कश्मीर- यह जंग है अपनों के खिलाफ अपनों की

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यह जंग है अपनों के खिलाफ अपनों की और वर्तमान में इस जंग को भड़काने वाला है पाकिस्तान। पहले आक्रमणकारियों ने कश्मीरी लोगों के बीच फर्क डाला और फिर कश्मीरियों ने ही कश्मीरियों को मार कर भगाया। दरअसल, कैसे सभी कश्मीरी एक ही कुल के थे यह जानना हर कश्मीरी के लिए जरूरी है। कश्मीर में इस्लाम से आगमन के पहले यहां हिन्दू, बौद्ध और प्राचीनकाल में कुछ यहूदी एवं यवनी रहते थे। यवनी अर्थात यूनान के लोग। हम यहां सिर्फ कश्मीर की बात कर रहे हैं, लद्दाख और जम्मू की नहीं। ऐसे कश्‍मीर की जो आधा भारत और आधा पाकिस्तान में है। हम आपको बताएंगे कि कैसे हिन्दुओं के खिलाफ हो गए परिवर्तित मुसलमान। इससे पहले जानें कश्मीरी मुसलमानों के बारे में...
 
 
जब तक इस्लाम नहीं आया था, तब तक यहां हिन्दू और बौद्ध ही मूल रूप से निवास करते थे। आज भी कुछ जगहों पर वे निवास करते हैं। लगभग 90 फीसदी कश्मीरी मुसलमानों के वंशज हिन्दू हैं। ये सभी पहले हिन्दू थे जैसे...प्रमुख कश्मीरी मुस्लिम कुल- लंगू, हन्डू, बगाती, भान, भट्ट, बट, धार, दार, सप्रू, कित्च्लेव, कस्बा, बोहरा (मुस्लिम खत्री), शेख, मगरे, लोन, मलिक राजपूत, मीर, वेन, बंदे, रथेर, बुच, द्राबू, गनै, गुरु, राठौर, पंडित, रैना, अहंगेर, खंडे, रेशी आदि। इनमें से कई अपने हिन्दू या सिख भाई की तरह ही हैं, जो एक समान वंश को दर्शाता है।
 
मुस्लिम राजपूत- प्रमुख मुसलमान राजपूत अपने हिन्दू अतीत से लेकर अपने रूपांतरण के बाद भी अपने वंश या अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं। इनमें से कई परिवारों के पास अपने वंशों का रिकॉर्ड मौजूद हैं। कई राजपूतों को 12वीं सदी की शुरुआती दौर में ही इस्लाम कबूल करना पड़ा। इनमें से कुछ को अरब शासकों द्वारा शेख (जाति का प्रमुख) और मुगल शासकों द्वारा 'मिर्जा' का खिताब दिया गया।
 
प्रमुख मुस्लिम राजपूत कुल निम्नलिखित हैं- राव राजा, राणा, राय चौधरी, कुंवर, खान, सरदार, सुल्तान, नवाब, मिर्जा, मलिक, मियां, जाम आदि।

 
अन्य हिन्दू जातियां जो मुसलमान बना दी गईं- भुट्टा मयो या मियो या मेवाती, जर्रल, जंजुआ, खाखा, मिन्हास/ मन्हास, चाधार, कैम्खानी, वट्टू, गाखर, सुधन, मियां, भट, कर्रल, सत्पंथ आदि। तो यह थे सभी हिन्दू जो आज मुसलमान हैं। आज कश्मीर में जाकर देखे तो गुर्जर समाज के कई परिवार मुसलमान भी हैं, हिन्दू भी और सिख भी। इसी तरह ऐसे कई समाज के लोग हैं जो अब हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी (जैसे गुर्जर, जाट, पंडित, राजपूत आदि), लेकिन हैं तो सभी एक ही कुल और समाज से। बदला है तो बस धर्म।

 
सभी का खून तो एक ही है, लेकिन अब ये एक ही खून के लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे का खून बहा रहे हैं। क्यों? क्योंकि पाकिस्तान और तबलीग जमात ने इनके दिमाग को भारत और हिन्दू धर्म के खिलाफ कर दिया है। अर्थात अब एक ही कुल के लोग अपने ही अपनों के खिलाफ हैं। मतलब पंडित ही पंडितों, राजपूत ही राजपूतों, गुर्जर ही गुर्जरों, जाट ही जाटों के खिलाफ खड़ा है। यह इतिहास और हिन्दू धर्म को नहीं समझ पाने की गफलत में भी हो रहा है और अतित में हुए अत्याचार के कारण भी। मान लो चार हिन्दू भाई हैं उनमें से दो भाई मुसलमान बनकर अन्य दो भाइयों को मार रहे हैं, घाटी से भगा रहे हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में ऐसे कई राजपूत गांव है जहां के हिन्दू और मुसलमान एक ही कुल के हैं और वे आपस में प्यार से रह रहे हैं। धर्म उनके बीच कोई वजह नहीं है।

