पर्यावरण संवाद सप्ताह : 27000 प्रजातियां प्रतिवर्ष विलुप्त हो रही हैं

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पर्यावरणविद प्रेम जोशी और अनुराग शुक्ला ने बताए जमीनी अनुभव

पर्यावरण संवाद सप्ताह में जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर से जारी संवाद सप्ताह में 1 जून को श्री प्रेम जोशी और श्री अनुराग शुक्ला ने अपने अनुभव साझा किए। सेंटर की डायरेक्टर जनक पलटा मगिलिगन ने बताया कि फेसबुक लाइव पर पर्यावरण संवाद सप्ताह के दूसरे दिन जैविक खेती गुरु प्रेम जोशी ने प्रदेश में जैव विविधता संकट पर बात की। जैव-विविधता संरक्षक रिटायर्ड कर्नल अनुराग शुक्ला ने जैव विविधता प्रबंधन के अपने जमीनी अनुभव बताए।
 
श्री प्रेम जोशी ने कहा दुनिया में अनुमानित 10 करोड़ प्रजातियों में से केवल 14.5 लाख ही पहचानी गई हैं। इनमें से 27000 प्रजातियां प्रति वर्ष विलुप्त हो रही हैं, यदि इसी दर से प्रजातियां घटती रहीं तो 2050 तक एक चौथाई प्रजातियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। जैव विविधता के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन असंभव है। कृषि पैदावार बढ़ाने, रोग व कीट रोकने में भी जैव विविधता की भूमिका है और यह औषधीय आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती है। 
 
प्रदेश में जैव विविधता के क्षरण का मुख्य कारण हैं कीटनाशक जैसे रसायन। पहले 3000 प्रकार के भोजन के पौधों की प्रजातियों में से अब केवल 150 ही व्यावहारिक उपयोग में बची हैं। छोटी छोटी बातें जैव विविधता बचाने में मददगार हो सकती है जैसे गाय यदि गाय को मृत्यु के बाद खेत में ही गाड़ा जाए तो आसपास की 20 एकड़ जमीन उर्वर हो सकती है। जैवविविधता के संरक्षण के उद्देश्य से कस्तूरबाग्राम के पास एक चक्रव्यूह के आकृति में प्रकृति परिसर है जिसमें 700 प्रजातियों के लगभग 14000 पौधे 1 एकड़ के क्षेत्र में लगाए गए हैं। यहीं पर विलुप्त हो रही सरगोड नस्ल की गाय का संरक्षण व पालन कर रहे हैं। 
 
उन्होंने कहा कि लॉक डाउन में यह सिद्ध हुआ है कि कम आवश्यकता में भी जीवन सुंदर सहज और सरल हो सकता है।  हर व्यक्ति के आचरण का प्रभाव पर्यावरण व जैव विविधता पर पड़ता है। हमारी कोशिश होना चाहिए कि हम पर्यावरण को संरक्षित करने का माध्यम बनें। 
 
सेवानिवृत्त कर्नल अनुराग शुक्ला ने अपने फार्म 'आश्रय' दिखाकर जैव विविधता पर बात रखी। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें सब एक दूसरे के पूरक और संवर्धक हैं। आश्रय के इकोसिस्टम से उन्होंने बताया कि कैसे जैव विविधता एक स्वचालित तंत्र है। हमारा प्रबंधन बस उसका आदर करने और  उसमें अपनी जगह बनाए रखने तक है।
 
 उन्होंने कहा कि जब अर्चना और मैं यहां आए तब मुझे खेती का ख भी नहीं आता था। हमने जैव विविधता की जरूरत समझी और जुट गए। हमारे बायोस्फियर में जैव विविधता का जंगल से बढ़िया कोई स्वावलम्बी मॉडल नहीं है। मात्र सूर्य की रोशनी बाहर से ऊर्जा स्रोत में आती है उसके बाद सारी चीजें, हवा,पानी मिट्टी, पेड़, पौधे, सूक्ष्म एवं स्थूल जीवी सब अपने आप साथ साथ संवर्धित होते हैं साथ ही पौष्टिक भोजन, स्वस्थ परिवेश और हवा, पानी, खाना ,ठिकाना की समस्त आवश्यकताएं पूरी करते हैं। 
 
छोटे से छोटे जीव-जंतु, गाय, चिड़ियों, केंचुए, दीमक, गिलहरी, चमगादड़, कौवे आदि अपनी भूमिका निभाते हैं लेकिन इंसान अपने स्वार्थ के इस ओर ध्यान नहीं देता। अंत में उन्होंने अपनी पत्नी अर्चना शुक्ला को श्रेय देते हुए कहा प्रकृति का आदर नारी के आदर के बिना संभव नहीं।

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