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इंदौर की 24 साल की कॉन्‍सटेबल शालिनी ने बिछाया जाल, मेडिकल कॉलेज में ऐसे हुआ रैगिंग का खुलासा, क्‍या है रैगिंग का इतिहास?

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नवीन रांगियाल

कॉलेज जिंदगी का सबसे महत्‍वपूर्ण और यादगार हिस्‍सा है। लेकिन कॉलेज में एडमिशन लेते वक्‍त स्‍टूडेंट का सबसे पहला डर यही होता है कि कहीं वो भी रैगिंग का शिकार न हो जाए। रैगिंग एक भयभीत करने वाला शब्‍द और ‘कॉलेज कल्‍चर’ है। इससे देश- दुनिया में कई स्‍टूडेंट या तो डिप्रेशन में आ जाते हैं या फिर आत्‍महत्‍या कर लेते हैं। रैगिंग की वजह से सुसाइड करने के कई प्रकरण मिल जाएंगे।

इंदौर का महात्‍मा गांधी मेडिकल कॉलेज प्रदेश में चिकित्‍सा का सबसे बड़ा केंद्र है, जहां देशभर के स्‍टूडेंट अलग-अलग चिकित्‍सा सेवाओं के लिए डॉक्‍टर बनने आते हैं, हाल ही में यहां रैगिंग (Ragging Case) का एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसमें रैगिंग करने वाले 11 आरोपी शामिल हैं। पीड़ित छात्र ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की हेल्पलाइन पर शिकायत की थी। जिसके बाद यह शिकायत यूजीसी की एंटी रैगिंग कमेटी को गई। शिकायत के बाद मेडिकल प्रशासन 24 जुलाई को अज्ञात स्टूडेंट्स के खिलाफ इंदौर के संयोगितागंज पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया। रैगिंग करने वाले छात्रों के खिलाफ सबूत जुटाने और मामले की पड़ताल के लिए संयोगितागंज पुलिस और यहां के थाना प्रभारी तहजीब काजी ने एक अनोखा तरीका अपनाया।

24 साल की शालिनी ने ऐसे बिछाया जाल
संयोगिजागंज थाने में 24 साल की शालिनी चौहान (Constable Shalini Chauhan) आरक्षक के पद पर हैं। पुलिस ने मामले की पड़ताल के लिए शालिनी चौहान को स्‍टूडेंट बनाकर मेडिकल कॉलेज भेजा। शालिनी ने वेबदुनिया को बताया कि वो एक करीब तीन महीनों तक रोजाना मेडिकल कॉलेज स्‍टूडेंट बनकर गई। वहां रोजाना करीब 5 से 6 घंटे कैंटीन में गुजारे और मेडिकल स्‍टूडेंट के साथ दोस्‍ती की। इस बीच वो लगातार स्‍टूडेंट की गतिविधियों पर नजर बनाए रखती थी। दोस्‍त बनाकर उनसे रैगिंग करने वाले सिनियर स्‍टूडेंट के बारे में डिटेल लेती रही। शालिनी ने बताया कि वो रोजाना कॉलेज जाती और तब तक वहां रहती, जब तक कि वो खुद मेडिकल कॉलेज के माहौल में घुल मिल नहीं गई। शालिनी ने बताया कि इसके लिए उसने मेडिकल स्‍टूडेंट कॉलेज एप्रिन पहना और मेडिकल की किताबें भी साथ में ले जाती। करीब 4 महीनों में उसने पता लगा लिया कि कौन-कौन से छात्र रैगिंग करने के केस में शामिल हैं, और कौन रैगिंग से पीड़ित छात्र हैं। सारी डिटेल नोट करने के बाद उसने सारा रिकॉर्ड पुलिस को सौंपा। इसमें शालिनी को कॉलेज के बाहर से थाना प्रभारी तहजीब काजी और बाकी टीम का सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहा।
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ट्रेप की पूरी ट्रेनिंग के साथ गई कॉलेज
कॉलेज जाने से पहले उसकी अच्‍छी खासी तैयारी करवा ली गई थी। कम उम्र होने और अपने अपिरिएंस से स्‍टूडेंट लगने वाली शालिनी की इन्‍वेस्‍टिगेशन काम आई। लंबी पड़ताल के बाद पिछले दिनों ही आरोपी 10 सीनियर स्टूडेंट्स की पहचान की गई। उसके बाद उनमें से 6 स्टूडेंट्स को गिरफ्तार कर लिया गया। चार को अभी फरार बताए जा रहा है। शालिनी ने वेबदुनिया को बताया कि यह काफी रोमांचक लेकिन चुनौती से भरा था। कई बार लगा कि वो नर्वस हुई, कई बार लगा कि वो पकड़ा जाएगी। लेकिन यह रैगिंग का एक गंभीर जांच का विषय था, इसलिए उसने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे उन लोगों की पहचान कर ली जो फ्रेशर्स की रैगिंग कर परेशान कर रहे थे।

ऐसे होती थी स्‍टूडेंट की रैगिंग
पीड़ित छात्रों ने आरोप लगाया था कि सीनियर छात्र उन्हें अननैचुरल सैक्स करने के लिए मजबूर करते हैं। उन्हें किसी भी महिला बैच साथी का नाम चुनने और उसके बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए कहते हैं। मेडिकल कॉलेज के एंटी रैगिंग सेल ने प्रारंभिक जांच की और आरोपों को सही पाया और मामला पुलिस को सौंप दिया।

