जंगलों पर इंसानी दखल और बाघों की बढ़ती आबादी से शहरों में आने को मजबूर हुए टाइगर

नवीन रांगियाल
Tiger sighting in cities in India:  करीब 50 साल पहले देश में बाघों की संख्‍या ने भारत सरकार के माथे पर शिकन ला दी थी। बाघों की गिनती के नतीजों में सामने आया था कि बाघों की आबादी घटकर 1,827 हो गई है। 20वीं सदी में भारत में बाघों की अनुमानित संख्‍या 20 हजार से 40 हजार तक मानी जाती थी। ऐसे में 1800 का आंकड़ा पूरे देश के लिए चिंता का मसला था।

बाघों के अस्‍तित्‍व पर आए इस खतरे से निपटने के लिए 1973 में ‘प्रोजेक्‍ट टाइगर’ (Tiger project) शुरू किया गया। ‘टाइगर प्रोजेक्‍ट’ के करीब 50 साल बाद आज भारत में बाघों की संख्‍या 3 हजार 167 अनुमानित मानी जा रही है। एक तरफ जहां यह इजाफा (tiger census 2023) खुशी की बात है तो वहीं यह बढ़ती आबादी बाघ और इंसान दोनों के लिए खतरनाक साबित हो रही है।

दरअसल, जंगलों पर इंसानी कब्‍जे और दखल के साथ ही अपनी बढ़ती आबादी से टाइगर शहरों में आने को मजबूर हो रहे हैं। इससे भविष्‍य में मानव-बाघ संघर्ष बढ़ेगा। एक स्‍टडी तो यहां तक कहती है कि यही स्थिति रही तो 2070 तक सुंदरबन में बाघों के रहने लायक जंगल नहीं बचेगा।

क्‍यों शहरों में आ रहे टाइगर?
आए दिन शहरी सीमा में टाइगर के दिखने की खबरें सामने आ रही है। हाल ही में 30 लाख की आबादी वाले इंदौर जैसे बड़े शहर में टाइगर देखा गया था। करीब 20 से 25 दिनों बाद भी उसे रेस्‍क्‍यू नहीं किया जा सका है। मप्र की राजधानी भोपाल के कालियासोत में एक बाघिन अपने तीन शावकों के साथ दिखी है, जिसके बाद रहवासियों को मॉर्निंग और इवनिंग वॉक के लिए मना किया गया है। भोपाल के पास और भी कई इलाकों में टाइगर शहरी सीमा और गांव-कस्‍बों के आसपास नजर आते रहे हैं। दरअसल, लगातार घटता हैबिटाट एरिया और बढ़ते शहरीकरण ने वन्‍यजीवों (Wild life) को शहरों की तरफ धकेलना शुरू कर दिया है। हालात यह है कि आए दिन शहरी सीमा में बाघ सीसीटीवी कैमरों में नजर आए हैं। हालांकि वन्‍य जीव खासतौर से टाइगर के शहरों में नजर आने के पीछे कई वजहें हैं। इनमें खारा होता पानी, शिकार की कमी, वन्‍य जीवों का बूढ़ा हो जाना और नर बाघ का मादा बाघ की तलाश में वन से बाहर निकलना। लेकिन इनमें सबसे बड़ी वजह शहरीकरण की वजह से वन्‍यक्षेत्र का लगातार घटना है।

सैचुरेशन की स्‍थिति में पहुंची बाघों की संख्‍या
एक दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि साल 2006 के बाद से बाघों की आबादी दोगुनी हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों की आबादी भारत में सैचुरेशन वाली स्थिति में पहुंच गई है, ऐसे में बाघ के संरक्षण के प्रति और ज्‍यादा गंभीर और सतर्क होना होगा।

सैचुरेशन की स्‍थिति का मतलब है कि बाघों के कुछ आवास या संरक्षित क्षेत्र चरम क्षमता तक पहुंच गए हैं। यानी इन जगहों पर फिलहाल जितने बाघ हैं, उतने ही यहां रह सकते हैं। ग्लोबल टाइगर फोरम के मुताबिक भारत में अब अतिरिक्त 1,000 से लेकर 1200 बाघों तक को ही रखा जा सकता है। अब यहां 10 हजार बाघों को नहीं रखा जा सकता, ऐसा करीब एक सदी पहले होता था। हालांकि उन क्षेत्रों में अतिरिक्त बाघों को रखा जा सकता है, जहां अब बाघ नहीं हैं।

