मैं थोड़ा ओल्ड स्कूल थॉट वाला निर्देशक हूं : नितिन कक्कड़

रूना आशीष
सोमवार, 1 अप्रैल 2019 (15:53 IST)
हमारी आज की जो पीढ़ी है, वो बहुत ही चिल करने वाली पीढ़ी है। हम प्यार को भी होम डिलीवरी की तरह से लेते हैं। चार जगह से खाना मंगा लो फिर दो अच्छा लगे, वो कर लेंगे। या कभी किसी से ब्रेकअप हो भी गया तो हम बोल देते हैं, अरे कोई बात नहीं मूव ऑन या भूल जाओ ये तो पुराना किस्सा है। होता है या दिल पर मत लगाओ और ऐसा सबकुछ तो होते रहेगा। अगर सच पूछें तो मुझे वो लव स्टोरी पसंद है, जो सुबह-सुबह उठने पर कोई वृद्ध महिला अपने पति को हाथ थामे मॉर्निंग वॉक पर ले जाती है। मैं थोड़ा ओल्ड स्कूल थॉट वाला निर्देशक हूं।


फिल्मिस्तान जैसी फिल्म से नेशनल अवॉर्ड पाने वाले नितिन की मित्रों फिल्म को भी खूब पसंद किया गया है और अब उनकी नोटबुक रिलीज हुई है। फिल्म के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान उन्होंने 'वेबदुनिया' को बताया कि कश्मीर नाम से मैं भी सतर्क होकर गया था। रैकी करने गया। सुबह-सुबह जब होटेल में उठा तो पेपर में पढ़ा कि श्रीनगर में कर्फ्यू है। लेकिन थोड़ी देर में मुझे जगह दिखाने वाला शख्स होटल लॉबी में मिल गया। मैंने पूछा भी कि कैसे देखेंगे? सब जगह कर्फ्यू लगा हुआ है? तो मुझे जवाब मिला कि वो तो डाउन टाउन में एक किसी मुहल्ले में लगा है, बाकी की जगहों पर सब ठीक है।

क्या इस फिल्म में कश्मीर और एकता का भी संदेश है?
मुझे लगता है कि मुंबई में कई जगहों पर कई और मुंबई भी बसते हैं। अंधेरी वाला मुंबई या मीरा रोड वाला मुंबई या बांद्रा वाला मुंबई। वैसे ही कश्मीर में भी कई कश्मीर बसते हैं। मैं कश्मीर को सुंदर दिखाना चाहता हूं। कश्मीर वो लगे, जैसा वो असल में है। इसका ये मतलब नहीं है कि वहां जो हो रहा है या हो चुका है, मैं उससे मुंह मोड़ रहा हूं। लेकिन अच्छा है तो बुरा भी है और सिर्फ बुरा ही बताया जाएगा तो ठीक नहीं होगा।

इसमें फ्लोटिंग स्कूल दिखाया गया है, वो कहानी का एक भाग है या सिनेमैटिक क्रिएटिविटी?
फ्लोटिंग स्कूल कहानी का ही हिस्सा है और इसे बनाने में मेरे सेट और प्रोडक्शन टीम को बड़ी सारी चुनौतियां भी देखना पड़ीं। पहले तो इतने सारे ड्रम इकट्ठा करके मजबूत सा फ्लोटिंग सेट बनाओ जिसमें एक साथ सौ-डेढ़ सौ लोग चढ़-उतरकर काम कर सकें। उसमें साइट्स भी होंगी और कैमरा भी रखा जाएगा। कभी कैमरे को एक से दूसरी जगह भेजना है तो सिर्फ उठाकर नहीं रखना है। कैमरे को पहले दूसरी बोट में रखा जाएगा फिर उसे दूसरी ओर ले जाया जाएगा फिर उसमें से कैमरा उठाकर सेट पर रखा जाएगा।

मौसम ने कितना साथ दिया?
कश्मीर का मौसम हर पल बदलता रहता था। हमारी दिक्कत ऐसे शुरू होती थी कि सुबह उठकर गाड़ी से लेक के किनारे पहुंचो फिर एक बोट से फ्लटिंग सेट तक का सफर तय करो। सुबह सोचकर निकलो कि आज कुछ हैप्पी सीन कर लेंगे तो वहां जाकर मालूम पड़ा कि सूरज ही नहीं निकला या बादल छाए हैं तो फिर एक बार स्क्रिप्ट लेकर बैठो कि कौन सा दु:ख वाला सीन हो तो वो शूट कर लें।
 
कश्मीर के पुलवामा हमले के बाद पाक ने फिल्मों पर बैन कर दिया है, आपकी राय क्या है?
जो हुआ, वो बहुत गलत हुआ। दु:ख है इस बात का कि हिंसा हुई। मैं तो ये ही चाहता हूं कि किसी भी तरह से शांति हो सके। देशों में और दुनिया में। वैसे भी आतंकवाद का कोई धर्म या ईमान या नाम या देश नहीं होता है। ये एक ऐसी चीज है जिसे जड़ से खत्म किया जा सके बाकी फिल्में बैन करना या न करना ये बहुत ही अलग बात है। शांति पहले कायम हो।

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