दद्दू का दरबार : कर्तव्य और अधिकार

एमके सांघी
प्रश्न : दद्दू जी, अक्सर देखा गया है कि लोग अपने अधिकारों की बात तो करते हैं पर अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहते हैं। आपके मत से आखिर कर्तव्यों और अधिकारों में कितना फासला है?
 
उत्तर : देखिए जिस दिन इंसान दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयत्नरत होगा, उस दिन उसके कर्तव्यों का निर्वहन स्वत: ही होने लगेगा। इसका अर्थ यही है कि कर्तव्यों और अधिकारों के बीच का फासला अत्यंत महीन हैं। यूं मान लीजिए कि दोनों पीठ से पीठ सटाकर खड़े हैं। बस 180 डिग्री पलट कर अपने अधिकारों के स्थान पर दूसरों के अधिकारों के लिए ल‍़ड़िए। दूसरों के साथ आपको अपने अधिकार भी मिल जाएंगे।

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