सोने जैसा सोनू सूद : 100 टंच खरा

समय ताम्रकर
शनिवार, 3 अप्रैल 2021 (13:34 IST)
माली पौधे के आसपास की मिट्टी को थोड़ा ऊपर-नीचे करता है। इसे निराई-गुड़ाई कहते हैं। नीचे की मिट्टी ऊपर और ऊपरी सतह वाली मिट्टी नीचे चली जाती है। इससे पौधे का विकास तेजी से होता है। कोविड-19 ने पूरी दुनिया में कुछ इसी तरह उथल-पुथल कर दिया। इससे सिर्फ विनाश ही हुआ। लेकिन कुछ अनमोल हीरे सामने आ गए। ये ‘विलेन’ लगते थे, लेकिन ‘हीरो’ निकले। जिस तरह फिल्म में हीरो सभी का मददगार होता है, अपनी बाद में पहले लोगों की भलाई सोचता है, मदद के नाम पर सब कुछ न्यौछावर कर देता है, वैसा ही काम सोनू सूद ने रियल लाइफ में किया है। रील लाइफ में वे जहां अधिकतर फिल्मों में हीरो की राह में कांटें बिछाते रहे, तो रियल लाइफ में उन्होंने हीरो बन कर लोगों की राह के कांटें साफ करने की तारीफ योग्य कोशिश की है। 
 
भारत में जब पहला लॉकडाउन लगा था, उस बात को लगभग एक साल हो गया है। लॉकडाउन लगने कुछ दिनों बाद कई मजदूर अपने ‘देस’ जाने के लिए पैदल ही चल पड़े। चिल‍चिलाती धूप में पैरों में छाले लिए नन्हें-नन्हें बच्चे, माताएं और बहनें, वृद्ध सैकड़ों किलोमीटर लंबी यात्रा पर चल पड़े। मंजर इतना दर्दनाक हो गया कि रूह कांप गई। सोनू सूद भी यह दृश्य विचलित हो उठे। लेकिन वे अलग मिट्टी के बने हुए थे। उन्होंने इन लोगों की मदद करने की ठानी। उन्होंने यह नहीं सोचा कि मैं अकेला हूं। यह सब कैसे होगा? पैसे कहां से आएंगे? मुझे कोरोना तो नहीं हो जाएगा? बात दिमाग में आई भी होगी तो सोचा कि जो होगा, देखा जाएगा। फिलहाल तो मदद करूं।
 
सोनू को मदद का सिलसिला शुरू किए लगभग एक साल पूरा होने को आया है। मौका है सोनू सूद के इन एक सालों में किए गए कामों को याद करने का। यूं तो सोनू सूद ने कई लोगों की मदद की। कुछ ऐसी मदद जो किसी को पता भी नहीं चली। पर उनके इन यादगार कामों को इसलिए याद किया जा रहा है ताकि दूसरों को भी प्रेरणा मिले। अभी जो परिस्थिति है वो भयावह है और हमें कई सोनू सूद चाहिए। 
 
* सबसे पहले सोनू सूद ने मजदूरों के लिए बसों की व्यवस्था करवाई ताकि उन्हें पैदल न जाना पड़े। बस से बात धीरे-धीरे रेल और फिर चार्टर्ड फ्लाइट तक पहुंच गई। हजारों लोगों को सोनू ने मंजिल तक सुखद तरीके से पहुंचाया। 
 
* Kyrgyzstan में 1500 भारतीय छात्र फंस गए। जुलाई 2020 में सोनू ने उनके लिए चार्टर्ड फ्लाइट्स का इंतजाम किया और उन्हें भारत लाकर ही माने। 
* इसी तरह तमिलनाडु के 101 छात्र मास्को में फंस गए। उन्हें चेन्नई वापस लाकर ही सोनू माने। 
* एक वीडियो सोनू की आंखों के सामने से गुजरा। इसमें किसान की बेटियां बैलों की जगह खुद जुत कर काम कर रही थी। सोनू बैचेन हो गए। उन्होंने फौरन उनके घर ट्रैक्टर पहुंचा दिया। 
* इसके बाद तो असहाय लोग सोशल मीडिया के जरिये सोनू तक अपनी  बात पहुंचाने लगे। किसी को लैपटॉप चाहिए, किसी को घर की छत ठीक करवाना है, किसी को फीस भरनी है, तो किसी के माता-पिता कहीं फंसे हुए हैं। सिलसिला चलने लगा और सोनू के हाथ कहीं नहीं रूके। यथा संभव सभी की मदद उन्होंने की। गिनती भी शायद भूल गए होंगे। 
* मुंबई पुलिस के लिए भी रहने और खाने का इंतजाम किया। हजारों भूखों तक खाना पहुंचाया। 
* सोनू ने एक प्लेटफॉर्म लांच किया जहां से वे लोगों की मदद करने लगे। 
 
ऐसा नहीं है कि सोनू इसलिए मदद कर पाए कि वे उनके पास बहुत ज्यादा पैसा है। पैसे से ज्यादा उनके पास जज्बा है। जज्बे के बूते पर वे ये सब करते गए जिसमें कुछ लोगों का सहयोग भी मिला। सोनू को अपनी कुछ प्रॉपर्टी भी बेचनी पड़ी। लोन भी लेना पड़ा, लेकिन इससे उनके हौंसले पस्त नहीं हुए। अभी वे जुटे हुए हैं। चारों ओर उनकी तारीफ हो रही है। तारीफ के साथ-साथ हम उनसे प्रेरणा लें। उन लोगों की यथा संभव मदद करें जो असहाय हैं। ऐसा कर हम सोनू का हाथ ही बटाएंगे।

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