिन अनंत सिंह के किलेनुमा घर से गोलियों की बौछार होती है। घंटों संग्राम के बाद अनंत सिंह को अखिरकार गिरफ्तार कर लिया जाता है।
2015 में अनंत सिंह जेल से मोकामा से निर्दलीय चुनाव लड़ता है और जीत हासिल करता है। अनंत सिंह भले ही लगातार चौथी बार विधायक चुन लिया गया हो लेकिन अब उस पर किसी पार्टी का हाथ नहीं था इसलिए वह थोड़ा कमजोर हो जाता है। इस बार चुनाव से ठीक पहले अनंत सिंह फिर आरजेडी में शामिल होकर मोकामा सीट से चुनाव लड़ते है और शानदार जीत हासिल करते है।