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Mokshada Ekadashi: मोक्षदा एकादशी: मोह का नाश, मुक्ति का मार्ग और गीता का ज्ञान

WD Feature Desk
मंगलवार, 18 नवंबर 2025 (17:30 IST)
Mokshada Ekadashi 2025: मोक्षदा एकादशी के दिन का व्रत रखने का बहुत पुण्‍य माना गया है। पुराणों में इसका व्रत रखने का महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। मोक्षदा एकादशी का व्रत 1 दिसंबर 2025 सोमवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था इसलिए इस दिन गीता जयंती भी रहती है। इस बार गीता की 5162वां वर्षगांठ रहेगा।
 
मोक्षदा का अर्थ: मोक्षदा एकादशी का शाब्दिक अर्थ है- 'मोह का नाश कर मोक्ष देने वाली'। यह वह पावन तिथि है जो मनुष्य को कर्मों के बंधन और मोह-माया से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर अग्रसर करती है। यह एकादशी आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
 
गीता जयंती: ज्ञान का प्रकाश पर्व:
द्वापर युग में, इसी शुभ तिथि पर, भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्ध भूमि में धर्मपरायण अर्जुन को श्रीमद् भागवत गीता का अमर ज्ञान दिया था। यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता को नई दिशा देने वाला सिद्ध हुआ। यही कारण है कि मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती का महान पर्व भी मनाया जाता है।
 
 
गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है; यह जीवन जीने की कला, आत्मज्ञान और कर्म के सिद्धांत का सार है। इसका चिंतन अज्ञानता को दूर करता है और मन को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। गीता के पठन-पाठन और श्रवण से जीवन को नई प्रेरणा मिलती है।
 
मोक्षदा एकादशी व्रत की सरल पूजा विधि:
मोक्षदा एकादशी का व्रत और पूजन भगवान श्री कृष्ण, महर्षि वेद व्यास (गीता के संकलनकर्ता) और श्रीमद् भागवत गीता को समर्पित है।
 
व्रत और संकल्प (दशमी तिथि):
दशमी तिथि: दशमी तिथि (व्रत से एक दिन पहले): दोपहर में केवल एक बार भोजन करें। रात्रि के समय भोजन का त्याग करें।
एकादशी तिथि: एकादशी तिथि (व्रत का दिन): सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र स्नान करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
 
पूजन और जागरण (एकादशी तिथि):
संकल्प: संकल्प लेने के बाद, विधि-विधान से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें। उन्हें धूप, दीप, पुष्प, फल और नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
निराहार और जागरण: दिन भर निराहार या फलाहार रहें। रात्रि में पूजन और जागरण करें। इस दौरान भगवद्गीता का पाठ करना या सुनना अत्यंत शुभ माना जाता है।
 
पारण और दान (द्वादशी तिथि):
द्वादशी तिथि (अगले दिन): पूजन समाप्त करने के बाद, अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएँ और उन्हें दान-दक्षिणा दें। इसके बाद ही स्वयं भोजन (पारण) करके व्रत का समापन करें।
 
मोक्षदा एकादशी का महात्म्य:
इस पुण्यकारी एकादशी के व्रत का प्रभाव अत्यंत व्यापक है।
पूर्वजों को मोक्ष: इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पूर्वजों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
पापों का नाश: यह व्रत करने वाले व्यक्ति के जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों का नाश करता है।
आत्मज्ञान: गीता जयंती के अवसर पर गीता का विधिपूर्वक पूजन और उसके संदेशों को आत्मसात करने से जीवन में धर्म, कर्म और ज्ञान का प्रकाश आता है।
 

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