जंगल में शोर, इंसानी घुसपैठ
विशेषज्ञ मानते हैं बाघ-तेंदुए के शहरी आबादी की तरफ आने के कारणों को कुछ रिसर्च और भी पुख्‍ता करती है। दरअसल जंगल में शोर इतना ज्‍यादा बढ़ता जा रहा है कि वन्‍यजीवों को बेहद परेशानी हो रही है। पिछले दिनों दिल्ली स्थित सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट के सर्वे में सामने आया था कि इंसानों की तेजी से बढ़ती आबादी जंगली जानवरों के लिए खतरा साबित हो रही है। इस सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि रोजाना जंगलों में 1.10 करोड़ लोग लकड़ी काटने या अन्य कार्यों से जाते हैं। करीब 7 से 8 करोड़ जानवर चरने के लिए जंगलों में जा रहे हैं। पिकनिक और जंगल सफारी के लिए में भी बड़ी संख्या में लोग जंगल में जा रहे हैं। जंगलों से सटी सड़कों और पगडंडियों पर चहलकदमी, दौड़ लगाने और एक्‍सरसाइज करने वालों की संख्‍या और उनका शोर वन्‍य जीवों के जीवन पर असर डाल रहा है। खासतौर से अतिक्रमण, शहरीकरण, तरह-तरह की परियोजनाओं का विकास, खनन गतिविधियां भी बाघों के जंगल से पलायन के कारण हैं।

क्‍या बाघों की आबादी को संभालने में सक्षम हैं भारत के जंगल?
भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 3,167 हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में बाघों की आबादी सैचुरेशन यानी अपने चरम वाली स्थिति में पहुंच गई है। इसलिए उनके लिए बेहद समृद्ध जंगल चाहिए, वो नहीं मिलने पर मानव-बाघ संघर्ष होने लगता है। टाइगर के हैबिटाट डिस्‍ट्रेक्‍शन यानी प्राकृतिक आवास डिस्‍टर्ब होने पर वे शहरों की तरफ आने लगते हैं। जंगलों पर पहला अधिकार वन्‍य जीवों का है। प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे हो चुके हैं। जंगली बाघों की संख्या अनुमानित 3,167 पर पहुंच गई है। ऐसे में उन्‍हें रहने के लिए पर्याप्‍त और अनुकूल जंगल चाहिए।

जंगलों में इंसानी दखल कितना होता है बाघ का वॉकिंग एरिया?
वन्‍य प्राणी विशेषज्ञ, पीसीसीएफ और फॉरेस्‍ट ट्रेनिंग सेंटर प्रमु, पीके सिंह ने चर्चा में वेबदुनिया को बताया कि एक बाघ को जंगल में कम से कम 70 वर्ग किलोमीटर का एरिया रहने के लिए चाहिए। जिसमें वो वॉक करता है। लेकिन जंगलों की तरफ बढ़ती इंसानी आबादी का दबाव इतना ज्‍यादा हो गया है कि अब बाघों का एरिया सिमट रहा है। ऐसे में उन्‍हें शिकार नहीं मिलता। पीने के लिए पानी नहीं मिलता। मेटिंग के लिए मादा वन्‍य जीव नहीं मिलती, ऐसे में वो भटकता हुआ शहरों की तरफ आ सकता है।

क्‍यों बाहर आते हैं बाघ? 40 प्रतिशत टाइगर पार्क के बाहर
सबसे उल्‍लेखनीय बात यह है कि जो टाइगर या वन्‍य जीव वन्‍य क्षेत्र नेलशल पार्क आदि में हैं, उन्‍हें तो सुरक्षित माना जा सकता है और वे बाहर भी नहीं जाते हैं। मुख्य वन संरक्षक, जसवीर सिंह चौहान ने बताया कि मध्‍यप्रदेश में करीब 40 प्रतिशत बाघों की संख्‍या ऐसी है जो टाइगर पार्क के बाहर हैं। जो अपने लिए कहीं न कहीं हैबिटाट खोजते हैं। अब ऐसे में जहां-जहां वन्‍य जीवों के लिए हैबिटाट की गुंजाइश थी, वहां भी कहीं डैम बन गया तो कहीं कुछ और। जैसे इंदिरा सागर बांध, सरदार सरोवर बांध है, ओमकारेश्‍वर आदि। ऐसे में वन्‍यजीवों के लिए एक जगह से दूसरी जगह आकर अपने लिए जगह खोजना भी मुश्‍किल हो गया है। ऐसे में टाइगर्स का शिकार पोचर्स के लिए भी बहुत आसान हो गया है।

