देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा

हरिशयनी एकादशी की व्रत कथा

WD Feature Desk
शनिवार, 5 जुलाई 2025 (10:40 IST)
devshayani ekadashi katha 2025 : देवशयनी एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, और इसी के साथ चातुर्मास का आरंभ होता है। यह अवधि अगले चार महीनों तक चलती है, जब भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर जागृत होते हैं। इस एकादशी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा राजा मांधाता से संबंधित है:ALSO READ: आषाढ़ी देवशयनी एकादशी पूजा की शास्त्र सम्मत विधि
 
राजा मांधाता और देवशयनी एकादशी की कथा:
 
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में सूर्यवंश में राजा मांधाता नाम के एक प्रतापी और धर्मात्मा राजा हुए। वे सत्यवादी, पुण्यात्मा और अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करने वाले शासक थे। उनकी प्रजा भी सुखी और समृद्ध थी। एक बार, राजा मांधाता के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। लगातार तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। नदियां, तालाब और कुएं सूख गए, खेत बंजर हो गए और अन्न की भारी कमी हो गई। प्रजा भूख और प्यास से त्राहि-त्राहि करने लगी। राजा अपनी प्रजा की यह दुर्दशा देखकर बहुत दुखी हुए। उन्होंने अपनी प्रजा को बचाने के लिए कई उपाय किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।ALSO READ: देवशयनी एकादशी का पारण कब होगा?
 
अपनी प्रजा को इस कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए राजा मांधाता ने घोर तपस्या करने का निर्णय लिया। वे अपनी समस्या का समाधान खोजने के लिए वन की ओर निकल पड़े। घूमते-घूमते वे अंततः ब्रह्मपुत्र के परम तेजस्वी पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे।
 
राजा ने अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया और उनसे अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा, "हे महर्षि! मैंने अपनी प्रजा को कभी दुख नहीं दिया, हमेशा धर्मपूर्वक शासन किया। फिर भी मेरे राज्य में इतना भीषण अकाल क्यों पड़ा है? कृपया मुझे इस समस्या का समाधान बताएं, जिससे मेरी प्रजा के कष्ट दूर हों।"
 
अंगिरा ऋषि ने राजा की बात ध्यान से सुनी और अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ जान लिया। उन्होंने राजा से कहा, "हे राजन! यह सत्य है कि आप एक धर्मात्मा राजा हैं, लेकिन आपके पूर्वजन्म में किए गए किसी पाप कर्म के कारण आपके राज्य में यह अकाल पड़ा है। इसका प्रायश्चित करने और अपनी प्रजा के कष्ट दूर करने के लिए आपको आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करना होगा।"
 
ऋषि ने आगे बताया, "यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली है। इस एकादशी को 'पद्मा एकादशी' या 'देवशयनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। आप विधि-विधान से भगवान विष्णु का पूजन करें और इस व्रत का पालन करें।"
 
राजा मांधाता ने श्रद्धापूर्वक ऋषि के वचनों को सुना और वापस अपने राज्य लौट आए। उन्होंने अपनी प्रजा के साथ मिलकर आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु का व्रत रखा। राजा और उनकी प्रजा ने सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा की, दिनभर उपवास किया और रात्रि जागरण किया।
 
व्रत के प्रभाव से, भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। जैसे ही एकादशी का व्रत पूर्ण हुआ, राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई। खेत फिर से हरे-भरे हो गए, नदियाँ और तालाब लबालब भर गए और चारों ओर खुशहाली लौट आई। प्रजा के सभी कष्ट दूर हो गए और राज्य में फिर से सुख-समृद्धि आ गई।ALSO READ: देवशयनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा, क्या महत्व है इस एकादशी का?

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