हरिद्वार कुंभ मेला : नागा बाबाओं के 17 श्रृंगार जानकर हैरान रह जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
आपने 16 श्रृंगार का नाम तो सुना ही होगा। महिलाएं करती है 16 श्रृंगार और माना जाता है कि महिलाएं अपने साज-श्रृंगार पर सबसे ज्यादा ध्यान देती हैं, लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी की नागा बाबा भी अपने साज-श्रृंगार पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं। हर नागा बाबा का श्रृंगार अलग ही होता है तभी तो उनकी अलग पहचान बनती है। कहते हैं कि नागा बाबा 16 नहीं 17 श्रृंगार करते हैं। आओ जानते हैं नागा बाबाओं के श्रृंगार के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
17 श्रृंगार :-
1. लंगोट : नागा बाबाओं की लंगोट भी अलग तरह की होती है। अक्सर जंजीर से बंधा चांदी का टोप होता है।
 
2. भभूत : पूरे शरीर पर कई तरह की भभूति या विभूति का लेप लगाते हैं।
 
3. चंदन : बाजू और माथे पर चंदन का लेप लगाते हैं। 
 
4. ड्डिर : पैरों में लोहे या ड्डिर चांदी का कड़ा होता है।
 
5. अंगूठी : हाथों में कई प्राकार की अंगुठियां पहनते हैं।
 
6. पंच केश : जिसमें लटों को पांच बार घूमा कर लपेटना जाता है जो पंच तत्व की निशानी है।
 
7. ड्डूलों की माला : कमर में ड्डूलों की माला पहनते हैं।
 
8. रोली का लेप : माथे पर रोली का लेप लगाते हैं।
 
9. कुंडल : कानों में चांदी या सोने के बड़े बड़े कुंडल पहनते हैं।
 
10. चिमटा : हाथों में चिमटा भी उनके श्रृंगार का एक हिस्सा ही है।
 
11. डमरू : हाथों में डमरू भी श्रृंगार का एक हिस्सा ही है। 
 
12. कमंडल : हाथों में कमंडल भी श्रृंगार का एक हिस्सा ही है। 
 
13. जटाएं : गुथी हुई जटाएं भी विशेष प्रकार से संवारते हैं।
 
14. तिलक : तिलक कई प्रकार से लगाते हैं। शैव और वैष्णव तिलक प्रमुख हैं।
 
15. काजल : आंखों में काजल भी लगाते हैं। खासकर सुरमा लगाते हैं।
 
16. कड़ा : हाथों में कड़ा पीतल, तांबें, सोने या चांदी के अलावा लोहे का भी हो सकता है।
 
17. रुद्राक्ष माला : गले के अलावा बाहों पर रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं। 
 
शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और ड्डिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागा संत के मुताबिक लोग नित्य क्रिया करने के बाद खुद को शुद्ध करने के लिए गंगा स्नान करते हैं लेकिन नागा संन्यासी शुद्धीकरण के बाद ही शाही स्नान के लिए निकलते हैं।
 
नागा स्वभाव :
इन श्रृंगार के अलावा नागा बाबाओं की यह भी खासियत है कि कुछ नरम दिल तो कुछ अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। कुछ नागा संतों के तो रूप रंग इतने डरावने हैं कि उनके पास जाने से ही डर लगता है। महाकुंभ पहुंचे नागा संन्यासियों की एक खासियत ये भी है कि इनका मन बच्चों के समान निर्मल होता है। ये अपने अखाड़ों में हमेशा धमा-चौकड़ी मचाते रहते हैं। इनका मठ इनकी अठखेलियों से गूंजता रहता है। अखाड़ों की बात करें तो महानिर्वाणी, जूना और निरंजनी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा साधुओं की तादाद है।

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