Dharma Sangrah

इस बार मुझे मत जलाइए : रावण

Webdunia
बकलम : विवेक हिरदे
 
पौराणिक गणना और मुझ पर लिखी रावण संहिता अनुसार मेरी मृत्यु को नौ लाख वर्ष हो गए हैं। इतनी सुदीर्घ अवधि पश्चात भी लग रहा है जैसे मेरा निर्वाण अभी कल ही की बात है, क्योंकि इन नौ लाख वर्षों में भी आप मेरे पाप को कहां क्षमा कर पाए हैं। हर वर्ष बड़े उत्साह से और उत्सव के समान मनुष्य मेरा "वध दिवस" मनाता है। जब भी मैं अपनी भीषण भूल भूलने का प्रयास करता हूं, धरती से उठती मेरे "दहन" की लपटें जता देती हैं कि "मनुष्य" शायद मुझे कभी माफ नहीं करेगा।
 
इस चिर अनंत काल में संभवतः मुझसे अधिक भीषण पाप करने वाले लोभ भी धरती पर जन्म ले चुके होंगे, लेकिन पता नहीं हर साल मैं ही क्यों जलता हूँ। शायद इसी "मैं" के कारण! आज भी इस धरती पर ऐसे असंख्य लोगों को मैं देख रहा हूं जिन्हें आप रावण कहते हैं और वे राज भी कर रहे हैं, फल-फूल रहे हैं और सजा से भी बच जाते हैं। यकीन मानिए इनके समान घृणित, अमानवीय और पाशविक कृत्य मैंने नहीं किए हैं।
 
साधन की सार्थकता इस तथ्य से होती है कि मैंने अपना साध्य साधने के लिए दत्तचित्त होकर घोर तपस्या की है। वेदों का सुव्यवस्थित पठन किया है। मुझे दसों दिशाओं का ज्ञान होने से और आदित्य के सारथी अरुण से प्राप्त विलक्षण ज्योतिष ज्ञान होने से दशानन कहा जाता है। अतिविशिष्ठ गु विधाओं के अधिष्ठाता परमपिता शंकरजी का मैं उपासक हूँ। भूलें सबसे होती हैं, मुझसे भी हुई हैं। हां, यह भूल अवश्य भीषण थी जिसकी परिणति ने राजा रामचन्द्र को भगवान श्रीराम में रूपांतरित कर अद्भुत दैविक क्रांति कर दी। संभवतः मेरे पापों का प्रायश्चित उस दिन हो गया था जब प्रभु श्रीराम ने मेरी नाभि में स्थित अमृत को अपने तीर से भेद कर मुझे "देहांत-प्रायश्चित" दिया था। इतना ही नहीं, बल्कि अपने अनुज लक्ष्मण को जहां श्रीराम ने मेरे पैरों के पास बैठकर ज्ञार्नाजन का आदेश दिया तो मेरे चिरसंचित अश्रु भी बह निकले थे।
 
हे मानवो! मैं स्वीकार करता हूँ कि मुझसे अत्यंत क्षोभजनक कृत्य हुआ है। मेरी नौ लाख वर्ष की मर्मान्तक पीड़ा देखकर मां सीता ने भी मुझे स्वर्ग-लोक से क्षमा कर दिया है। मेरा विश्वास करें, आज कलियुग में कई घृणित कुकृत्य हो रहे हैं। सभ्यता की हत्या हो रही है। स्त्री का भयानक शोषण हो रहा है, नन्ही कोपलें, जिन्हें मैं देवीस्वरूप समझता हूं, बुरी तरह कुचली जा रही हैं। आज सर्वत्र द्वेष, तिरस्कार, स्वार्थ, दंभ, ढोंग, मत्सर और काम का विष फैल रहा है। बजाय संगठित होकर मुझ जैसे बेजान-बेबस पुतले को जलाने के आप यदि इन बुराइयों के खिलाफ लड़ें तो यह मानवता और संस्कृति के हित में सकारात्मक कदम होगा। मेरा कातर निवेदन है आपसे कि इस बार से मुझे जलाना बंद कर दीजिए। यह मुझे पूर्ण रूप से मुक्ति दिलाने में सहायक होगा। मैं आपकी सुखद मानवीय सभ्यता की मंगल कामना करता हूं।
 
-आप उचित समझें तो आपका,
रावण। 
 

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