क्‍यों वतन छोड़ रहे हैं ‘भारतवासी’, 2022 में 2 लाख 25 हजार भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता, 12 साल में ये संख्‍या सबसे ज्‍यादा

हेल्‍थ, एजुकेशन, टैक्‍स, लिविंग स्‍टैंडर्ड, आबोहवा और रेजिडेंट बाई इंवेस्टमेंट बन रहे वतन छोड़ने की वजहें

नवीन रांगियाल
इंदौर। वतन छोड़ने की कहानी पर बॉलीवुड में कई फिल्‍में बनी हैं। इनमें से एक बेहद भावुक कर देने वाली फिल्‍म है ‘नाम’। जिसका एक गाना है ‘चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है’। यह गाना वतन छोड़कर विदेश में बसने वाले लोगों का दर्द बयां करता है। वतन से उनका इमोशनल कनेक्‍शन, प्‍यार और वतन के लिए महसूस की जाने वाली सारी संवेदनाओं को बयां करता है। लेकिन ये शायद अतीत की बात है जब विदेश जाकर बसने वालों को अपने वतन की याद आती थी।

अब तो यह आलम है कि बिजनेस, अच्‍छी लाइफस्‍टाइल और निवेश की वजह से अमीर भारतीयों के साथ ही देश के युवा भी अपना देश छोड़कर विदेश में बस रहे हैं। पिछले साल वतन छोड़कर विदेश बस जाने का जो आंकड़ा सामने आया है, वो चौंकाने वाला है।

वतन छोड़ने का सवाल ही नहीं
इंदौर के कैमिकल इंजीनियर मनीष नारायणी ने वेबदुनिया को बताया कि अपने काम की वजह से पिछले कुछ साल से इंडोनेशिया में हूं। यहां एक कंपनी की पूरी सेल्‍स यूनिट संभालता हूं। मनीष कहते हैं कि अपने देश की याद किसे नहीं आती है। हमारे तीज-त्‍योहार, उत्‍सव और शादियों की रौनक विदेशों में नहीं है। इसलिए जब भी मौका मिलता है, मैं अपने देश चला आता हूं। परिवार के साथ वक्‍त बिताता हूं। हां, काम के लिए वापस जाना होता है, यह एक दूसरी बात है। हालांकि फिलहाल तो सिर्फ काम की वजह से ही वहां रहता हूं, वतन छोड़कर विदेश में बसने का कोई सवाल ही नहीं है, यही अपना देश है और यहीं रहना है।

कॅरियर के एक पड़ाव पर भारत आ जाऊंगा
यूएन में पॉलिसी अधिकारी सिद्धार्थ राजहंस ने बताया कि हां, बिल्कुल, वतन की याद आती है। पहले जब मैं यहां हॉर्वर्ड में स्टूडेंट था उन दिनों खाने को लेकर काफ़ी एडजस्टमेंट इशूज़ थे, तब इंदौर के खाने की बहुत याद आती थी। अभी कुछ सालों से न्यूयॉर्क / ईस्ट कोस्ट में बस गया हूं, अब क्योंकि यहां घर है तो खाने की इतनी दिक़्क़त नहीं, परंतु त्योहार, छुट्टियों में सब वतन की याद अक्सर आती है। अभी जब में प्रवासी भारतीय दिवस के लिए आया था और वापस यहां आया, तब काफ़ी मायूसी थी कुछ दिन, क्योंकि बहुत ही आत्मीय वातावरण मिला इंदौर में। वैसे काम के लिहाज़ से मैं काफ़ी खुश हूं और अब यह के हवा पानी से भी एडजस्ट हो चुका हूं। न्यूयॉर्क और मैनहैटन में ख़ासकर- लाइफ काफ़ी फ़ास्ट है तो बाक़ी चीज़ों के बारे में सोचने का समय नहीं मिलता और आप एक तरह से अमेरिकन लाइफस्टाइल में ढल जाते हो। परंतु भारत ज़रूर आना चाहूंगा वापस करियर के किसी पड़ाव पर। भारत को लेकर पूरे विश्व में काफ़ी सकारात्मक लहर है।

G20 के अलावा अभी UN के स्टैटिस्टिकल काउंसिल में भी भारत का चयन हुआ है, ये अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इन सबके कारण काम के लिहाज़ से हो सकता है कि मेरा भारत आना हो अगले १०-१५ सालों में।

वहां जाति या वर्ग आधारित आरक्षण नहीं
अनिल बरतरे मस्‍कट में शिक्षाविद और काउंसलर हैं, वे मस्कट के एक इंडियन स्कूल में करीब 2 दशक से कार्यरत हैं। अनिल बरतरे कहते हैं कि दूसरे देशों में जाति या वर्ग आधारित आरक्षण नहीं है, लोगों को योग्यता के आधार पर काम मिलता है। किसी से जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होता है। अपराध नहीं के बराबर हैं, नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं। महंगाई की तुलना में वेतन और सुविधाएं ज्यादा हैं। वहां की जीवन शैली भी अच्छी है। भारत में नॉन टैक्स पेयर को पालने के लिए टैक्स पेयर का पैसा मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन जैसी सुविधाओं पर लुटाया जाता है।

