दिशाहीन राष्ट्र पाकिस्तान का खुदा ही 'हाफ़िज़'

शरद सिंगी
पाकिस्तान की राष्ट्रीय एयरलाइन्स ने पिछले माह एक ऐसा कारनामा किया, जिसको सुनकर लोगों को समझ में नहीं आया कि हँसे या अचंभित हों। 409 यात्रियों के बैठाने की क्षमता रखने वाले एक बोईंग हवाई जहाज में 416 यात्री चढ़ा दिए। यह विमान करांची से मक्का जा रहा था। सात यात्रियों ने यात्रा खड़े रहकर पूरी की। हवाई यात्रा में सुरक्षा के लिए यह एक बहुत बड़ा खतरा था क्योंकि इन यात्रियों के पास विमान के उड़ते या उतरते समय सीट बेल्ट  नहीं थे। आवश्यकता के समय ऑक्सीजन मास्क मुहैया नहीं कराए जा सकते थे और यदि आपातकाल में विमान को खाली कराना पड़ता तो ये यात्री मार्ग में रूकावट का कारण बनते। 
यह ऐसा वाकया है जो पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को हूबहू दर्शाता है। सम्पूर्ण देश एक ऐसे विमान में बैठा है, जिसका कोई कप्तान नहीं है। जहाज के अंदर कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्थाएँ बेअसर हो चुकी हैं। सम्पूर्ण देश बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के चल रहा है। सरकार कहाँ है मालूम नहीं। पायलट बेगाना है और राष्ट्र के सफर की दिशा अज्ञात। नाम के लिए सरकार है, काम के लिए सेना, लेकिन सेना के पास भी सिविल सरकार को चलाने के लिए वक्त नहीं है। सेना को देश से मतलब नहीं है, उसे कश्मीर और अफगानिस्तान की फ़िक्र अधिक है, जहाँ वह अपना एजेंडा चलाने का प्रयास कर रही है। अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर दूसरे देशों में आतंकी हमले करवाने वाली सेना स्वयं अपने देश में आतंकी हमलों को रोक नहीं पा रही।  
 
पिछले ही माह एक के बाद एक कोई पंद्रह हमले हुए। सैकड़ों नागरिकों ने अपनी जान से हाथ धोया। कोई ऐसा स्थल नहीं, जहाँ आतंकी धमाके नहीं कर रहे। न्यायालय परिसर हो, बाजार हो, खेल का मैदान हो या  धार्मिक स्थल। जंग लगी कानून व्यवस्था पर निरंतर चोट हो रही है तथा संकल्पहीन और दिशाहीन  प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। 
 
अब सामाजिक व्यवस्था को लें। वहाँ हर प्रान्त दूसरे प्रान्त से लड़ रहा है। सिंध अलग। पंजाब अलग। पश्तून न्यारा। बलूच विभक्त। मुहाजिर जुदा। किसी की किसी से नहीं बन रही। हर समाज दूसरे समाज से लड़ रहा है। कट्टरवादी अपने समाज और धर्म को दूसरों से श्रेष्ठ बताने में लगे है। राजनेताओं और धर्म प्रचारकों ने देश में पहले जैसा बोया अब वैसा काट रहे हैं। जो लांच पेड भारत की ओर रुख करके बनाए गए थे, वे कब पाकिस्तान की ओर लांच हो जाएंगे इसका ध्यान किसी ने नहीं रखा था। सिविल सरकार को पंगु करने में सेना का हाथ रहा है। अब मात्र सेना पर जिम्मेवारी रह गई है बिखराव की इस विकराल समस्या से निपटने की। 
 
उधर सेना पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है। विगत वर्षों में सेना से  मिले खुले समर्थन से आतंकी ऐसे दैत्य बन गए थे, जिनका कद सिविल सरकार से भी बड़ा हो गया था। सच तो यह कि आतंकियों की यह दैत्य सेना, पाकिस्तानी सेना की एक अधिकृत शाखा की तरह काम कर रही थी। सेना को अब अपने ही द्वारा पाले गए आतंकियों के कद को छोटा करना मुश्किल पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते हाफिज सईद को नजरबन्द करना पड़ा।  
 
दुनिया के राष्ट्रों को भय है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार कहीं गलत हाथों में न पहुँच जाए, इसलिए वे हर संभव दबाव बना रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी पाकिस्तान सरकार पर आतंकी संगठनों के खातों को सील करने के लिए भरपूर दबाव डाल रही है। 
 
ऐसे में कोई अन्य मार्ग सामने न देखकर, अपनी विवशता से बाध्य होकर पाकिस्तानी सेना ने आतंकियों के विरुद्ध कार्यवाही आरम्भ कर दी है। अब देखना यह है कि नकेल कसने का यह प्रयास मात्र अंतरराष्ट्रीय जगत को छलावे में रखने  के लिए है या फिर पाकिस्तान को सचमुच समझ में आ गया है कि आतंकियों को पोषित करना याने स्वयं के पैरों में गोली मारना है। यदि सेना एक ईमानदार प्रयास करें तो भंवर में फंसे पाकिस्तान को कुछ सहारा मिल सकेगा अन्यथा तो कार्यवाही का यह नाटक दुनिया को नहीं किन्तु स्वयं को मूर्ख बनाने का अभ्यास ही माना जाएगा।  
 
यह भी उल्लेखनीय है कि नए सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने अभी तक भारत के विरुद्ध कोई तल्ख़ बयान नहीं दिया है। उनके द्वारा जो बयान अभी तक दिए वे मात्र औपचारिक ही थे। इसलिए भारत सरकार भी शायद इस नए सेनाध्यक्ष को कुछ समय तक परखना चाहती है। साथ ही आतंकियों पर नकेल कसने के पाकिस्तानी प्रयासों पर निरन्तर कड़ी नज़र भी रखेगी। 
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