एक दम तोड़ता शहर है दिल्ली

अनिल जैन
जानलेवा वायु प्रदूषण के चलते देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर चर्चा में है। आधिकारिक तौर पर बताया जा रहा है कि वायु प्रदूषण के मामले में सबसे कुख्यात चीन की राजधानी को भी पीछे छोड़ दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बन गई है। दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी के नेता, मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस दिल्ली को वर्ल्‍ड क्लास सिटी बनाने के सब्जबाग लोगों को दिखाए थे उस दिल्ली की हकीकत यह है कि वह आज एक दम तोड़ता शहर है। 
दिल्ली में जल प्रदूषण की स्थिति तो पहले से ही भयावह है। यमुना नदी प्रदूषण का खतरनाक स्तर पार कर चुकी है और कई रिपोर्टों में इस तथ्य की भी पुष्टि हो चुकी है कि लोगों को पीने के लिए जिस पानी की आपूर्ति दिल्ली जल बोर्ड द्वारा की जाती है वह बेहद प्रदूषित होता है और राजधानी के लगभग 60 फीसदी वाशिंदे प्रदूषित पानी पीते हैं। राजधानी की सड़कों पर गंदगी का आलम भी जगजाहिर है और वायु प्रदूषण बढ़ते जाने का अनुभव तो यहां के लोगों को रोज ही होता है।    
 
दिल्ली में प्रदूषण की गहराती समस्या से निपटने के लिए समय-समय पर पर्यावरणविदों ने कई तरह के उपाय आजमाने की सलाह दी है, मगर सच यह है कि अलग-अलग सरकारी महकमों की कवायदों के बावजूद दिल्ली की हवा में अभी तक कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। यों दिवाली के मौके पर व्यापक आतिशबाजी के चलते हर साल यह समस्या अपने चरम पर होती है। मगर इस बार पिछले करीब एक हफ्ते से जिस तरह की धुंध छाई हुई है, वह हैरान करने वाली है। 
 
समूची दिल्ली में घरों में बंद या सड़कों पर निकले बहुत सारे लोगों ने आंखों में जलन से लेकर सांस की तकलीफ की शिकायत की और उन्हें उपचार कराना पड़ा। हालांकि दिल्ली की आपाधापी में ऐसे तमाम लोग होंगे, जिन्होंने अपने काम की व्यस्तता के चलते यह परेशानी होने के बावजूद इसकी अनदेखी की होगी। इस पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली के ऊपर हवा में सामान्य से दस गुना तक विषैले प्रदूषक तत्‍व मंडरा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इस बार की दिवाली में बेलगाम आतिशबाजी ने हवा को इस कदर प्रदूषित किया है, जिसके चलते यह समस्या गंभीर हुई है। 
 
दिल्ली में भलस्वा डेयरी जैसे कचरा निपटान केंद्रों सहित जगह-जगह कूड़े के ढेर में लगी आग से फैलता धुआं पहले ही कई तरह की मुश्किलें पैदा कर रहा था। दूसरे, जहां-तहां कूड़े को जलाने के मामले में न आम लोगों को इसके खतरे और अपनी जिम्मेदारी का अहसास है, न सरकार को इसकी फिक्र जरूरी लगती है। इसमें समस्या यह भी जुड़ गई कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में फसलों की कटाई के बाद बचे हुए हिस्से को जलाने से निकला धुआं हल्की हवा के साथ दिल्ली तक आ गया और नमी ज्यादा होने के चलते यहां लगभग ठहर गया। हालत यह है कि पिछले दिनों दिल्ली में सामान्य दृश्यता अत्यंत न्यून दर्ज की गई। मगर सामान्य दिखती धुंध में जिस कदर पार्टिकुलेट मैटर या जहरीले तत्व घुल गए, उसने स्थिति को गंभीर बना दिया। विडंबना यह है कि हर साल इस मौसम में राजधानी की हवा की हालत कमोबेश ऐसी ही हो जाती है। मगर इससे निपटने के लिए सरकार को कोई पूर्व तैयारी करना जरूरी नहीं लगा।
 
अब जब समूची दिल्ली में चारों तरफ फैला जहरीला धुआं गहरा गया है, तब दिल्ली सरकार ने गुरुवार को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में खेतों में बची फसलों को जलाने से लेकर एनसीआर में डीजल से चलने वाले ऑटो-टैक्सी के चलते राजधानी की हवा में प्रदूषण की गहराती समस्या का मुद्दा भी उठाया है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह पहल आगे बढ़ती भी है तो इसमें कई दिन लग सकते हैं यानी अगर आसमान साफ नहीं हुआ और हवा ने गति नहीं पकड़ी तो तब तक यह प्रदूषित हवा लोगों की सेहत पर भारी पड़ती रहेगी। अभी ठंड का मौसम आने वाला है और यह तय है कि आसमान में नमी के चलते कोहरे और धुंध से उपजी समस्या और गहरा सकती है।
 
हालांकि दिल्ली सरकार चार वर्ष पहले ही अपनी एक आधिकारिक रिपोर्ट में यह मान चुकी है कि राजधानी की आबोहवा में पूरी तरह जहर घुल चुका है और यहां हर रोज करीब 21 लोगों की मौत श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियों के कारण हो रही है और इनमें से अधिकांश के लिए वाहनों से होने वाला प्रदूषण जिम्मेदार है। दिल्ली में बीते एक दशक के दौरान श्वांस की बीमारी से होने वाली मौतों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है और प्रतिवर्ष औसतन सात हजार लोगों की मौत हो रही है। दिल्ली में वायु प्रदूषण के दिनोदिन खतरनाक रूप लेते जाने की जगजाहिर हकीकत के बावजूद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लेकर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति तक, सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे हैं। इस निष्क्रियता पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट भी कई बार केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगा चुकी हैं। 
 
कुछ दिनों पहले स्वयंसेवी संगठन 'ग्रीनपीस' द्वारा कराए गए सर्वे में भी यह तथ्य उजागर हुआ था कि राजधानी की हवा डब्ल्यूएचओ की ओर से तय किए गए निरापद-स्तर से दस गुना ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है। ग्रीनपीस ने दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में स्थित पांच स्कूलों में सर्वे कर दिल्ली में वायु प्रदूषण की भयावहता को उजागर किया था। हवा की जांच इन स्कूलों के भीतर हुई थी। इससे यह धारणा ध्वस्त हो जाती है कि वायु प्रदूषण की भयावहता सिर्फ सड़कों पर ही है। 
 
जाहिर है, दिल्ली के बच्चे चाहे सड़क पर हों या स्कूल के भीतर या खेल के मैदान में, जहरीली हवा में सांस लेने को विवश हैं। ऐसे में उनका कैसे शारीरिक और मानसिक विकास होगा? यह सवाल कभी इतने जोर से नहीं उठता कि कोई व्यापक बहस शुरू हो सके। शायद यह सवाल जोरशोर से उठने ही नहीं दिया जाता। इसलिए कि फिर सड़कों पर गाड़ियों की रोजाना बढ़ती संख्या से लेकर विकास के प्रचलित मॉडल तक अनेक असुविधाजनक सवाल उठेंगे। ऐसे सवालों की अनदेखी लोगों की सेहत की कीमत पर ही की जा सकती है।
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