कोर्ट में चालान पेश करेगी पुलिस
संयोगिता गंज थाना प्रभारी तहजीब काजी ने बताया कि शिकायत के बाद 11 छात्रों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। फिलहाल मामले में 8 छात्रों को हिरासत में लेने के बाद जमानत दे दी गई है। अब पुलिस आरोपी छात्रों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करेगी।

क्‍या कहता है कॉलेज प्रशासन?
मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ संजय दीक्षित ने वेबदुनिया को बताया कि यूजीसी को शिकायत मिलने के बाद हमने एक एंटी रैगिंग कमेटी बनाकर प्राथमिक जांच की। इसके बाद पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई गई। इसके बाद पुलिस ने अपनी जांच की है। हमने जांच के आधार पर आरोपी स्‍टूडेंट को कॉलेज और होस्‍टल से निष्‍कासित कर दिया है। कॉलेज में रैगिंगन हो इसके लिए हम स्‍टूडेंट से चर्चा करते हैं, हेल्‍पलाइन और व्‍हॉट्सऐप नंबर जारी कर रखे हैं। हमने कॉलेज में भी बैनर,पोस्‍टर और नियमों की गाइड लाइन चस्‍पा कर रखी है।
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रैगिंग के 5 कांड, जिनसे हिल गया था देश
पॉन नवारासू : 1996 में 19 वर्षीय पॉन नवारासू के शरीर के टुकड़े तमिलनाडु के कई हिस्सों में मिले थे। पॉन नवारासू चिदंबरम जिले की अन्नामलाई यूनिवर्सिटी के राजा मुथैया मेडिकल कॉलेज में पढ़ता था। सीनियर जॉन डेविड ने उसकी पिटाई की थी, क्योंकि पॉन नवारासू ने अपने कपड़े उतारने और जॉन के जूते चाटने से मना कर दिया था।

अमन काचरू : 2009 में 19 वर्षीय अमन सत्य काचरू के चार सीनियर्स अजय वर्मा, नवीन वर्मा, मुकुल शर्मा और अभिनव वर्मा ने हिमाचल प्रदेश के डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज में उसे इतने थप्पड़ मारे कि उसकी मौत हो गई।

अजमल पीएम : 2012 में बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में पढ़ने वाले 17 वर्षीय अजमल को उसके सीनियर्स ने आग के हवाले कर दिया था। उसके बाथरूम में थिनर डालकर आग लगा दी गई थी।

आकाश अग्रवाल : 2014 में 20 वर्षीय फार्मेसी स्टूडेंट आकाश को उसके सीनियर्स ने इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई थी। आकाश कलकत्ता इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिक टेक्नोलॉजी में पढ़ता था।

डीपीएस रैगिंग केस : नोएडा के दिल्ली पब्लिक स्कूल में 15 वर्षीय छात्र की 17 सीनियर्स ने रॉड और डंडों से बुरी तरह पिटाई की थी।

क्‍या है भारत में रैगिंग का इतिहास?
भारत में कैसे हुई रैगिंग की एंट्री
भारत में रैगिंग की शुरूआत आजादी से पहले ही हो चुकी थी। इसकी शुरूआत अंग्रेजी मीडियम स्‍कूलों और कॉलेजों से हुई। हालांकि भारत में रैगिंग सीनियर और जूनियर के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए हल्के-फुल्के अंदाज में रैगिंग की जाती थी। लेकिन 90 के दशक में भारत में रैगिंग एक भयानक ट्रेंड बन गया। 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। वहीं यूजीसी ने भी रैगिंग के खिलाफ सख्त नियम बनाए हैं। लेकिन रैगिंग आज भी जारी है और कई मामले डर के मारे सामने नहीं आ पाते हैं।

छात्र संगठनों ने बढ़ाया रैगिंग का ग्राफ
दरअसल, 18वीं शताब्दी के दौरान विश्वविद्यालयों में छात्र संगठन बनाने लगे थे, जिनमें खासतौर से यूरोपीय देश शामिल थे। इन संगठनों के नाम अल्फा, फी, बीटा, कपा, एपिसिलोन, डेल्टा आदि हुआ करते थे। ये संगठन भाईचारे के रूप में उदय हो रहे थे, लेकिन बाद में ये नए छात्रों की रैगिंग लेने लगे।

1873 में हुई रैगिंग से पहली मौत
रैगिंग की वजह से दुनिया में पहली मौत 1873 में हुई थी। रैगिंग के शिकार छात्र की न्यूयॉर्क की कॉरनेल यूनिवर्सिटी की इमारत से गिरने पर मौत हो गई थी। सेना में भी प्रथम विश्वयुद्ध के बाद रैगिंग बेहद खतरनाक हो गई। जब युद्ध से वापस लौटे सैनिकों ने कॉलेजों में प्रवेश लेना शुरू किया तो उन्होंने रैगिंग की नई तकनीक हैजिंग को ईजाद किया। इस तरीके को उन्होंने मिलिट्री कैंपों में सीखा था। सैनिकों के इस नए नियम से कॉलेज के आम छात्र वाकिफ नहीं थे, जिस वजह से उनकी और सैनिकों की झड़पें होने लगीं। इसी के चलते 20वीं सदी के आते-आते पश्चिमी देशों में रैगिंग से जुड़ी हिंसक घटनाएं काफी बढ़ गईं।

पिछले 5 साल में रैगिंग के दर्ज मामले
साल मामले
2015 423
2016 515
2017 901
2018 1016
2019 283
साल 2020 और 2021 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन रहा और 2022 के आंकड़े जारी नहीं हुए

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