मनोज कुमार और धर्मेन्द्र की यारी की कहानी, जब एक ने फिल्म छोड़ी तो दूसरा बोला मैं नहीं करूंगा शूटिंग

WD Entertainment Desk
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025 (13:52 IST)
मनोज कुमार का जाना, धर्मेन्द्र के लिए सिर्फ एक दोस्त का खोना नहीं है, बल्कि अपने संघर्ष के दिनों की आत्मा को खो देने जैसा है। एक ऐसा साथी, जिसके साथ उन्होंने न सिर्फ फिल्मी करियर की शुरुआत की, बल्कि जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर को भी पार किया।
 
मनोज और धर्मेन्द्र की दोस्ती सिर्फ किसी फिल्मी सेट पर हुई जान-पहचान नहीं थी। ये उस दौर की बात है जब दोनों युवा थे, सपनों से भरे थे और जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं थी। दोनों का सपना था, एक दिन बड़े पर्दे पर चमकना। लेकिन, मुंबई की चकाचौंध के पीछे की सच्चाई कुछ और थी। दिन भर प्रोड्यूसरों के चक्कर, रिजेक्शन और खाली पेट रातें।
 
इन्हीं संघर्षों के बीच, एक दिन दोनों को एक फिल्म में छोटा-सा रोल मिला। धर्मेन्द्र को 350 रुपये मिलने वाले थे, जबकि मनोज कुमार को 450 रुपये। 
 
जब मनोज को ये बात पता चली, तो उन्होंने एक चौंकाने वाला फैसला लिया – "अगर मेरे दोस्त को मुझसे कम पैसे मिल रहे हैं, तो मैं ये फिल्म नहीं करूंगा।" यह सुनकर धर्मेन्द्र को भी झटका लगा, लेकिन उन्होंने भी तुरंत कह दिया – "अगर मनोज ये फिल्म नहीं करेगा, तो मैं भी नहीं करूंगा।"
 
दोस्ती की ये मिसाल शायद आज के समय में कम ही देखने को मिले।
 
मनोज कुमार ने जब पूछा, "तूने फिल्म क्यों छोड़ी?" तो धर्मेन्द्र का जवाब दिल छू लेने वाला था- "दोस्त के बिना काम करने का क्या मतलब? तेरे बिना मैं ये फिल्म नहीं करूंगा!"
 
लेकिन यही एक किस्सा नहीं था जो इनकी दोस्ती की गहराई दिखाता है।
 
धर्मेन्द्र एक वक्त ऐसा भी आया जब पूरी तरह टूट चुके थे। काम नहीं मिल रहा था, जेब खाली थी और उम्मीदें भी साथ छोड़ती लग रही थीं।एक दिन उन्होंने थक-हारकर ट्रेन पकड़ने का फैसला किया, वापस अपने गांव, पंजाब लौटने के लिए।
 
पर मनोज कुमार को यह खबर लग गई। वे फौरन स्टेशन पहुंचे। ट्रेन छूटने से पहले धर्मेन्द्र को पकड़ा और कहा, "कुछ दिन रुक जा दोस्त… हम साथ हैं, तो रास्ता भी मिलेगा और मंज़िल भी।" मनोज ने वादा किया – "तेरा खर्चा मैं उठाऊंगा, बस तू यहां से मत जा।" और धर्मेन्द्र रुक गए।
 
कुछ ही दिनों में किस्मत ने करवट ली। दोनों को फिल्में मिलने लगीं, और वही दोस्ती जिसने उन्हें संघर्ष में थामे रखा, एक साथ सफलता की सीढ़ी पर चढ़ी।
 
मनोज कुमार आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी और धर्मेन्द्र की ये दोस्ती भारतीय सिनेमा की सबसे खूबसूरत यादों में से एक बन चुकी है। ये सिर्फ किस्से नहीं हैं, ये सच्ची यारी के प्रतीक हैं, जो आज भी लोगों को इंसानियत और दोस्ती की मिसाल देते हैं।

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