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शंकर सुवन भवानी नंदन

गाइए गणपति जग वंदन

अनिरुद्ध जोशी
।। श्रीगणेशाय नम:।।
 
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
 
प्रथम पूज्य गणेश : हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ करने के पूर्व भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य माना गया है, क्योंकि उन्हें निर्विघ्न सभी कार्य को सम्पन्न कर ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, जप और आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है तथा विघ्नों का विनाश होता है।
 
जल के अधिपति देव : हिंदू धर्म में पंचभूत के पाँच अधिपति देवताओं में से एक है गणपति। शिव को पृथ्वी (क्षिति), विष्णु को आकाश (व्योम), सूर्य को वायु (मरुत), शक्ति को तेज (अग्नि) और गणेश को जल (अप्) का देवता माना जाता है। सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले तत्त्व 'जल' का अधिपति होने के कारण गणेशजी ही प्रथमपूज्य के अधिकारी होते हैं।
 
गणेशजी के 12 प्रमुख नाम: सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।
 
गणेश परिचय : भगवान गणेश के पिता का नाम शिव और माता का नाम पार्वती है। उनका एक भाई कार्तिकेय जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है। और एक बहन संतोषी है। रिद्धि और सिद्धि नामक उनकी दो पत्नी और शुभ-लाभ नामक दो पुत्र हैं। उन्हें केतु, विद्या और जल का देवता माना जाता है।
 
मोदक और लड्डू उनको प्रिय है। दुर्वा (दूब) और शमी-पत्र उन्हें अर्पित किया जाता है। गणेशजी का वाहन मूषक (चूहा) है। उन्हें एक हाथ में अंकुश, दूसरे में कमल का फूल, तीसरे हाथ में मोदक और चौथा हाथ आशीर्वाद देते हुए दर्शाया जाता है। पीतांबरी वस्त्र और जनेऊ पहने वे अति शोभित और मोहक नजर आते हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहा जाता है।
 
गणेशोत्सव मनाने की परंपरा : वैसे तो प्राचीन काल से ही गणेश चतुर्थी पर घर-घर में भगवान गणेश की पूजा-अर्जना होती थी किंतु भगवान गणेश की इस पूजा-अर्चना को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक नया आयाम दिया था लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने। उन्होंने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की एक नई परंपरा शुरू की। गणपति की सार्वजनिक पूजा के माध्यम से समाज और राष्ट्र को एकजूट कर अंग्रेजों के विरुद्ध धार्मिक चेतना को जाग्रत किया।
 
आज लगभग सौ सालों में गणेश पूजा का रूप पूरी तरह से बदल गया है। अब इसके बड़े-बड़े पूजा के पांडाल होते हैं और पूजा भी सिर्फ कर्मकांड तक सीमित नहीं रहकर भव्य तामझाम और ग्लैमर के रूप में विकसित हो चली है। अब गणेशोत्वस में सांस्कृतिक कार्यक्रम, डांस, गायन, वादन और तंबोला प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाने लगा है।
 
आज गणेशोत्सव सारे विश्व में बड़े ही हर्ष एवं आस्था के साथ मनाया जाने लगा है। घर-घर में गणेशजी की पूजा होने लगी है। लोग मोहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना, आरती, पूजा करते हैं। बड़े जोरों से गीत बजाते, प्रसाद बाँटते एवं अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी की मूर्ति को विधिवत किसी समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जित कर अपने घरों को लौट आते हैं।

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