 
यह बहुत ही दुखभरी स्थिति है कि जो कश्मीरी पहले मिलकर आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ता था, अब वही कश्मीरी धर्म के नाम पर बंटकर आपस में ही अपनों के खिलाफ ही लड़ रहा है। पंडित, गुर्जर, राजपूत और जाट धर्म बदलकर अब हिन्दू पंडित, गुर्जर, राजपूत और जाटों के खिलाफ ही हथियारबद्ध है।...चलिए जान लें थोड़ा सा इतिहास...
 
 
कश्‍मीर के हिन्‍दू राजाओं में ललितादित्‍य (सन् 697 से सन् 738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्‍य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्‍तान और उ‍त्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। इस क्रम में अगला नाम 855 ईस्वी में सत्ता में आए उत्पल वंश के अवन्तिवर्मन का लिया जाता है जिनका शासन काल कश्मीर के सुख और समृद्धि का काल था। उसके 28 साल के शासन काल में मंदिरों, स्मारकों, सड़कों और व्यापारिक केंद्रों आदि का निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ।
 
 
कश्मीर में साहित्यकारों और संस्कृत आचार्यों की भी लंबी परंपरा रही है। प्रसिद्ध वैयाकरणिक रम्मत, मुक्तकण, शिवस्वामिन और कवि आनंदवर्धन तथा रत्नाकर अवन्तिवर्मन की राजसभा के सदस्य थे। सातवीं सदी में भीम भट्ट, दामोदर गुप्त, आठवीं सदी में क्षीर स्वामी, रत्नाकर, वल्लभ देव, नौवीं सदी में मम्मट, क्षेमेन्द्र, सोमदेव से लेकर दसवीं सदी के मिल्हण, जयद्रथ और ग्यारहवीं सदी के कल्हण जैसे संस्कृत के विद्वान कवियों-भाष्यकारों की एक लम्बी परम्परा रही। अवन्तिवर्मन की मृत्यु के बाद हिन्दू राजाओं के पतन का काल शुरू हो गया था।
 
 
तत्कालीन राजा सहदेव के समय मंगोल आक्रमणकारी दुलचा ने आक्रमण किया। इस अवसर का फायदा उठा कर तिब्बत से आया एक बौद्ध रिंचन ने इस्लाम कबूल कर अपने मित्र तथा सहदेव के सेनापति रामचंद्र की बेटी कोटारानी के सहयोग से कश्मीर की गद्दी पर अधिकार कर लिया। इस तरह वह कश्मीर (जम्मू या लद्दाख नहीं) का पहला मुस्लिम शासक बना। कालांतर में शाहमीर ने कश्मीर की गद्दी पर कब्जा कर लिया और इस तरह उसके वंशजों ने लंबे काल तक कश्मीर पर राज किया। आरम्भ में ये सुल्तान सहिष्णु रहे लेकिन हमादान से आए शाह हमादान के समय में शुरू हुआ इस्लामीकरण सुल्तान सिकन्दर के समय अपने चरम पर पहुंच गया। इस काल में हिन्दू लोगों को इस्लाम कबूल करना पड़ा और इस तरह धीरे-धीरे कश्मीर के अधिकतर लोग मुसलमान बन गए जिसमें जम्मू के भी कुछ हिस्से थे। उल्लेखनीय है कि जम्मू का एक हिस्सा पाकिस्तान के अधिन है, जिसमें कश्मीर का हिस्सा अलग है।
 
 
कश्मीर घाटी में लगभग 8वीं शताब्दी में बने ऐतिहासिक और विशालकाय मार्तण्ड सूर्य मंदिर को मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन (Sikandar Butshikan) ने तुड़वाया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इस मंदिर को कर्कोटा समुदाय के राजा ललितादित्य मुक्तिपाडा ने 725-61 ईस्वी के दौरान बनवाया था। यह कश्मीर के पुराने मंदिरों में शुमार होता है और श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग जिले में है। यह मंदिर अनंतनाग से पहलगाम के बीच मार्तण्ड नाम के स्थान पर स्थित एक पठार पर है जिसे मटन कहा जाता है।
 
 
मु‍स्लिम इतिहासकार हसन ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ कश्मीर' में कश्मीरी जनता का धर्मांतरण किए जाने का जिक्र इस तरह किया है, 'सुल्तान बुतशिकन (सन् 1393) ने पंडितों को सबसे ज्यादा दबाया। उसने 3 खिर्बार (7 मन) जनेऊ को इकट्ठा किया था जिसका मतलब है कि इतने पंडितों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। हजरत अमीर कबीर (तत्कालीन धार्मिक नेता) ने ये सब अपनी आंखों से देखा। ...उसने मंदिर नष्ट किया और बेरहमी से कत्लेआम किया।- व्यथित जम्मू-कश्मीर, लेखक नरेन्द्र सहगल।
 