चौंका देगा वतन छोड़ने वालों का आंकड़
पिछली 9 फरवरी को विदेश मंत्रालय ने एक डेटा उजागर किया था, इस डेटा के मुताबिक 2022 में 2 लाख 25 हजार भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है। ध्‍यान देने वाली बात यह है कि साल 2011 से लेकर 2022 तक नागरिकता छोड़े जाने के मामले में ये आंकड़ें सबसे ज्यादा है। यानी पिछले साल देश छोड़ने वाले भारतीयों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा रही। वतन छोड़ने वालों में देश के कई अरबपति भी शामिल हैं। हालांकि वतन छोड़कर जाने के पीछे कई छोटी-बड़ी वजहें सामने आ रही
हैं।

2022 में 8000 अरबपतियों ने वतन छोड़ा
हेनले एंड पार्टनर्स (Henley and Partners Report) की रिपोर्ट बताती है कि 2022 में भारत के 8,000 अरबपतियों ने अपना वतन छोड़ दिया है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत अमीरों के दूसरे देश में जाकर बसने के मामले में टॉप-3 देशों में शामिल हो गया है। हालांकि इस समय रूस, यूक्रेन और चीन जैसे देशों से भी अमीर दूसरे देशों में पलायन कर रहे हैं।
वतन छोड़ने वालों में टॉप 3 देश
हेनले एंड पार्टनर्स (Henley and Partners Report) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में 8,000 भारतीय अरबपतियों ने भारत को अलविदा कहकर दूसरे देश में शरण ले ली है। वहीं अपना देश छोड़कर जाने वालों में सबसे आगे रहे रूस है, जहां से इस साल 15,000 अमीरों ने अपना देश छोड़ा। जबकि चीन से इस इस साल 10,000 करोड़पति चले गए। जबकि इस सूची में हांगकांग एसएआर, यूक्रेन, ब्राजील, मैक्सिको, ब्रिटेन, सऊदी अरब और इंडोनेशिया जैसे देश भी शामिल हैं। हेनले एंड पार्टनर्स की इस रिपोर्ट की माने तो दुनियाभर से साल 2022 में अब तक अलग अलग देशों से लगभग 88,000 हाई-नेटवर्थ (HNI) वाले लोग दूसरे देशों में जाकर बस गए हैं।
क्‍या है देश छोड़ने की वजह?
कुछ मीडिया रिपोर्ट ओर स्‍टडी में सामने आया है कि अच्‍छी हेल्थकेयर, क्‍वालिटी लाइफ यानी लिविंग स्‍टैंडर्ड और अच्‍छी शिक्षा के साथ ही कई और भी ऐसे कारण हैं, जो देश छोड़ने की वजह बना है। स्‍टडी में सामने आया कि भारत खासतौर से दिल्‍ली की आबोहवा लोगों के लिए सांस और स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से ठीक नहीं होना भी एक वजह है। यानी जो लोग कनाडा में जाकर बसे हैं, वे मानते हैं कि दिल्ली की तुलना में कनाडा की हवा साफ और सांस लेने योग्य है।
टैक्‍स भी देश छोड़ने की एक वजह
वहीं, रूस और यूक्रेन से अमीरों के देश छोड़ने की वजह वहां दोनों देशों के बीच चल रहा युद्ध है तो वहीं दूसरे देशों में वजहें इतनी स्‍पष्‍ट नहीं हैं, लेकिन जो कयास लगाए जा रहे हैं उनमें सबसे बड़ी वजह भारत में हर चीज के लिए लगने वाला टैक्‍स है, बता दें कि भारत में टैक्‍स का भार ज्‍यादा है, जिससे अमीर लोग सालाना लाखों करोड़ों में टैक्‍स चुकाते हैं। भारत में कड़े होते टैक्स से जुड़े कायदे कानून, अमीरों को टैक्स में छूट न मिलने और वीजा फ्री टैवल की इच्छा के चलते बड़ी तादाद में अमीर भारत छोड़ रहे हैं।
हेल्‍थ, एजुकेशन और लिविंग स्‍टैंडर्ड
एक वजह बिजनेस में असुरक्षा और लिविंग स्टैडर्ड भी है। भारत में अरबपति उस लिविंग स्टैडर्ड को फॉलो नहीं कर पा रहे, जो अमेरिका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया, इटली में है। इनमें शिक्षा भी एक वजह है। बता दें कि भारत में रहने वाले कई अमीरों के बच्‍चे विदेशों में ही एजुकेशन ले रहे हैं। एक वजह स्वास्थ्य सेवाएं भी है। कई बीमारियों के लिए भारतीय अमीरों को यहां की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर भरोसा नहीं है, वे विदेशों में जाकर ही अपना इलाज कराते हैं।
भारत की असमानता
