कानपुर-कोलकाता हाईवे से Ground Report : साहब, भूख से हारे से तो निकल पड़े साइकल से, प्रवासी मजदूरों के सफर की कहानी, उन्हीं की जुबानी

अवनीश कुमार
सोमवार, 18 मई 2020 (09:39 IST)
लखनऊ। लॉकडाउन का चौथा चरण आज से चालू हो गया है, जो 31 मई तक रहेगा। पिछले कुछ दिनों में प्रवासी मजदूरों की टूट चुकी हिम्मत अब उन्हें घर की ओर जाने पर मजबूर कर रही है। हाईवे पर कहीं पैदल, तो कहीं साइकिल से तो कहीं अन्य साधनों से प्रवासी मजदूर अपने अपने घर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूर राजस्थान के जोधपुर से साइकिल से ही 1800 किलोमीटर दूर बंगाल अपने गांव के लिए निकल पड़े थे, लेकिन रास्ता कितना कठिन था इसकी तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। उनका कहना था- साहब करते तो क्या करते जब हम भूख से हारने लगे तो निकल पड़े साइकिल से घर की ओर।

ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूरों से वेबदुनिया के संवाददाता की मुलाकात कानपुर-कोलकाता हाईवे पर हुई। वे सभी साइकिल से बंगाल की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। इन्होंने बाचतीच में कहा- साहब भूख से हारने लगे तो घर की याद आ गई। ये 8 प्रवासी मजदूर अलग-अलग साइकलों से थे, लेकिन बोलने को कोई भी तैयार नहीं था।

एक प्रवासी मजदूर दुर्गेश मंडल ने हमसे बातचीत करनी शुरू की और बात करते-करते उसकी आंखें नम हो गई। उसने कहा कि साहब हम सभी बंगाल के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। 2 साल पहले राजस्थान के जोधपुर में काम करने के लिए हम सभी आए थे, लेकिन 22 मार्च के बाद से हमारे बुरे दिन शुरू हो गए।

10 से 12 दिन तक तो जमा पूंजी से खाना हम खाते रहे, लेकिन फिर जब हमारे पास पैसे कम होने लगे तो हमने अपने ठेकेदार से कहा। उसने स्पष्ट कहा कि हम तुम्हारी कितनी मदद करें। मेरे पास भी सीमित पूंजी है। साहब, हमने फिर भी लॉक डाउन का पालन किया और किराए के मकान में कुछ दिन तक और बने रहे, लेकिन हालात बद से बदतर हो गए। एक वक्त की रोटी नसीब होना मुश्किल हो गई।

हम सभी ने फैसला किया कि गांव चलना ही ठीक रहेगा नहीं तो हम सब भूखे मर जाएंगे। हम सभी ने बहुत प्रयास किया पर कोई साधन नसीब नहीं हुआ और न ही हमारे पास इतने पैसे थे कि हम कुछ इंतजाम कर लेते। हम सभी ने साइकल से ही जाने का ठान लिया और बंगाल के लिए निकल पड़े। लेकिन साहब राजस्थान के जोधपुर से लेकर कानपुर तक पहुंचने में हम सभी को 10 दिन लगे हैं, लेकिन जो कुछ हम पर बीता है वह तो बयां भी नहीं कर सकते।

साहब रास्ते में पुलिस की गालियां और डंडे ही नसीब होते रहे हैं, लेकिन एक बात समझ में आ गई आज भी हमारे देश में इंसानियत जिंदा है। पुलिस की दुत्कार हमें मिलती थी तो वहीं राजस्थान से लेकर कानपुर तक के बीच में बहुत से ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने भगवान के रूप में हम सबकी मदद की है। हम सब को खाना खिलाया है। हम सबको सोने के लिए जगह भी दी है।

हम पुलिसवालों को गलत नहीं कहते हैं लेकिन साहब मजबूरी न हो तो हमें क्या पड़ी है। साइकिल से इतनी दूर जाने की साहब जब बर्दाश्त करने की क्षमता टूट गई तब हम सभी घर के लिए निकले हैं। दुर्गेश मंडल इसके बाद बातचीत करने से इंकार कर दिया और अपने साथियों के साथ हुआ साइकिल से बंगाल की तरफ बढ़ चला।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

UP : आगरा में जूता कारोबारियों के ठिकानों पर इनकम टैक्स की छापेमारी, 30 करोड़ बरामद

Swati Maliwal Case : स्वाति मालीवाल बोली- एक गुंडे के दबाव में झुकी AAP, अब मेरे चरित्र पर सवाल उठा रही है

छत्तीसगढ़ में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्‍या, फांसी पर लटका मिला एक अन्‍य शव

कोर्ट ने क्यों खारिज की विभव कुमार की जमानत याचिका, बताया कारण

अमेठी में इस बार आसान नहीं है केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की राह

UP : आगरा में जूता कारोबारियों के ठिकानों पर इनकम टैक्स की छापेमारी, 30 करोड़ बरामद

Swati Maliwal Case : स्वाति मालीवाल बोली- एक गुंडे के दबाव में झुकी AAP, अब मेरे चरित्र पर सवाल उठा रही है

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

छत्तीसगढ़ में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्‍या, फांसी पर लटका मिला एक अन्‍य शव

Lok Sabha Elections 2024 : दिल्ली की जनसभा में क्यों भावुक हो गए PM मोदी, देश की 140 करोड़ जनता को बताया अपना वारिस

अगला लेख