 
शाह हमादान के बेटे मीर हमदानी के नेतृत्व में मंदिरों को तोड़ने और तलवार के दम पर इस्लामीकरण का दौर सिकन्दर के बेटे अलीशाह तक चला लेकिन उसके बाद 1420-70 में ज़ैनुल आब्दीन (बड शाह) गद्दी पर बैठा। इसका शासन अच्छा रहा। 16 अक्टूबर 1586 को मुगल सिपहसालार कासिम खान मीर ने चक शासक याकूब खान को हराकर कश्मीर पर मुगलिया सल्तनत को स्थापित किया। इसके बाद अगले 361 सालों तक घाटी पर गैर कश्मीरियों का शासन रहा जिसमें मुगल, अफगान, सिख, डोगरे आदि रहे। मुगल शासक औरंगजेब और उसके बाद के शासकों ने हिन्दुओं के साथ-साथ यहां शिया मुसलमानों पर दमनकारी नीति अपनाई जिसके चलते हजारों लोग मारे गए।
 
 
मुगल वंश के पतन के बाद 1752-53 में अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व में अफगानों ने कश्मीर (जम्मू और लद्दाख नहीं) पर कब्जा कर लिया। अफगानियों मुसलमानों ने कश्मीर की जनता (मुस्लिम, हिन्दू आदि सभी) पर भयंकर अत्याचार किए। उनकी स्त्री और धन को खूब लूटा। यह लूट और खोसट का कार्य पांच अलग-अलग पठान गवर्नरों के राज में जारी रहा। 67 साल तक पठानों ने कश्‍मीर घाटी पर शासन किया।
 
 
इन अत्याचारों से तंग आकर एक कश्मीरी पंडित बीरबल धर ने सिख राजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी खड़क सिंह के नेतृत्व में हरि सिंह नलवा सहित अपने सबसे काबिल सरदारों के साथ तीस हजार की फौज रवाना की। आज़िम खान अपने भाई जब्बार खान के भरोसे कश्मीर को छोड़कर काबुल भाग गया, इस तरह 15 जून 1819 को कश्मीर में सिख शासन की स्थापना हुई। 1839 में रणजीत सिंह की मौत के साथ लाहौर का सिख साम्राज्य बिखरने लगा. अंग्रेज़ों के लिए यह अफगानिस्तान की ख़तरनाक सीमा पर नियंत्रण का मौक़ा था तो जम्मू के राजा गुलाब सिंह के लिए खुद को स्वतंत्र घोषित करने का। महाराजा गुलाब सिंह 1822 से 1856, महाराजा रणबीर सिंह 1856 से 1885 और महाराजा हरि सिंह ने 1925 से 1947 तक राज किया।
 
 
वर्तमान में पंडित, गुर्जर और राजपूत से मुस्लिम बने कश्मीरी भाइयों ने अपने ही भाई कश्मीरी पंडितों और अन्य जातियों के लोगों पर पाकिस्तान की शह पर अत्याचार, कत्लेआम कर वहां से भगा दिया। 1990 में कश्मीरी पंडितों पर हुए नरसंहार की याद अभी भी पंडितों के दिलों दिमाग में ताजा है। इस नरसंहार में 6000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया। 750000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। 1500 मंदिरों नष्ट कर दिए गए। 600 कश्मीरी पंडितों के गांवों को इस्लामी नाम दिया गया।
 
 
एक अनुमान के मुताबिक कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंड़ितों के घाटी से पलायन से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे। अब इनमें से मात्र 260 सुरक्षित बचे हैं जिनमें से 170 मंदिर क्षतिग्रस्त है। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध के द्वारा आज कश्मीरी पंडित अपनी पवित्र भूमि से बेदखल हो गए हैं और अब अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। पिछले 26 वर्षों से जारी आतंकवाद ने घाटी के मूल निवासी कहे जाने वाले लाखों कश्मीरी पंडितों को निर्वासित जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर दिया है।
 
 
अब सवाल यह उठता है कि क्या कभी कश्मीर का मुसलमान यह समझ पाएगा कि हमारे पूर्वज जब हिन्दू थे तब उनके साथ क्या हुआ था और आज हम क्या कर रहे हैं? सबसे ज्यादा समझदारी तो कश्मीर से बाहर रह रहे हिन्दु और मुसलमानों को दिखाने की जरूरत है जो हमारे कश्मीरी भाइयों को यह बताएं कि तुम हमारे होकर कैसे हमारे खिलाफ हो गए?
 

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