पोचर्स के लिए आसान हुआ बाघों का शिकार?
रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक दशक में बाघों के अवैध शिकार की संख्या में कमी आई है। हालांकि भारत में कुछ बाघ क्षेत्र अब भी असुरक्षित हैं। दरअसल, पिछले कुछ समय से प्रवर्तन एजेंसियों ने की सख्‍त कार्रवाई से 2013 के बाद से अवैध शिकार की गतिविधियां कम हुई हैं। मध्य भारत स्थित शिकारियों का नेटवर्क भी खत्म हो गया है। कहा जा रहा है कि अवैध शिकार के आंकड़े में 20 फीसदी गिरावट आई है। हालांकि बाघ छोटे वन्‍य जीवों के लिए लगाए जाने वाले जाल में फंसकर मारे जाते हैं और स्थानीय अवैध शिकार भी चिंता का एक विषय है।

हैबिटाट एरिया खत्‍म हो रहे हैं
वन्‍य जीवों की पापुलेशन बढ़ रही है। करीब 3 हजार 167 बाघ हैं। साढ़े 3 हजार तेंदुए हैं। इधर अबर्न एरिया बढ़ रहा है। भोपाल में शहरीकरण दूर तक हो रहा है। हैबिटाट एरिया में भी कॉलोनियां आ गई हैं। दुधवा और पीलीभीत का उदाहरण लीजिए, यहां कभी तराई क्षेत्र होता था, जंगल होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जंगल काटकर खेत बना दिए गए हैं। टाइगर या अन्‍य वन्‍य जीव कहां जाएंगे। लोगों ने गन्‍ने के खेत उगाए तो वो गन्‍ने के खेत में रहने लगे। उन्‍हें नहीं पता है कि यह इंसानों के खेत हैं, उन्‍हें तो अपने लिए जगह चाहिए। जैसे महू में बाघ निकल आया, ऐसे और भी वन्‍य जीव आते रहते हैं, कहां जाएंगे। ओकारेश्‍वर में नेशनल पार्क प्रस्‍तावित है, अगर वो बनता है तो शायद उस क्षेत्र में जीवों के लिए कुछ जगह बने।-- जसवीर सिंह चौहान, मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) मध्‍यप्रदेश, भोपाल

प्रदेश में हर जिले में एक रेस्‍क्‍यू सेंटर खोला
शहरीकरण की वजह से वन्‍य क्षेत्र घट रहा है। यह वन्‍य जीवों के अस्‍तित्‍व के लिए ठीक नहीं है। वन्‍य जीव आखिर कहां जाएंगे। जहां तक इंसानों की सुरक्षा का सवाल है तो मध्‍यप्रदेश में वन विभाग ने हर जिले में एक रेस्‍क्‍यू सेंटर खोला है। हालांकि अब तक इंसानों पर हमले का कोई मामला सामने नहीं आया है। -- पीके सिंह, पीसीसीएफ और फॉरेस्‍ट ट्रेनिंग सेंटर प्रमु, भोपाल।

बाघ आते-जाते रहते हैं
हैबिटाट डिस्‍ट्रक्‍शन जो हो रहा है, उसका तो कुछ कर नहीं सकते। जहां जंगल में घर बन गए तो बन गए। यह भी सच है कि लोग जब तक वाइल्‍ड लाइफ को करीब से नहीं देखेंगे उसे जाने समझेंगे नहीं तब तक उसकी चिंता नहीं कर पाएंगे। जहां तक महू वाले टाइगर के स्‍ट्रे होने का सवाल है तो अनुमान है कि वो उस जगह से वाकिफ है और पहले भी आता-जाता रहा होगा। अब लगता है कि वो वापस जंगल में चला गया है।-- नरेंद्र पंडवा, डीएफओ, इंदौर

कैसे होगी चीतों की सुरक्षा?
कुछ ही महीनों पहले दक्षिण अफ्रीका और नामिबिया से मध्‍यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीते लाए गए थे। हालांकि पिछले दिनों अलग-अलग कारणों से कूनो में छोटे-बडे मिलाकर तीन चीतों की मौत हो गई। कहा जा रहा है कि कूनो का टेंपरेचर चीतों के मुताबिक नहीं है। ये तो चीतों की प्राकृतिक मौतें थीं, लेकिन अगर चीते वन्‍य क्षेत्र से बाहर आते हैं तो उनकी सुरक्षा का क्‍या। इस बारे में बात करते हुए श्योपुर कूनो वन मंडल के डीएफओ पीके वर्मा ने बताया कि अभयारण्य से सटे बेस गांवों में अब तक 450 से अधिक चीता मित्र तैयार किए गए हैं। चीता मित्रों को वन विभाग की तरफ से खास ट्रेनिंग दी गई है। चीता वहीं, स्थानीय लोगों को चीतों के बारे में जागरूक करने की जिम्मेदारी दी गई है। मसलन, अगर चीता गांव के पास या रहवासी इलाकों में पहुंच जाए तो उस पर कोई हमला न करे। बता दें कि पिछले दिनों श्‍योपुर और ग्‍वालियर के जंगलों से वन्‍य जीवों के शिकार की कई खबरें आई थी। एक घटना में तो शिकारियों ने वनविभाग के अमले पर हमला कर दिया था, जिससे दो पुलिसकर्मी मारे गए थे। ऐसे में कूनो में बाघों और चीतों की सुरक्षा को लेकर इस बार पुख्‍ता इंतजाम किए जा रहे हैं।

