प्रतिभासंपन्न लंकापति अहंकार से बना खलनायक रावण

शरद सिंगी
प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम विजयादशमी को रावण के पुतले का दहन करेंगे। सदियों से दहन की यह परंपरा चली आ रही है और हम इसे बखूबी निभा रहे हैं, यह जानते हुए भी कि रावण के बाद पिछली सदियों में विश्व के पटल पर अनेक ऐसे दुर्दांत, सिरफिरे खलनायक उभरे जिन्होंने लाखों की संख्या में लोगों का कत्लेआम किया तथा मानवता पर भीषण अत्याचार किए। 
 
यद्यपि ये सभी काल के गाल में समा गए, इतिहास के अंधेरों में खो गए किंतु आश्चर्य की बात यह रही कि त्रेतायुग के खलनायक रावण को हमने आज भी जीवित रखा हुआ है। रावण शताब्दियों से जलता आ रहा है और आगे अनेक शताब्दियों तक जलता ही रहेगा। प्रश्न यह है कि इस दशानन में ऐसा अनोखा क्या था, जो अन्य दुष्टात्माओं में नहीं था? दूसरों की बरसी या संवत्सरी पर तो कभी कोई जश्न आयोजित नहीं होते फिर रावण की ही बरसी पर उत्सव क्यों होता है?
 
सतयुग सत्य का युग था जिसमें सत्यनिष्ठा की पराकाष्ठा थी। राजा हरीशचन्द्र उसी युग के थे। यदि कोई दुष्कर्म करता भी था तो वह मात्र परीक्षा लेने के लिए। इसलिए उस युग में किसी राक्षस का होना संभव नहीं था। तदुपरांत त्रेतायुग आरंभ हुआ जिसमें कर्तव्यनिष्ठा को प्रमुखता दी गई थी। 
 
भगवान राम की जीवनी से मानव जीवन के इसी आयाम को भली-भांति समझा जा सकता है। द्वापर युग में न्यायोचित कर्म की प्रधानता थी जिसकी गूढ़ता को भगवान कृष्ण ने गीता में समझाया। इस युग में दुर्योधन, शकुनि, कंस, जरासंध जैसे अनेक खलनायक हुए किंतु फिर भी रावण के सामने निस्तेज लगे। कलियुग में तो सत्य, कर्म, निष्ठा तथा कर्तव्य सब गड्ड-मड्ड हो गए और उन्मादी दुष्टात्माओं की बाढ़ आ गई। 
 
रावण की बात करें तो हम यह भी जानते हैं कि रावण एक प्रकांड विद्वान, अनन्य शिवभक्त, वेदों का ज्ञाता, संगीतज्ञ, इंजीनियर, खगोलविद, आयुर्वेद विशारद, महापराक्रमी योद्धा, अस्त्र-शस्त्र विद्या का ज्ञाता तथा कई शास्त्रों का रचयिता था यानी पूरे संसार का ज्ञान मानो एक ही घड़े में भर दिया गया हो। मानव सभ्यता का पहला हवाई विमान बनाने वाला भी वही था। 
 
रावण ने ही छद्म या गुरिल्ला युद्ध की नींव रखी थी। उसने अपने राक्षसों को ऋषियों और मुनियों द्वारा किए जा रहे यज्ञ अनुसंधानों में बाधा पहुंचाने के लिए छोड़ रखा था विशेषकर विश्वामित्र के। उसके योद्धा आकाश मार्ग से आते थे और हानि पहुंचाकर भाग खड़े होते थे। मायावी एवं रात्रि युद्ध की नींव भी रावण ने ही रखी थी। यद्यपि सर्जिकल स्ट्राइक की शुरुआत भी तभी हुई थी, जब अकेले हनुमानजी ने लंका को तहस-नहस किया और अंगद ने रावण की सेना के मनोबल को तोड़ा। 
 
कहते हैं कि इस महाज्ञानी, महापंडित और महाशक्तिशाली रावण ने मेघनाद के जन्म के समय ग्रहों की चाल को स्थिर करने का आदेश दे दिया था किंतु अहम ने उसके सारे ज्ञान चक्षु बंद कर दिए। अभिमान ने ही उस महाज्ञानी को अज्ञानी बना दिया। दंभ ने पराक्रमी को निर्बल बना दिया। महानायक से महाखलनायक हो गया। एक ही अवगुण उसके सारे सद्गुणों पर भारी पड़ गया और अंत में अहंकार ही उसके विनाश का कारण बना। सामने हरि खड़े हैं, यह जानते हुए भी अनजान बन गया।
 
रावण के अहंकार और दुर्योधन के अहंकार में भेद है। दुर्योधन अहंकारी के साथ षठ भी था। हरि तो उसके सामने भी खड़े थे किंतु उन्हें पहचानने का सामर्थ्य उसके पास नहीं था अत: उसे मारने के लिए भीम जैसे योद्धा ही काफी थे। 
 
भगवान कृष्ण का जन्म तो धर्म की हानि को रोकने और पापाचार को मिटाने के उद्देश्य से हुआ, किसी का वध करने के लिए नहीं। बाद में भगवान बुद्ध और महावीर भी धर्म और अहिंसा की सीख देने के लिए धरा पर पधारे।
 
कलियुग के खलनायकों के लिए तो मृत्यु के देवता यमराज ही पर्याप्त थे, जो समय पर उन्हें पृथ्वी से उठाकर ले गए। किंतु रावण को मारना यमराज के सामर्थ्य में नहीं था अत: श्री नारायण को ही अवतरित होना पड़ा। रामावतार का प्रमुख उद्देश्य तो रावण का वध करना ही था। एक ऐसे प्राणी का जिसने मृत्यु को जीत रखा था। उसके पराक्रम की ऊंचाई और ज्ञान की गहराई को नापना अन्य किसी के लिए असंभव था।
 
यही कारण है कि रावण से बढ़कर योग्य और सक्षम खलनायक मानवता के इतिहास में कोई दूसरा हुआ ही नहीं। एक अनन्य शिवभक्त का वध करने के पश्चात भगवान राम को भी किसी आनंद की अनुभूति नहीं हुई। मृत्यु के पश्चात रावण के सारे तेज को भगवान राम ने आत्मसात कर लिया। रावण का अहंकार राम की विनम्रता और शिष्टता को रेखांकित ही नहीं करता अपितु आसमानी ऊंचाई देता है। इसलिए जब तक राम हैं, तब तक रावण जीवित है या जब तक रावण है, तब तक राम की महिमा है। 
 
सच कहें तो रावण की बहुमुखी योग्यता और कुशलता तथा राम की निर्मल विनम्रता और निरभिमानता का संयोग हमारे जीवन का आदर्श बने, इस कामना के साथ विजयादशमी की सभी सुधी पाठकों को शुभकामनाएं!
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