साई परांजपे, जिनकी कहानियां मानवीय भावनाओं, हास्य और संवेदनशीलता से भरपूर होती हैं, एक बार फिर चर्चा में हैं। फिल्मफेयर के शो In The Ring with Filmfare के नए एपिसोड में उन्होंने अपनी ज़िंदगी की अनसुनी कहानियां साझा कीं। दूरदर्शन से लेकर स्पर्श, कथा और चश्मे बद्दूर जैसी आइकॉनिक फिल्मों तक की उनकी यात्रा बेहद प्रेरणादायक रही है। यह एपिसोड अब Filmfare के YouTube चैनल पर उपलब्ध है।
8 साल की उम्र में लिखी थी पहली किताब
साई ने बताया कि उन्होंने आठ साल की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा- "मैं हमेशा जादूगरों, राजकुमारियों और काल्पनिक दुनिया में खोई रहती थी। मेरी मां ने मेरी कहानियों को इकट्ठा किया और उन्हें प्रकाशित कराया।"
दूरदर्शन से निर्देशन का सफर
साई परांजपे ने अपने करियर की शुरुआत दूरदर्शन, दिल्ली से की थी, जहां वह भारत की पहली छह टीवी डायरेक्टर्स में शामिल थीं। इसके साथ ही वे FTII में स्पीच और ड्रामा पढ़ाया करती थीं, जहां उनके छात्र थे जलाल आगा, रेहाना सुल्तान, सद्दू मेहर और राकेश पांडे।
'स्पर्श' की स्क्रिप्ट सुनकर संजीव कुमार क्यों पीछे हटे?
साई ने एक दिलचस्प किस्सा साझा किया जब उन्होंने संजीव कुमार को 'स्पर्श' की स्क्रिप्ट सुनाई। “उन्होंने सिर्फ 15 मिनट का वक़्त दिया था, लेकिन स्क्रिप्ट सुनते हुए इतना डूब गए कि बोले- 'शेव कर लूं क्या, आपको बुरा तो नहीं लगेगा?' लेकिन जैसे ही पता चला कि निर्माता बसु भट्टाचार्य हैं, उन्होंने प्रोजेक्ट छोड़ दिया।”
शबाना आज़मी का सवाल: "बायां आंसू या दायां?"
स्पर्श की एक इमोशनल सीन का ज़िक्र करते हुए साई बताती हैं- “शबाना ने पूछा, क्या वो रोएगी? मैंने कहा हां, एक सिर्फ एक आंसू। फिर उन्होंने पूछा- बाएं आंख से या दाएं से? मैंने कहा- बाएं। और फिर वही आंसू उनके चेहरे से लुढ़कता है। ये उनकी अदाकारी की गहराई थी।”
कथा के लिए क्यों हुआ रॉन्ग कास्टिंग का हंगामा?
जब साई ने नसीरुद्दीन शाह को कछुए और फारुख शेख को खरगोश के रोल दिए, तो कहा गया कि यह गलत कास्टिंग है। “मैंने उन्हें साफ कहा, क्या आप पोस्टर बॉयज़ हैं या एक्टर्स? बार-बार एक जैसे रोल कब तक करोगे? और मैं उन्हें मनाकर ही मानी।”
नाना पाटेकर का गुस्सा और साई का संयम
'दिशा' की शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर ने कई बार गुस्सा दिखाया। तीसरी बार जब वह डबिंग के दौरान भड़के, तो साई ने दो टूक कहा- “या तो करो, या बाहर निकलो।” नाना चले गए लेकिन आधे घंटे बाद लौटे और बोले- “तुम बच गई... क्योंकि तुम औरत हो। वरना यहां नहीं होती।”
महिला निर्देशक के रूप में क्या मिला अलग अनुभव?
साई परांजपे ने कहा- "मैंने कभी नहीं महसूस किया कि मैं महिला हूं इसलिए पीछे हूं। बल्कि, इसका फायदा मिला। मुझे हमेशा सम्मान मिला क्योंकि मैं अपने काम में स्पष्ट थी।"
50 साल से ज्यादा के करियर में साई परांजपे ने जो रचा, वह सिर्फ फिल्में नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं की गहराई को छूती कहानियां थीं। उनका यह इंटरव्यू न सिर्फ सिनेमा प्रेमियों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत है जो रचनात्मकता, अनुशासन और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहता है।