दुनिया में असमानता को लेकर जारी एक रिपोर्ट में सामने आया है कि भारत एक गरीब और असमानता वाला देश है। रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में रईसों के हाथ में बहुत धन है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि देश की कुल कमाई का 57 फीसदी हिस्सा ऊपर के 10 फीसदी लोगों के कब्‍जे में है। जबकि देश की कुल कमाई में 50 फीसदी यानी देश में नीचे की आधी आबादी का हिस्सा मात्र 13 फीसदी है।
हाई-नेटवर्थ (HNIs) लोग बस रहे दूसरे देशों में
एक चौंकाने वाली बात यह भी है कि भारत की नागरिकता छोड़ने वालों में एचएनआई (हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स) (HNIs) शामिल हैं। हाई नेट वर्थ वाले लोग वे होते हैं जिनकी कुल संपत्ति एक मिलियन डॉलर से ज्यादा की हो। रुपए में एक मिलियन की ये रकम 8.2 करोड़ होगी। (Henley Global Citizens Report) के मुताबिक भारत में इस ग्रुप के लगभग 3 लाख 47 हजार लाख लोग हैं। ये 3 लाख 47 हजार लोग भारत के 9 शहरों में रहते हैं। इनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, गुड़गांव और अहमदाबाद जैसे शहर शामिल हैं। हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स के मामले में अमेरिका, चाइना और जापान के बाद इंडिया चौथे नंबर पर है।
कौन हैं HNIs?
भारत में एचएनआई उन्हें कहते है, जिन लोगों के पास निवेश के लिए कम से कम 5 करोड़ रुपए हो। ऐसे लोग जिनका पैसा शेयर बाजार, बांड आदि में निवेश किया गया हो। इसके साथ ही जिनके डीमैट अकाउंट या बैंक खाते में कुल मिलाकर 5 करोड़ से ज्यादा रकम है। इस संपत्‍ति में घर और कार आदि शामिल नहीं किए जाते हैं। मान लीजिए कि अगर आपके पास गाड़ी, बंगला और फार्म हाउस हैं, जिनकी कीमत 10 करोड़ है, लेकिन निवेश करने के लिए 5 करोड़ से कम हैं तो उसे एचएनआई की कैटेगरी में नहीं माना जाएगा।
रेजिडेंट बाई इंवेस्टमेंट का रास्ता
ये हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स दूसरे देशों में रेजिडेंट बाई इंवेस्टमेंट का रास्ता अपना रहे हैं। दरअसल, कुछ सालों से माइग्रेशन के माध्‍यम से निवेश की मांग बढ़ी है। रेजिडेंट बाई इंवेस्टमेंट का अर्थ होता है किसी दूसरे देश में निवेश कर वहां की नागरिकता प्राप्‍त कर वहां बस जाना। अलग-अलग देशों में निवेश के अलग-अलग नियम होते हैं, इन नियमों को पूरा करने पर वहां की नागरिकता मिल सकती है। मसलन, पुर्तगाल को उदाहरण लें तो यहां का स्थायी निवासी होने के लिए कम से कम साढ़े 4 करोड़ की प्रॉपर्टी खरीदनी होती है और पुर्तगालियों के लिए कम से कम 10 जॉब्स क्रिएट करने होते हैं। ऐसा करने पर पुर्तगाल के निवासी बन सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इन अमीरों के सबसे पसंदीदा यूरोपीय यूनियन देश हैं। इसके अलावा दुबई और सिंगापुर भी भारतीय अमीरों को आकर्षित कर रहे हैं। जो देश अमीरों को ज्‍यादा अच्‍छे लग रहे हैं, उनमें माल्टा, मॉरिशस और मोनैको भी शामिल हैं।
2031 भारत में 80 प्रतिशत अरबपति बढ़ेंगे
भारत से अमीरों के पलायन को लेकर जहां एक तरफ चिंता जाहिर की जा रही है तो वहीं, एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में इसे लेकर फिक्र नहीं करना चाहिए, क्‍योंकि यह देश के कुल 3.57 लाख अरबपतियों का यह सिर्फ 2 प्रतिशत ही है। वहीं भारत में लगातार अरबपतियों की संख्‍या बढ़ रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि साल 2031 तक भारत में अमीरों का 80 प्रतिशत तक का इजाफा होगा।
ये हैं अरबपतियों के नए ठिकाने
संयुक्‍त अरब अमीरात में 4000 अरबपति बसे
ऑस्‍ट्रेलिया में 3500 अरबपति ने बनाया ठिकाना
सिंगापुर में 2800 अरबपति जाकर बसे
इन देशों से जा रहे अरबपति
साल 2022 में 8,000 अरबपतियों ने भारत छोड़ा
हांगकांग से 3,000 अमीर गए
यूक्रेन से 2,800 करोड़पतियों ने पलायन किया
बिट्रेन से 1,500 अमीरों ने देश छोड़ा
(साल 2022 में)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?

अगला लेख