हमारे सिस्‍टम में वाइल्‍ड लाइफ कोई मुद्दा नहीं
हैबिटाट डिस्‍ट्रेक्‍शन (habitat destruction) की वजह से हो रहा है। किसी समय में भोपाल में कालियासोत वन हुआ करता था, अब वो शहर बन रहा है। जंगल कट रहे हैं। टाउनशिप आ रहे हैं। टाइगर लंबे कोरिडॉर में जाते हैं, कई बार मध्‍यप्रदेश से महाराष्‍ट्र की सीमा में निकल जाते हैं, लेकिन अब उतनी जगह नहीं मिल पा रही है। जो टाइगर महू के शहरी क्षेत्र में लोकेट किया गया था, बाघ ने अब तक तीन गायों को मार दिया है, अब मुझे चिंता है कि कहीं वो लोगों के गुस्‍से और पोचर्स का शिकार न हो जाए, क्‍योंकि मरा हुआ टाइगर भी 5 करोड़ में बिकता है। यह दुखद है कि हमारे सिस्‍टम में वाइल्‍ड लाइफ कोई मुद्दा नहीं है।-- देव कुमार वासुदेवन, सेक्रेटरी, द नेचर वॉलिंटियर्स, महू

वेस्‍टर्न मध्‍यप्रदेश की बात करें तो महू, बड़वाह, देवास, बागली, उदयनगर का जंगल जुड़ा हुआ है। ऐसे में वन्‍य जीवों का आना आम बात है। इन जंगलों में पानी है, शेल्‍टर है। हिंसक पशु केटल (गाय,भैंस बकरी) को आसान शिकार मानते हैं। बाघ इसलिए उनकी तलाश में आबादी वाले इलाके में आ जाते हैं। शिकार और अवैध कटाई भी मुख्‍य मुद्दा है।-- अनिल नागर, रिटायर्ड आईएफएस
क्‍या है सुंदरबन की हकीकत?
सुंदरबन पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा पर 4262 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। सरकार के मुताबिक सुंदरबन में हर साल 35 से 40 लोग बाघ के शिकार होते हैं। लोगों का कहना है 100 से ज्यादा मारे जाते हैं। बाघों से बचाने के लिए वन विभाग ने मछुआरों को पोर्टेबल गैस सिलेंडर दिए हैं। आबादी के बढ़ते दबाव और पर्यावरण असंतुलन की वजह से सुंदरबन सिकुड़ रहा है। लोग बाघों के शिकार हो रहे हैं। सुंदरबन इलाके में कुल 102 द्वीप हैं। उनमें से 54 द्वीपों पर आबादी है। यहां रहने वाले लोगों की मछली मारना और खेती करना ही आजीविका के प्रमुख साधन हैंएक स्‍टडी कहती है कि मैंग्रोव जंगलों के तेजी से घटना चिंताजनक है। यही स्थिति रही तो 2070 तक सुंदरबन में बाघों के रहने लायक जंगल नहीं बचेगा। वन विभाग सुंदरबन में हर साल लगभग 40 लोगों को जंगल से शहद इकट्ठा करने और मछली पकड़ने का परमिट देता है। लेकिन हकीकत में हजारों लोग अवैध रूप से जंगलों में जाते हैं। इन जंगलों में बाघों को अपना पसंदीदा भोजन नहीं मिल रहा है।

यह नजदीकियां अब बाघ और मनुष्य दोनों के लिए मुसीबतें ला रही हैं और बढ़ते टकराव के नतीजे में अब लोग इस खूबसूरत और रौबीले जानवर के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं जिसके कारण अब बाघों की भी जान जाने लगी है। इनसान और जानवर की इस लड़ाई में नुक़सान जो भी हो, एक बात तो साफ है कि जंगल और बाघ का रिश्ता ठीक वैसा ही है जैसे जंगल और वर्षा का। दोनों में से एक का भी अनुपात बिगड़े तो पूरे पारिस्थिति तंत्र पर असर पड़ना तय है।

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