नागा साधुओं के बारे में 20 दिलचस्प जानकारी

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू साधुओं के मुख्‍यत: 13 अखाड़े हैं। नागा साधुओं में भी दिगंबर नागा साधुओं के प्रति लोगों में बहुत जिज्ञासा बनी रही है। इन साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता है। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन होता है। यहां प्रस्तुत है नागा साधुओं से जुड़ी 25 रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी।
 
 
1. कठिन परीक्षा : नागा साधु बनने के लिए लग जाते हैं 12 वर्ष। नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करने में छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं।
 
2. चार नागा उपाधियां : चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।
 
3. चार आध्यात्मिक पद- 1.कुटीचक, 2.बहूदक, 3.हंस और सबसे बड़ा 4.परमहंस। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं। इसके अलावा नागाओं में औघड़ी, अवधूत, महंत, कापालिक, शमशानी आदि भी होते हैं।
 
4. नागाओं के पद : नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है।
 
5. सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के तेरह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
 
6. नागा दिनचर्या : नागा साधु सुबह चार बजे बिस्तर छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला काम करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले जाते हैं।
 
7. नागा श्रृंगार : नागा सोलह नहीं 17 श्रृंगार करते हैं। 1.लंगोट, 2.भभूत- बदन में विभूति का लेप, 3.चंदन, 4.पैरों में लोहे या ड्डिर चांदी का कड़ा, 5.अंगूठी, 6.पंचकेश, 7.कमर में ड्डूलों की माला, 8.माथे पर रोली का लेप, 9.कुंडल, 10.हाथों में चिमटा, 11.डमरू, 12.कमंडल, 13.गुथी हुई जटाएं और 14.तिलक, 15.काजल, 16.हाथों में कड़ा और 17.बाहों पर रुद्राक्ष की मालाएं 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।
 
8. नागा स्वभाव : इन श्रृंगार के अलावा नागा बाबाओं की यह भी खासियत है कि कुछ नरम दिल तो कुछ अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। कुछ नागा संतों के तो रूप रंग इतने डरावने हैं कि उनके पास जाने से ही डर लगता है। महाकुंभ पहुंचे नागा संन्यासियों की एक खासियत ये भी है कि इनका मन बच्चों के समान निर्मल होता है। ये अपने अखाड़ों में हमेशा धमा.चौकड़ी मचाते रहते हैं। इनका मठ इनकी अठखेलियों से गूंजता रहता है। अखाड़ों की बात करें तो महानिर्वाणी, जूना और निरंजनी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा साधुओं की तादाद है।
 
9. नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि।
 
10. नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण
 
11. नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के अलावा किसी को भी नहीं मानते।
 
12. नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।
 
13. नागा इतिहास : सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की। उनके बाद शुकदेव ने, फिर अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके से नया आकार दिया। बाद में शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया। बाद में अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई। पहला अखाड़ा अखंड आह्वान अखाड़ा’ सन् 547 ई. में बना।
 
14. नाथ परंपरा : माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है। नवनाथ की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। घुमक्कड़ी नाथों में ज्यादा रही।
 
15. नागाओं की शिक्षा और दीक्षा : नागा साधुओं को सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है। बाद की परीक्षा खुद के यज्ञोपवीत और पिंडदान की होती है जिसे बिजवान कहा जाता है। अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है। श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है।
 
16. कहां रहते हैं नागा साधु : नाना साधु अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार यह पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेर पर झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं।
 
17. महिला नागा साधु : नागा एक पदवी होती है। इसी तरह महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेती हैं तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं। जूना अखाड़ा ने माई बाड़ा को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का स्वरूप प्रदान कर किया था। इस अखाड़े की महिला साधुओं को 'माई', 'अवधूतानी' या 'नागिन' कहा जाता है। उन्हें किसी खास इलाके के प्रमुख के तौर पर 'श्रीमहंत' का पद दिया जाता है।
 
18. शाही स्नान : शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज धज कर तैयार होते हैं और ड्डिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागा संत के मुताबिक लोग नित्य क्रिया करने के बाद खुद को शुद्ध करने के लिए गंगा स्नान करते हैं लेकिन नागा संन्यासी शुद्धीकरण के बाद ही शाही स्नान के लिए निकलते हैं।
 
19. हिमालय और आश्रम ही ही रहते हैं नागा : नागा साधु अपने मठ, आश्रम और हिमालय की कंदराओं में ही रहते हैं। कुंभ में स्नान के दौरान ही वे सांसार को देखने आते हैं। 
 
20. नागा बेड़ा : नागा संन्यासियों के अखाड़े आदि शंकराचार्य के पहले भी थे, लेकिन उस समय इन्हें अखाड़ा नाम से नहीं पुकारा जाता था। इन्हें बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। 'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के 'नागा' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं। कच्छारी भाषा में 'नागा' से तात्पर्य 'एक युवा बहादुर लड़ाकू व्यक्ति' से लिया जाता है। टोल्मी के अनुसार 'नागा' का अर्थ 'नंगे' रहने वाले व्यक्तियों से है। डॉक्टर वैरियर इल्विन का कथन है कि 'नगा' शब्द की उत्पत्ति 'नॉक' या 'लोग' से हुई है। अत: उत्तरी-पूर्वी भारत में रहने वाले इन लोगों को 'नगा' कहते हैं।
 
सिकंदर महान के साथ आए यूनानियों को अनेक दिगंबर साधुओं के दर्शन हुए थे। बुद्ध और महावीर भी इन्हीं साधुओं के दो प्रधान संघों के अधिनायक थे। जैन धर्म में जो दिगंबर साधु होते हैं और हिंदुओं में जो नागा संन्यासी हैं वे दोनों ही एक ही परंपरा से निकले हुए हैं। इस देश में नागा जाति भी होती है जो नागालैंड में रहती है।

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