जम्मू-कश्मीर से अलग होकर लद्दाख बना केंद्र शासित प्रदेश, जानिए लद्दाख का इतिहास

Webdunia
सोमवार, 5 अगस्त 2019 (11:51 IST)
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनकर उसे केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया है। इस संबंध में गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में इसकी घोषणा की है। अब लद्दाख भी केंद्र शासित प्रदेश होगा।
 
 
कहते हैं कि लद्दाख कभी भी जम्मू कश्मीर का हिस्सा नहीं रहा। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों राज्य पहले हिन्दू शासकों और फिर बाद में मुस्लिम सुल्तानों के अधीन रहा। बाद में यह राज्य अकबर के शासन में मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। सन् 1756 से अफगान शासन के बाद सन् 1819 में यह राज्य पंजाब के सिख साम्राज्य के अधीन हो गया। सन् 1846 में रंजीत सिंह ने जम्मू क्षेत्र महाराजा गुलाब सिंह को सौंप दिया। गुलाब सिंह के बाद महाराजा रणबीर सिंह (1856 से 1885) फिर यह महाराजा हरि सिंह (1925 से 1947 तक) के अधिन रहा।
 
 
लद्दाख परिचय : लद्दाख एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा 3,500 मीटर (9,800 फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है। करीब 33,554 वर्गमील में फैले लद्दाख में बसने लायक जगह बेहद कम है। यहां हर ओर ऊंचे-ऊंचे विशालकाय पथरीले पहाड़ और मैदान हैं। यहां के सभी धर्मों के लोगों की जनसंख्या मिलाकर 2,36,539 है।
 
 
ऐसा माना जाता है कि लद्दाख मूल रूप से किसी बड़ी झील का एक डूब हिस्सा था है, जो कई वर्षों के भौगोलिक परिवर्तन के कारण लद्दाख की घाटी बन गया। 18वीं शताब्दी में लद्दाख और बाल्टिस्तान को जम्मू और कश्मीर के क्षेत्र में शामिल किया गया। 1947 में भारत के विभाजन के बाद बाल्टिस्तान, पाकिस्तान का हिस्सा बना।
 
लद्दाख के पूर्वी हिस्से में लेह के आसपास रहने वाले निवासी मुख्यतः तिब्बती, बौद्ध और भारतीय हिन्दू हैं, लेकिन पश्चिम में कारगिल के आसपास जनसंख्या मुख्यत: भारतीय शिया मुस्लिमों की है। तिब्बत पर कब्जे के दौरान बहुत से तिब्बती यहां आकर बस गए थे। लद्दाख को चीन, तिब्बत का हिस्सा मानता है। सिन्धु नदी लद्दाख से निकलकर ही पाकिस्तान के कराची तक बहती है। प्राचीनकाल में लद्दाख कई अहम व्यापारिक रास्तों का प्रमुख केंद्र था। 
 
 
लद्दाख मध्य एशिया से कारोबार का एक बड़ा गढ़ था। सिल्क रूट की एक शाखा लद्दाख से होकर गुजरती थी। दूसरे मुल्कों के कारवें के साथ सैकड़ों ऊंट, घोड़े, खच्चर, रेशम और कालीन लाए जाते थे जबकि हिन्दुस्तान से रंग, मसाले आदि बेचे जाते थे। तिब्बत से भी याक पर ऊन, पश्मीना वगैरह लादकर लोग लेह तक आते थे। यहां से इसे कश्मीर लाकर बेहतरीन शॉलें बनाई जाती थीं।
 
 
-अनिरुद्ध जोशी

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